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आज की शिक्षा प्रणाली में सुधार की अपेक्षा-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*आज की शिक्षा प्रणाली में सुधार की अपेक्षा-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 5 सितंबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गौशाला स्थित स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा पर्युषण पर्व पर आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मानव की सोई हुई शक्ति को जगाने वाली शिक्षा ही है।वर्तमान में जो शिक्षा पद्धति है ,वह समीचीन नही है।ज्ञान का स्वरूप सम्यक हो व वातावरण में व्याप्त अराजकता के उन्मूलन के लिए जागरूकता पूर्वक प्रयास हो।यह कटु सत्य है कि आज की शिक्षा प्रणाली सम्यक नही है।कहा हमारा ज्योतिर्मय अतीत और कहा अंधकारमय वर्तमान?

मुनि ने कहा जब हम अतीत की ओर दृष्टिपात करते है तो मन गर्व से अभिभूत हो उठता है।बड़ो के प्रति विनय रखो,स्वार्थो की पूर्ति के लिए किसी का शोषण मत करो।जीवन की यात्रा अनुशासनबद्ध होकर करो।प्रमाणिकता को कभी खंडित मत होने दो।मातृ देवो भव,पितृ देवो भव और अतिथि देवो भव के आदर्श को एक पल के लिए भी विस्मृत मत करो।हमारे भारतवर्ष की कितनी उदात्त शिक्षा थी। जैन संत ने कहा आज की शिक्षा व्यक्ति के भीतर सुसंस्कारों के बीजों का वपन कर पाएगी?ग की पहचान गणेश से होती थी।लेकिन आज ग से बालक को गधे का बोध करवाया जाता है।ज्ञान विज्ञान हमे मिल रहा है,उसे जरूर सीखे,किंतु अपने धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन मूल्यों को नष्ट करने की जरा सी भूल न करे।हमारी संवेदनशीलता,दया करुणा सुषुप्त नही होनी चाहिए।हमे अपने रास्ट्रीय सामाजिक नैतिक अस्मिता की रक्षा के लिए शाश्वत जीवन मूल्यों के अभिरक्षण के प्रयास सतत करने चाहिए।अनुशासनहीनता और सद्गुणों की अपेक्षा से जीवन अपवित्र होता है।आज का छात्र कल का भविष्य है।परिवार समाज और राष्ट्र को इनसे कई अपेक्षाएं है।आचरण से ही जीवन उत्कृष्ट बनता है।यहाँ की गौरव गरिमा के लिए हमेशा सचेष्ट रहना है।किसी के द्वारा हमारे राष्ट्र को हमारी संस्कृति को यदि आघात लगता है तो यह हम सभी के लिए लज्जा एवं दुर्भाग्य का विषय होगा। प्रवीण मुनि ने शिक्षा पर अपने उध्बोधन में कहा कि शिक्षक का पद बहुत ही गरिमामय है।शिक्षक बालक को शिक्षा देते समय कभी भी बालक को कुसंस्कार देने की भूल नही करे।स्कूल के बैग का भार वहन नही करने वाले कुसंस्कार से देश की अस्मिता को कायम रख पाना विद्यार्थी के लिए मुश्किल हो जाता है।चिरकाल की चुभन से बालक को दूर ही रखे।रितेश मुनि ने कहा मानव जीवन दुर्लभ है।यह तो सुकर्मों का बहुत बड़ा उपहार है।प्रभातमुनि ने माता को पहली गुरु बताते हुए कहा कि बचपन मे बालक को शिक्षित करने वाली माता ही है।अपनी संतान को जगत की।पहचान कराती है।
धर्मस्थल में आने वाले श्रावकों की तपस्या चल रही है।महिलाएं तप आराधना कर रही है।अखंड जप की आराधना है।आज जैन गौशाला के अध्यक्ष हीरालाल मादरेचा ने संस्कार पर अपने विचार रखे।मेहमानों का स्वागत किया गया

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