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अज्ञानता को एक अपराध मानकर छुटकारा लेना चाहिए-जिनेन्द्रमुनि मुनि*

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*अज्ञानता को एक अपराध मानकर छुटकारा लेना चाहिए-जिनेन्द्रमुनि मुनि*

कांतिलाल मांडोत

गोगुन्दा 4 नवम्बर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में उमरणा के स्थानक भवन में आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए जिनेन्द्रमुनि मसा ने फरमाया कि विकास के मानक क्या हो?इस विषय मे सर्वदा मतभेद रहे है।सामान्यतया दैनिक आवश्यकताओं की व्यवस्थित संपूर्ति को विकास मान लिया जाता है।साफ सुथरी सड़के,भवन बांध नहरे लहराते खेतों को विकास का पर्याय स्वीकार किया जाता है।किंतु यह सब होकर भी कोई व्यक्ति वस्तुतः पूर्ण विकसित हो गया है?यदि उसमे जीवन विज्ञान नही है सच्चरित्र और दुष्चरित्र की व्याख्याएं उसे उपलब्ध नही है।पशु की तरह मात्र उपभोक्ता बनकर जीता रहे तो क्या हम उसे पूर्ण विकसित मानव कह सकते है?स्पष्ट है कि वह इतना सब कुछ भौतिक वैभव पाकर भी जबतक उसे आत्म ज्ञान नही है वह एक अंधकार में है।अज्ञानता अंधकार नही है।इस अंधकार का निराकरण ज्ञान साधना से ही है।महाश्रमण जिनेन्द्रमुनि ने कहा कि धन संपत्ति और भौतिक उपादान उस अज्ञानता को तनिक भी कम नही कर सकते।अज्ञान दशा में भौतिक समृद्धि और अधिक अहंकार का साधन बनकर मानव को विकृत कर देती है।वस्तुतः अज्ञानता एक अपराध है किंतु अज्ञान दशा में जीने वाले को समझ मे नही आएगा।उसे यह समझ देनी होगी।प्रत्येक ज्ञानवान व्यक्ति सद्गुरु और सरकार सभी ऐसा प्रयत्न करें कि अज्ञानी को अज्ञान अपराध प्रतीत हो।सरकार को भी चाहिए कि वह ऐसे अपराधों को समाप्त करने का प्रयास करती है वैसे ही अज्ञानता को अपराध मानकर एक पाप मानकर राष्ट्र को उससे मुक्ति दिला ने का प्रयत्न करें।मुनि ने कहा कि देश मे अज्ञानता यदि विधमान रहती है और फलती फूलती है तो विकास की सारी योजनाएं चली जायेगी।अज्ञानता में किसी साधन के सदुपयोग का प्रश्न ही नही ।प्रवीण मुनि ने कहा कि धनिक वर्ग दहेज और आडम्बर को बढ़ावा दिया जा रहा है।यह समाज के लिए घातक है।आम जनता में धारणा है कि जैन समाज धनाढ्य समाज है।धनिक वर्ग सामाजिक रीति रिवाजों में आडम्बर दिखावा और लाखों का लेनदेन करता है।रितेश मुनि ने कहा धर्म कुछ मर्यादाएं प्रस्तुत करता है।कुछ व्यक्ति उनका ठीक अर्थ नही समझ कर आलोचना कर बैठते है।प्रभातमुनि ने कहा शास्त्र हमारे मार्ग दर्शक है।शास्त्रों से ही हमारी संस्कृति का निर्माण है।शास्त्रों की उपेक्षा करेंगे तो भटक जाएंगे।

 

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