ज्ञान-भक्ति व प्रेम का संदेश देने वाले गरीबो के मसीहा गुरु नानकदेव जी*
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कार्तिक पूर्णिमा अवतरण दिवस
*ज्ञान-भक्ति व प्रेम का संदेश देने वाले गरीबो के मसीहा गुरु नानकदेव जी*
कार्तिक पूर्णिमा के दिन अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया और हमारे आदर्श बन गए।इनका पूर्ण स्मरण हमारे मन मे नई प्रेरणा और स्फूर्ति का संचार करता है।हमारी समग्र संस्कृति पर इनका उपकार है।उपकारी जनों को उपकार से याद करना,कृतज्ञता है।आज के दिन ऐसे कई सत्पुरुष इस धरती पर हुए हैं।इन सत्पुरुषों से हमारी संस्कृति गौरवान्वित है। हम इन सभी का आस्था और आदर के साथ स्मरण कर रहे हैं। इन सत्पुरुषों के द्वारा निर्दिष्ट पथ पर हम भी गतिशील करके जीवन को भव्यता प्रदान करने का प्रयत्न करें। जीवन सद्गुणों से ही सुसज्जित बनता है। जो भी इन महापुरुषों का अनुकरण करेंगे, उनका जीवन महान बनेगा, विशिष्टता ग्रहण करेगा।
मानवता के मूर्त रूप नानकदेव का जन्म भी कार्तिक पूर्णिमा को ही हुआ था। वे गरीबों के मसीहा थे। उन्होंने ज्ञान-भक्ति व प्रेम का संदेश दिया। अहिंसा धर्म का प्रचार करते हुए कहा था कि जो खान-पीन को शुद्ध रखकर प्रभु भजन करता है, उसका जीवन सार्थक-सफल हो जाता है। उनकी वाणी है- ‘जो रत्त लगे कपड़े जापा होवे पलीत। जो रत्त पीवे मानुषा, तिन क्यों निर्मल चित्त।’ अर्थात् कपड़े पर खून लगने से कपड़ा गंदा हो जाता है, वही खून जब मनुष्य पीवेगा तब चित्त निर्मल नहीं रहेगा। इसी प्रकार उन्होंने संगत और पंगत की सीख देते हुए कहा है-
*संगत करो तो साधु की, पंगत करो तो लंगर की।*
अर्थात् साधु संगत में सच्ची सीख मिलती है और लंगर में बिना भेद-भाव सभी एक ही पंगत में बैठते हैं। संगत और पंगत का अर्थ है- पहले भजन करो, फिर भोजन करो। भजन और भोजन में भेदभाव नहीं होना चाहिए। भूखा द्वार पर हो तो उसे भोजन कराना चाहिए। भारतीय संस्कृति का यही आदर्श है।
गुरु नानकदेव का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पाकिस्तान के ननकाना साहिब में हुआ था। उन्होंने सिख धर्म की स्थापना की और करतारपुर में 22 सितंबर 1539 को देह त्याग दी। उन्होंने ‘नाम जपो’ ईश्वर का स्मरण, ‘किरत करो’ ईमानदारी से आजीविका, और ‘वंड छको’ सबका हिस्सा बांटो के सिद्धांतों का प्रचार किया और समानता, भाईचारे व सेवा पर जोर दिया।
बचपन से ही वे अत्यंत बुद्धिमान और आध्यात्मिक थे। एक बार अपने शिक्षक से पूछकर उन्होंने ‘अ’ अक्षर को भी एक गहरा अर्थ दे दिया था, और एक व्यापारिक यात्रा में उन्होंने सभी पैसे साधुओं को भोजन कराने में खर्च कर दिए थे।
उन्होंने जाति, लिंग या धर्म के भेदभाव को समाप्त करने के लिए ‘लंगर’ की प्रथा शुरू की, जहाँ सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते अपनी यात्राओं के बाद, वे पाकिस्तान के करतारपुर में बस गए, जहाँ उन्होंने एक समुदाय की स्थापना की।भक्ति और कर्मकांड रहित सच्चाई पर आधारित थी। उन्होंने मानवता, समानता और ईश्वर-भक्ति का संदेश दिया, जिसमें बाहरी आडंबरों, जैसे कि मूर्ति पूजा, यज्ञ, और धार्मिक भेदभाव को महत्वहीन बताया गया। उनका दृढ़ विश्वास था कि सच्चा धर्म शुद्ध हृदय, ईमानदारी से परिश्रम करने और “सतनाम” ईश्वर के नाम को जपते हुए एक और सेवापूर्ण जीवन जीने में है।
गुरु नानक देव जी ने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया, यह मानते हुए कि ईश्वर एक, निराकार और सर्वव्यापी है।
