अंग्रेजो की दासता की जंजीरे तोड़कर मेरा प्यारा देश हुआमुक्त ,समवेत स्वरों में गाया राष्ट्रगान*
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आजादी का अमृत महोत्सव
*अंग्रेजो की दासता की जंजीरे तोड़कर मेरा प्यारा देश हुआमुक्त ,समवेत स्वरों में गाया राष्ट्रगान*
77वे स्वतंत्रता देशभर में जश्न को लेकर रंग में रंग गया है।यह दिवस राष्ट्र की दासता से मुक्ति कामना के साकार होने का दिवस है।वर्षो से हमारा राष्ट्र अंग्रेजो की परतंत्रता में विवश होकर जी रहे थे।गुलामी की बेड़ियों से जकड़ा आम जन मानस पूरी तरह से अशांत ,उद्देलित और संत्रस्त था।पराधीन सपनहु सुख नाहि।आजादी के मंगल स्वरों से देश का कोना कोना गूंज उठा।जन जन के ह्दय कमल खिल उठे।उस कड़ी में देश अमृत महोत्सव मना रहा है।तिरंगा यात्रा,मेरी माटी मेरा देश और हर घर तिरंगा,घर मन तिरंगा की अवधारणा दिलो में संजोए हुए हर एक व्यक्ति देश की आजादी के जश्न में सराबोर है।आजादी के दीवानों ने हंसते हंसते सिनो पर गोलियां खाई।फांसी के फंदे पर मेरा रंग दे बसंती चोला जैसा आत्मोत्सर्ग का गीत गाने वाले माँ के सपूत भारत माता को मुक्त कराने हेतु फांसी के फंदे को चूमते उस पर झूल गए। त्यागियों और बलिदानियों का बड़ा हुआ रक्त आखिर में रंग लेकर ही आया और हमारा प्यारा भारत देश अंगेजो की दासता की जंजीरे तोड़कर मुक्त हुआ।लाल किले पर तिरंगा फहर उठा।समवेत स्वरों में राष्ट्रगान गया गया।कश्मीर से कन्याकुमारी तक राजस्थान से असम तक पूरा भारत स्वतंत्र हो गया।आजादी का उल्लास रोम रोम से फुट रहा था।पर वे उल्लास के सुहावने क्षण आज दिखाई नही दे रहे है।
हमने सुखी होने की कल्पना की,मगर कष्टों के जाल में फंस गए।जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन कुर्बान किया वे नींव के पत्थर बनकर जमीन में चले गए है।आज वे पत्थर अपने सीने पर खड़े जर्जर भारत को देखकर क्या सोचते होंगे।लोकसभा में राजनैतिक दलो का व्यवहार किसी से अछूता नही है।राजनैतिक पक्ष की लड़ाई देश देख रहा है।आजादी के मायने क्या है।राष्ट्रीयता की कमी है।अखंड भारत खण्ड खण्ड होने तक पहुंच गया।
*अनेकान्तवाद ही सहायक*
आज आवश्यक है स्वार्थ को त्यागने की।प्रत्येक भारतीय त्याग की भावना को जीवन मे अपनाए।बिना त्याग सीनों में लगी आग को शान्त नही किया जा सकता ।हमे एकांतवाद की भावना का विसर्जन करके अनेकान्तवाद के सिद्धांत को जीवन मे स्वीकारना है।समन्वय की भावना को व्यवहारिक रूप प्रदान करना है।मन से उदार और ह्दय से विशाल बनकर सहिष्णुता के अंकुर यदि जीवन मे सींचेंगे तो सभी के जीवन मे एक क्रांतिकारी परिवर्तन आयेगा।
जीवन भर कर्तव्यनिष्ठा आत्मानुशासन सदाचार व उदारता के भावों को मूर्तरूप देना होगा।भूखा व्यक्ति कौन से पाप नही कर सकता?देश मे जब से अमीरी गरिबी में बहुत बड़ा फासला रहेगा,लोग स्व विवेक को नही जगा पायेंगे।समाजवाद की और अग्रसर होने के लिए कल्याणकारी योजनाएं लागू करनी चाहिए।जनता को नैतिकता की शिक्षा तभी संभव होगी,जब ऊपरी की नैतिकता और ईमानदारी की पहचान बनेगी।धर्म का मर्म बताया जाए।फिलहाल अमृत महोत्सव का कार्यक्रम रास्ट्रीय अभियान की तरह लागू किया जा रहा है।यह स्वागत योग्य है।भारतीय नारी का समाज मे बहुत बड़ा उत्तरदायित्व रहा है।राष्ट्रीयता के भाव उनमें अंकुरित करे।प्रत्येक व्यक्ति के दिल मे यह धारणा होनी चाहिए कि व्यक्ति ,परिवार ,समाज,जाति व सम्प्रदाय से राष्ट्र बड़ा है।राष्ट्र पर यदि आंच आएगी तो यह सब लड़खड़ा आएंगे।
प्रत्येक भारतीय को रास्ट्रीय एकता के महायज्ञ को पूरा करने के लिए आगे आये।देश मे अभय एवम विश्वास का वातावरण बनाये।मैत्री भाव जगाये।उच्च पदासीन व्यक्ति रास्ट्रीय एकता के लिए अपनी कथनी और करनी में एकता लाये।लोगो को राष्ट्र धर्म का महत्व समझाएंगे तभी देश मे शांति स्थापित हो सकेगी।देशवासी रास्ट्रीय भावना में ही सुखी एवं शांति प्राप्त कर सकेंगे और इसी में राष्ट्र कल्याण संभव है।
*धर्म सभी सम्प्रदायों का हल*
भारत की एकता को खतरा बना हुआ है।आज सबके सामने यह प्रश्न हैकि इन कारणों का अंत कैसे करे।अलगाववाद के कीटाणु एकता के वृक्ष को नष्ट करने पर उतारू है।प्रत्येक के लिए आवश्यक है,हम भारतवासी सर्व प्रथम रास्ट्रीय भावो से ओत प्रोत होकर रास्ट्रीय एकता की प्रतिज्ञा करे कि राष्ट्र सर्वोपरि है।कुछ लोग धर्म को एकता में बाधक मानते है।धर्म को जाने की धर्म क्या है?धर्म तोड़ना नही,बल्कि जोड़ना सिखाता है।धर्म समूह का नही बल्कि व्यक्तिगत जीवन को सुखमय बनाने वाला एक मार्ग है।सभी धर्म प्रेम सत्य दया करुणा समता और अहिंसा से ओतप्रोत है।
कांतिलाल मांडोत
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