ममत्व,राग एवं अहं का मूल कारण मिथ्यात्व-जिनेन्द्रमुनि मसा काव्यतीर्थ

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ममत्व,राग एवं अहं का मूल कारण मिथ्यात्व-जिनेन्द्रमुनि मसा काव्यतीर्थ
जैनसंतो का चातुर्मास मंगल प्रवेश उमरना में 14 जुलाई रविवार को धूमधाम से होगा।श्रावक श्राविकाओं को इस शुभ अवसर पर उपस्थित रहने एवं संघ के कार्य को सफल करने का आग्रह किया है।
कान्तिलाल मांडोत
सायरा 11 जून
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ पदराडा में तरपाल से जैन संतो का आगमन हुआ।सेमड के समीप उमरना स्थित चातुर्मास के लिए पदार्पण हुए जैनमुनि आदि ठाना तीन का आगमन से गांव में हर्षोल्लास का माहौल है।गणेशमुनि शास्त्री के परम शिष्य जिनेन्द्रमुनि काव्यतीर्थ के साथ रितेश मुनि मसा ,प्रभातमुनि मसा चार महीने वर्षावास के लिए उमरना निवासरत रहेंगे।जिनेन्द्रमुनि मसा ने उपस्थित श्रावकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जितने भी अज्ञानी प्राणी हैं वे सभी दुखों को उत्पन्न करते हैं और इस अज्ञान के कारण ही मूढ़ पुरुष अनन्त संसार में सभी प्रकार के दुःखों को बार-बार भोगता हुआ परिभ्रमण करता रहता है।
संत ने कहा कि प्राणी को मन एवं इन्द्रियों के अनुकूल वस्तु व्यक्ति या परिस्थिति कम दुःख कितना अच्छी लगती है और जो अच्छी लगती है उसे अपनाने लगता है और उस पर ममत्व या राग करके सुख का अनुभव करता है और ऐसा मान बैठता है कि यह सुख या अनुकूलता ऐसी बनी ही रहेगी। मेरे परिश्रम या बुद्धि के फलस्वरूप मैंने ही इसे बनाया है। इस मम एवं अहं के नशे की बेहोशी में वह किसी भी व्यक्ति, या परिस्थिति के बदल जा सकने विपरीत हो सकते या छूट सकने आदि की कल्पना भी नहीं कर सकता जबकि एक भी वस्तु की अनुकूलता टिकने वाली नहीं होती ।
रितेश मुनि ने पपने संबोधन में कहा कि व्यक्ति की स्वयं की इन्द्रियाँ या शरीर ही शाश्वत नहीं, उसके नहीं चाहने पर भी इन्द्रियाँ शिथिल पड़ ही जाती हैं, शरीर भी एक दिन छूट ही जाता है और इसी प्रकार उसके प्रिय जनों में से नहीं चाहते हुए भी अनेक मर ही जाते हैं। जब-जब रोग, वियोग आदि के झटके लगते हैं तब-तब व्यक्ति दुःखी भी होता है पर फिर बचे हुओं पर मम एवं अहं का नशा कर पुनः बेभान हो जाता है।
इस पर जिनेन्द्रमुनि ने जोर देकर कहा की ममत्व, राग एवं अहं का मूल कारण मिथ्यात्व है। पर यानि अजीव या जड़ रूप जो शरीर, कुटुम्ब, धन आदि हैं उनको अपना समझ लेना ही मिथ्यात्व है।
मुनि ने कहा मिथ्यात्व से अज्ञान, अज्ञान से स्वार्थ, स्वार्थ से ममत्व और ममत्व से दुःख किस प्रकार होता है इस बात को उदाहरण सहित स्पष्ट किया जाता है। जिस वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति को हम हमारा समझते हैं, उनकी अनुकूलता में सुख व प्रतिकूलता में दुःख महसूस होता है। मेरे पास से अगर एक रुपया गुम होता है और मेरे मित्र का अगर सौ का नोट भी गुम होता है तो मुझे मेरे रुपये गुम होने का दुःख ज्यादा होगा या मेरे मित्र के सौ के नोट का ?मित्र का नोट मेरे एक रुपये से सौ गुना ज्यादा है, फिर भी मेरे को तो मेरे रुपये का ही दुःख ज्यादा होगा, क्योंकि उसमें मेरापन है। मेरा पुत्र अगर विदेश में दस हजार मील दूर रहता है, और वहाँ से समाचार आता है कि उसके साथ कोई दुर्घटना हो गयी। दूसरी ओर मेरे घर में किराये- दार कालड़का मेरे सामने बीमारी से मर रहा है।हम किसी भी वस्तु में अपनापन नहीं रखते है।यह दुःख ममत्व के कारण होता है।

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