उन्होंने ईमानदारी से मेहनत करके आजीविका कमाने किरत करो और अपनी कमाई का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों के साथ साझा करने वंड छको का उपदेश दिया।
गुरु नानक देव जी ने महिलाओं, दलितों और गरीबों के हितों की रक्षा की और एक सच्चे और न्यायपूर्ण समाज की नींव रखी।
गुरु नानक देव जी भारतीय संस्कृति के महान उन्नायक है। गुरु नानक वाणी में भारतीय चिंतन की अखंड यात्रा प्राप्त होती है। गुरु नानक देव लगभग दो दशक भारत एवं एशिया के देशों में भ्रमण कर गुरमत दर्शन, भारतीय संस्कृति और भारतीय चिंतन का प्रचार-प्रसार करते रहे। एशिया के देशों को उन्होंने नई जीवन-युक्ति दी। यह जीवन-युक्ति थी किरत करना परिश्रम व सत्यनिष्ठा से जीविका चलाना, वंड छकना दूसरों से बांटकर खाना और नाम जपना श्रद्धा से प्रभु का स्मरण करना। यह युक्ति महान जीवन मूल्यों से जुड़ी हुई थी।गुरु नानक देव जी अपने समय के महान चिंतक, आध्यात्मिक नायक और अभूतपूर्व दार्शनिक थे। उन्होंने बिना संकोच उस समय की राजनीति पर भी अपने मौलिक चिंतन से मौलिक टिप्पणियां लिखीं। बाबर के आक्रमण का विरोध केवल गुरु नानक वाणी में ही मिलता है। उन्होंने सोते हुए भारत को जागने की प्रेरणा दी और बाबर को जाबर कहा।
बाबर वाणी में गुरु नानक देव जी ने केवल बाबर के आक्रमण का ही उललेख नहीं किया, बल्कि उसके दुष्प्रभावों को भी रेखांकित किया। भारतीय जनमानस को प्रेरणा दी कि अपना धर्म, अपनी भाषा व वेश-भूषा सर्वोत्तम जीवन मूल्य होते है, इसके बिना अलग पहचान नहीं बनाई जा सकती।
तलवंडी, जो वर्तमान में पाकिस्तान के लाहौर से लगभग 30 मील पश्चिम में स्थित है, बाद में गुरु नानक के नाम से जुड़कर ननकाना साहिब कहलाया। हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को गुरु नानक के प्रकाश उत्सव के अवसर पर भारत सहित दुनिया भर से सिख श्रद्धालु ननकाना साहिब जाकर वहां अरदास करते हैं और उनके जीवन व शिक्षाओं को याद कर उनका सम्मान करते हैं। यह उत्सव उनके दिव्य जीवन और मानवता संदेश का प्रतीक माना जाता है।
हर व्यक्ति को अपना जीवन सदैव अच्छे आचरण, विनम्रता और सेवा भाव से व्यतीत करना चाहिए, क्योंकि अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है, इसलिए हमें अहंकार से दूर रहना चाहिए।सभी मनुष्यों को एक-दूसरे के प्रति प्रेम, एकता, समानता और भाईचारे का संदेश फैलाना चाहिए। जब मन पाप से अपवित्र हो जाए, तो ईश्वर का नाम लेने से वह फिर से पवित्र हो जाता है। गुरु नानक देव जी स्त्री और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं मानते थे। उनका कहना था कि कि महिलाओं का सदैव आदर करना चाहिए। गुरु नानक देव जी का कहना था कि व्यक्ति को तनावमुक्त रहकर अपने कर्म करते रहना चाहिए।धन को कभी अपने हृदय से नहीं जोड़ना चाहिए, उसे केवल जेब में रखना चाहिए। ऐसा करने से हम लालच और अहंकार से दूर रह सकते हैं।गुरु नानक देव जी का कहना था कि हमें हमेशा जरूरतमंदों की मदद के लिए तत्पर रहना चाहिए। गुरु नानक देव जी कहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति को सबसे पहले अपनी बुराइयों और गलत आदतों पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।गुरु नानक देव जी ने ‘इक ओंकार सतनाम’ का संदेश दिया, जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक ही है और उनका नाम सत्य है।

*कांतिलाल मांडोत वरिष्ठ पत्रकार*
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