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अहिंसा और अनेकांतवाद जैन दर्शन के प्राणभुत तत्व है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*अहिंसा और अनेकांतवाद जैन दर्शन के प्राणभुत तत्व है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 15 सितंबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर गौशाला उमरणा स्थित स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने फरमाया कि पदार्थ अवगुणो और विशेषताओं को धारण करनेवाला है। वस्तु के अनंत धर्मात्मक होने के अर्थ है कि सत्य अनंत है तो फिर उस अनंत रहस्य को देखने के लिए दृष्टि भी अनंत चाहिए अर्थात् विराट दृष्टि के द्वारा ही उस अनंत शक्ति का साक्षात्कार किया जा सकता है। अहिंसा और अनेकांतवाद जैन दर्शन के प्राणतत्व है। जैन दर्शन में इनका वही महत्व है जो महत्व हमारे शरीर में हृदय और मस्तिष्क का है। अहिंसा आचार प्रदान है तो अनेकांतवाद विचार प्रदान है। जहां विचारो का सुमेल अर्थात समानता नहीं है वहां अनेक प्रकार के संघर्ष व आलोचना की बाढ़ सी आ जाती है।

 

मानव एकांत पक्ष का आग्रही बनकर अंध विश्वासों का शिकार बन जाता है। भगवान महावीर और उनके पूर्ववर्ती तीर्थंकरो ने मानव जाति की इस दहनीय दशा को समझा और उनके प्रतिकार का एक अमोध साधन बतलाया। वही साधन अनेकांतवाद के नाम से अभीहित हुआ।
संत ने कहा संपूर्ण विश्व को भगवान महावीर के अनेकांतवाद और अहिंसा के सिद्धांतों के माध्यम से ही तबाही और विनाश से बचाया जा सकता है ।संपूर्ण विश्वशांति की संपूर्ण क्षमता जैन दर्शन में विद्यमान है। करूणा, सरलता, और निर्मलता, और पवित्रता को दिल में निवास कराये बिना कोई भी मानव विश्व के किसी भी धर्म में प्रवेश नहीं कर सकता है।धर्म के नाम पर कट्टरता, धर्मान्ता, अलगाववाद, फिरका परस्ती अपने आप मे अधर्म , पाप और पतन की निशानी है। संकीर्ण मानसिकता चाहे व जाति, पंथ, धर्म, प्रांतवाद की हो उन बेड़ियों से मुक्त होकर विश्व बंधुत्व की भावना दिलो में साकार करने की शिक्षा सभी महापुरूषों ने प्रदान की है। फिर उनके नाम पर विवाद क्यों करे ।
मुनि ने कहा कि नफरत के कीटाणु अगले का नुकशान करे या न करे। परंतु स्वयं के सद्गुण तो नष्ट हो ही जायेंगे खून के रंग से कपड़ा खुन से कदापि साफ नहीं किया जा सकता। वैसे ही नफरत को नफरत से खात्मा नहीं किया जा सकता। प्रेम के निर्मल पानी से ही नफरत की गंदगी धुल सकती है। नफरत को प्रेम में बदलने की कला ही धर्म का मुख्य लक्ष्य है। उसको प्रत्येक मानव अपना ले तो स्वतः विश्व शांति स्थापित हो जायेगी। हथियारों की होड़ लगाकर विश्वशांति की दुहाई देना बारूद के ढेर पर बैठने के समान है। हिंसा और आंतकवाद के कोटे आपसी वार्ता के द्वार खोलकर सदभाव का माहौल बनाने में योगदान करें। महावीर यह नही कहते है कि देश पर विपत्ति आने और अपने और अपने परिवार पर विपत्ति आने पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो।बेशक प्रतिकार भी करो और हो सके तो आत्मरक्षा के लिए हथियार भी उठा सकते है।देश की सुरक्षा के लिए हमारे प्राण न्यौछावर हो जाए तो भी कोई परवाह नही है।प्रवीण मुनि ने कहा कि सिद्धांतो की रक्षा करना ही धर्म की रक्षा करने के समान है।जो सिद्धांतो का उपासक बनता है।वह आचरण में लाता है।सिद्धांत कभी बदलते नही और बदलने वाले सिद्धान्त नही हो सकते।रितेशमुनि मसा ने कहा श्रद्धा के सूत्र को थामना होगा।दुसरो के बंधे हाथ खोलने के लिए अपने हाथ खुले होने चाहिए।
मुनि ने कहा कि जहां चाह है,वही राह होती है।मात्र साथ रहने से चाह नही बढ़ पाती है।प्रभातमुनि ने कहा जीवन को सदाचार के पथ पर चलाने का नियम बनाओ।उपदेश देने से पहले अपने जीवन को चलाओ।सन्तो के दर्शन के लिए जोधपुर ,भटेवर ,सूरत और मुम्बई के श्रावक श्राविकाओं का आगमन हुआ।

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