*दुःख स्वभाव नही बल्कि विभाव है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
*दुःख स्वभाव नही बल्कि विभाव है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
सायरा 23 जुलाई
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा में धर्म सभा मे जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि आत्मा का सहज स्वभाव सुखमय है।अतः प्रत्येक संसारी आत्मा विभाव ग्रस्त होने पर भी सुख की ही इच्छा रखती है।अज्ञान अवस्था मे जो पाप करती है वह भी सुख के लिए, क्योकि दुख कोई नही चाहता है।सुख आत्मा का स्वभाव है।पाप करने के बाद भी सुख की अभिलाषा रखने वाला मनुष्य यह भूल जाता है कि मुझे पाप कर्म की सजा अवश्य मिलेगी।जैन संत ने कहा कि दुःख स्वभाव नही बल्कि विभाव है।स्वभाव धर्म है विभाव अधर्म है।क्योंकि व्यक्ति शारीरिक दुःखी व्यक्तियों के दुःख निवारण के लिए अनाज वस्र आदि का दान कर लोकोपकारी प्रवृतियों को धर्म समझते है।किंतु यह प्रवृतिया शुभरूप होने से पुण्य है धर्म नही है।संत ने कहा कि धर्म संयम व संवर निर्जरा के प्रबल पुरुषार्थ से तथा शुभशुभ कर्मो के आवरण को दूर करने से प्रकट होता है।धर्म और पूण्य का भेद नही समझने वाले बाल जीव स्वर्ग सुख को मोक्ष सुख मानकर शाश्वत शांति की प्राप्ति कभी नही कर सकते है।रीतेश मुनि ने कहा कि ममत्व के कारण जीव को बंधन रहता है।और ममता रहित होने से मुक्त हो जाता है।मन ही मनुष्यो के बन्ध और मुक्ति का कारण है।जीव विषय वासना में आशक्त होकर बंधन में आ जाता है।विष रहित होने पर मुक्त हो जाता है।बंधन और मोक्ष ही स्पष्ट है।प्रवीण मुनि मसा एवं प्रभातमुनि मसा ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को प्रवचन माला में अपने भाव व्यक्त किये।मुनि ने कहा कि आत्मा का कल्याण शुभ कर्मो से ही संभव है।कर्म निर्जरा के लिए शुभ आचरण में आना जरूरी है।पापकर्म से कोई छूट नही सकता है ।धर्म आराधना कर हर श्रावक श्राविकाओं को प्रतिदिन सामायिक करने के लिए कहा और मुनि ने भार पूर्वक कहा कि अच्छे कार्य करके मोक्षगामी बनने का प्रयासरत रहना चाहिए।क्योंकि कर्म नष्ट नही होने पर यातना भोगनी पड़ती है।
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space