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*आवश्यकता कम करने से भौतिक प्रतिस्पर्धा भी शांत होंगी-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*आवश्यकता कम करने से भौतिक प्रतिस्पर्धा भी शांत होंगी-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 6 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा में श्रावक श्राविकाओं के समक्ष महाश्रमण जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि मानव का जीवन पशु की तरह आहार तक ही सिमित नहीं है। विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने के नाते उसमे दया, प्रेम क्षमा और सहानुभूत्ति के भाव भी है। इन भावों का क्षेत्र जितना विस्तृत होता चलता है, मानव उतना ही उपर से उपर उड़ता रहता है और जब उसका यह प्रेम विश्वव्यापी बन जाता है। तब वह पूर्ण मानव अर्थात महा मानव कहलाने का अधिकार प्राप्त कर लेता है। किसी विपत्ति ग्रस्त भाई को यदि वह उस विपत्ति से मुक्त नहीं करा सकता है, उसके लिए अपने स्वार्थों का बलिदान नहीं दे सकता है तो वह पशु की स्थिति से उन्नत नहीं कहा जा सकता। जीवन में आध्यात्मिक एवं मानवीय गुणो का विकास ही तो मानव को पशु से पृथक करता है। अपने भीतर रही हुई पशुवृत्ति का दमन नहीं करता वहां तक अपने जीवन का वास्तविक मुल्यांकन नहीं कर सकता।कभी कभी अपने स्वार्थों की सृष्टि रचने के लिये दूसरों की जिंदगी तक को भी कुचल डालता है। क्या यह उसकी मानवता है? यह कहना चाहिये मानवता नहीं, दानवता है, पशुता है।जब किसी एक प्रमुख अतिथि के स्वागत हेतु बन रहे मार्ग में बाधक एक गरीब की झोंपडी ही उखाडकर फेंक दी जाति है। तो गरीब की वेदना झंकृत हो उठती है। आज के इस भौतिकवाद की चकाचौंध में मानव मानवता को ही भुला बैठा है।
मुनि ने कहा मानव की विलासप्रियता का एक चित्र जिसमे मानवता के दर्शन नहीं हो पाते। आज विलास प्रधान साधनों को अधिका अधिक महत्त्व दिया जा रहा है। यही कारण है कि मानव के जीवन में भ्रष्टाचार की दुर्गंध दिन ब दिन अधिक फैल रही है। मानव का विलासित मन सोचता है मेरे पास ऐसे विलक्षण प्रकार के साधन हो जो अन्य के पास नहीं, मेरी गाड़ी आदि ऐसी हो जो अन्य व्यक्तियों से बाहर हो। जब मानव का मन इस प्रकार की स्पर्धा में दौड लगाने लगता है। तब वह उन्हें जुटाने के लिए अनुचित उपायों को स्वीकार करने में जरा भी नहीं हिचकिचाता। येनकेन प्रकारेण यह साधन संपादन कर ही लेता है।
रीतेश मुनि ने कहा कि मानव की तृष्णा इतनी बढ़ चली है कि यह सुरसा के मुख की तरह सबकुछ निगलने को तैयार है। संतोष कोसो दूर भागता जा रहा है। दरअसल, इसी से समाज में संघर्षों का एक भूचाल पैदा हो गया है। इस बुराई को दूर करने के लिए ही तो भगवान महावीर ने अपरिग्रहवाद की दशा में प्रयाण करने का संकेत दिया। इच्छाओं को कम करने से आवश्यकताएं कम होगी और आवश्यकता कम करने से भौतिक प्रतिस्पर्धा भी शांत हो जायेगी। यही मानवता के आनन्द का एक मात्र मार्ग है। प्रवीण मुनि ने कहा कि बगैर गलती किये किसी को टोकना या असंगत भाषा का प्रयोग करना गलत है।बात बात में आगबबूला होने वाले मनुष्य के जीवन मे दूरियां बन जाती है।लोग दूर हो जाते है।प्रभातमुनि मसा ने कहा कि ज्ञान एक अनमोल खजाना है।समाज के लिए और देश के लिए जीने वाले त्यागी पुरुष कहलाने के अधिकारी है।

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