कार्तिक पूर्णिमा जैन चातुर्मास का समाप्ति दिवस
|
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
कार्तिक पूर्णिमा जैन चातुर्मास का समाप्ति दिवस
*कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है*
कार्तिक मास की पूर्णिमा अत्यंत शुभ मानी जाती है,।जब भगवान विष्णु और चंद्र देवता की विशेष पूजा का विधान है। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व है और इसे देव दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है।
हिंदू सनातन परंपरा में प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को अत्यंत शुभ और पूजनीय माना गया है। इस दिन भगवान श्री विष्णु और चंद्र देवता की विशेष आराधना करने का विधान है। पूर्णिमा का दिन वैसे तो हर महीने शुभ फल देने वाला होता है, लेकिन जब यह तिथि श्रीहरि विष्णु को समर्पित पवित्र कार्तिक मास में आती है, तब इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा में जैन समाज मे चातुर्मास की समाप्ति का दिवस है।कार्तिक पूर्णिमा का दिवस अत्यंत महत्वपूर्ण है।अनेक सत्पुरुषों का सम्बंध इस दिन से जुड़ा है।आज के दिन अनेक महान आत्माओं ने जन्म लिया और हमारे आदर्श बने।इनका पुण्य स्मरण हमारे मन मे नई प्रेरणा और स्फूर्ति का संचार करता है।हमारी समस्त संस्कृति पर उनका उपकार है।उपकारी जनों के उपकार को याद करना,कृतज्ञता है।पावन प्रसंग पर सत्पुरुषों का मंगल स्मरण करके मानवता के हित मे कुछ विशिष्ट सम्पादित करके दिलाए।आज के दिन सत्पुरुष इस धरती पर हुए है।इन सत्पुरुषों से हमारी संस्कृति गौरवान्वित है। हम इन सभी का आस्था और आदर के साथ स्मरण कर रहे हैं। इन सत्पुरुषों के द्वारा निर्दिष्ट पथ पर हम भी अपने आपको गतिशील करके जीवन को भव्यता प्रदान करने का प्रयत्न करें। जीवन सद्गुणों से ही सुसज्जित बनता है। जो भी इन महापुरुषों का अनुकरण करेंगे, उनका जीवन महान बनेगा, विशिष्टता ग्रहण करेगा।
भगवान शिव द्वारा त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने के उपलक्ष्य में, जिसे ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के रूप में, जिसे ‘गुरु पर्व’ कहा जाता है; और देवी तुलसी के पृथ्वी पर जन्म के सम्मान में। इस दिन को ‘देव दीपावली’ भी कहा जाता है, जब देवता पृथ्वी पर आते हैं और उनके स्वागत के लिए दीपक जलाए जाते हैं।कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का महत्व कई गुना है, क्योंकि यह पापों से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति और देवताओं का आशीर्वाद पाने का एक विशेष अवसर माना जाता है। इस दिन गंगा में स्नान करने से पूरे वर्ष स्नान करने का पुण्य मिलता है। इसके अतिरिक्त, इस दिन दान-पुण्य करने से विशेष लाभ मिलता है, जो स्वर्ग में संरक्षित रहता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए इसे सिखों के लिए ‘गुरु पर्व’ या ‘गुरु पूरब’ के रूप में मनाया जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा भगवान कार्तिकेय के जन्म का भी दिन है। कुछ पौराणिक मान्यताओं में यह भी माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही पुष्कर में भगवान ब्रह्मा का अवतरण हुआ था।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।
यह मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर देवता पृथ्वी पर आकर गंगा स्नान करते हैं, इसलिए इस दिन स्नान करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूरे वर्ष का पुण्य शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने के बराबर पुण्य मिलता है।पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान के बाद अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। जो दान इस दिन किया जाता है, वह स्वर्ग में संरक्षित रहता है और मृत्यु के बाद प्राप्त होता है।
इस दिन दीपदान का विशेष महत्व है, जिससे सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।कार्तिक माह में गंगा स्नान के साथ भगवान विष्णु की आराधना करना भी शुभ माना जाता है।यह दिन सिख धर्म में गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है, जो गुरु नानक देव जी का जन्मदिन है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन ब्रह्मा जी का पुष्कर में अवतरण हुआ था, इसलिए लाखों लोग पुष्कर नदी में स्नान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन जो भी दान किया जाता हैं।बिल्कुल कार्तिक पूर्णिमा का स्नान काफी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन गुरु नानक देव जी का जन्मदिन भी होता है तो इसे गुरु पूर्णिमा के पर्व में भी मनाया जाता है और ऋषिकेश के गंगा घाटों पे काफी दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व सनातन धर्म में कार्तिक माह और पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। कार्तिक माह में गंगा स्नान और भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया है।
वैदिक पंचांग के अनुसारपूर्णिमा तिथि पर गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए
हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व होता है. यह दिन अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक माना जाता है. ये दिन लोगों को सकारात्मक सोच और अच्छे कर्मों के लिए प्रेरित करता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान का महत्व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता हर की पौड़ी पर गंगा स्नान करने के लिए आते हैं। जिससे गंगा का जल अमृतमय हो जाता है।
मान्यता है कि इस दिन देवता पवित्र नदियों में धरती पर अवतरित हुए थे। यही कारण है कि कार्तिक पूर्णिमा के दौरान भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और मानते हैं कि उन्हें देवताओं का आशीर्वाद।
हिंदू पौराणिक कथाओं में कार्तिक पूर्णिमा कई किंवदंतियों से जुड़ी है। सबसे लोकप्रिय किंवदंतियों में से एक भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की कहानी है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती एक संतान चाहते थे, और भगवान शिव ने देवताओं से एक पुत्र उत्पन्न करने में मदद करने का अनुरोध किया। देवताओं ने कार्तिकेय की रचना की, जिनका जन्म कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था। इसलिए, कार्तिक पूर्णिमा को उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी एक और कथा भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वेदों को बचाने के लिए मछली का रूप धारण किया था, जिन्हें एक राक्षस ने चुरा लिया था। भगवान विष्णु राजा सत्यव्रत, जो बाद में मनु कहलाए, के सामने प्रकट हुए और उन्हें आने वाली बाढ़ से खुद को और वेदों को बचाने के लिए एक नाव बनाने को कहा। मछली रूपी भगवान विष्णु ने नाव को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया।
धर्मप्राण क्रान्तिकारी वीर लौंकाशाह जैसी महान आत्मा आज के ही दिन अवतरित हुईं। उस युग में धार्मिक क्षेत्र में गहन अंधकार परिव्याप्त था। धर्म के नाम पर कई तरह के पाखण्ड और आडंबरों को पुष्ट किया जा रहा था। लौंकाशाह ने जब यह सब कुछ देखा तो उनका अंतर उद्वेलित हुए बिना नहीं रहा। उन्होंने शास्त्रों का लिपिकरण करते हुए गहरा अध्ययन-अनुशीलन किया एवं निर्ग्रन्थ संस्कृति में तेजी से प्रविष्ट होते जा रहे शिथिलाचार और विकृत आचार का उन्मूलन करने के लिए एक क्रांत-द्रष्टा के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया।

*कांतिलाल मांडोत वरिष्ठ पत्रकार*
|
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space





