किसी को कष्ट देने का परिणाम दुःखमय ही होगा-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*किसी को कष्ट देने का परिणाम दुःखमय ही होगा-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 24 अक्टूबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के भवन में धर्मसभा मे जिनेन्द्रमुनि ने कहा कि अपनी सुख सुविधा एवं वैभव वृद्धि के लिए किसी को पीड़ा पहुंचाना, कष्ट देना घोर दुष्कर्म है ।इसका दुष्परिणाम संताप कष्ट और पीड़ा के रूप में ही आएगा।हो सकता है उसमें कुछ समय लगे।मुनि ने कहा कर्मवाद सिद्धांत परम् सत्य सिद्धांत है।विश्व के सभी विचारकों ,तत्ववेत्ताओं ने इस सिद्धांत का समर्थन किया है।इस सिद्धांत की मूल दृष्टि है कि व्यक्ति जैसे कर्म करता है उसके परिणाम वैसे ही आते है।हो सकता है वे कुछ रूपांतरित हो जाए किन्तु यह संभव नही कि कर्म व्यर्थ चले जाएं।जैसा किया वैसा पाया ।इस सत्य को सिद्घ करने वाला लम्बा इतिहास अपने पास है।वर्तमान में भी अनेक उदाहरण हमारे सामने फैले हुए है जो करणी के फल को व्यक्त कर रहे है।मानव की यह भ्रांत धारणा है कि मैं अपनी चालाकी से अपने पाप को छुपा लू और उसके दुष्फल से बच जाऊंगा।प्रवीण मुनि ने कहा आज भारत ही नही सारे विश्व मे उत्पीड़न बढ़ गया है।इसका सबसे बड़ा कारण है कि मानव का कर्मवाद में विश्वास कम होना।रितेश मुनि ने कहा कि मानव के विषय मे धर्म शास्त्रों के स्वर बहुत उच्च कोटि के है।मानव को विश्व का श्रेष्ठतम प्राणी तो स्वीकार किया ही है,मानव को अपार क्षमता का भंडार बताया गया है।यह सत्य है क्योंकि हम देखते है कि कुछ व्यक्ति निश्चित ही अद्भुत क्षमता प्रतिभा लिये होते है।इसका अर्थ है सभी मानवो में वे योग्यताए रही हुई है।प्रभातमुनि ने कहा किविश्व के समस्त पदार्थो में परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है।मानव भी अछूता नही है। वह भी प्रतिक्षण परिवर्तित हो रहा है।व्यक्ति के विचार आचरण स्वभाव और संस्कार व्यवहार सबकुछ बदलते रहते है।परिवर्तन का यह क्रम निर्बाद है।
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