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*दिशाहीनता से बढ़ता है जीवन मे तनाव-जिनेन्द्रमुनि महाराज साहब*
गोगुन्दा 12 नवम्बर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के तत्वावधान में आयोजित धर्मशभा में जिनेन्द्रमुनि महाराज साहब ने फरमाया कि तनावों से ग्रस्त आज का मानव दिगमूढ़ सा हो रहा है।तनावों से मुक्त होने के लिए अक्सर वह जो भी उपाय करता है।उसे लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक मिलती है।बेचैनी संक्लेश जीवन के सहचर बन गये है।निराशा और भय उसके चारों और फैले हुए है।कोई समाधान नही मिल रहा है।मुनि ने कहा मानव ने अपने को पारस्परिक असंगत विषयो में इतना अधिक उलझा दिया है कि वह उन उलझनों को संभाल नही पा रहा है।दिशाहीनता का यही परिणाम आता है।आज युवक जब जीवन के वास्तविक धरातल पर कदम बढ़ाता है तो वह यह निश्चय नही कर पाता कि इसे कहा जाना है।कहा पहुंचना है।कब पहुंचना है और कैसे पहुंचना है।जैन संत ने कहा कि इन गहराइयों को छूने के स्थान पर वह अपने चारों तरफ फैली रंगीनियों की और आकर्षित होने लगता है।साथ ही अपने आपके लिये भी वैसी रंगीनियों की कामना करता हुआ भ्रमित रूप से आगे बढ़ता है।उसके बढ़ने की कोई दिशा नही होती,उसके मस्तिष्क में होती आधुनिक जीवन शैली की भोगवादी संस्कृति।वह उसी के मधुर सपने बुनता हुआ कार्य क्षेत्र में उतरता है।अपनी पहुंच शक्ति और साधनों से अनजाना, लालसा की लपटों में जलता हुआ जो करने के लिए बढ़ता है।वह कितना अनुचित कितना उचित सोच नही पाता।वह केवल छटपटाता है,जैनमुनि ने कहा सम्पूर्ण भौतिकता को अपने लिये खींच लेने को।फलस्वरूप समस्याए बढ़ती रहती है।उलझनों का अंबार लगता रहता है।और अंत मे मिलता है मानसिक तनाव।तनावों से मुक्त होने के लिए अपनी कार्यशैली को बदलना होगा।अपने साधनों अपनी योग्यता और अपने सामर्थ्य का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।महाश्रमण ने कहा अन्य व्यक्तियों के प्राप्त साधनों से प्रतिस्पर्धा करना और स्वयं को भौतिकता की अंधी दौड़ में सम्मिलित करना एक मूर्खता है।ऐसी मूर्खताओं को छोड़कर अपने धरातल पर चिंतन होना चाहिए।अपने शक्ति सामर्थ्य और साधनों के आधार पर अपनी दिशा का निर्धारण होना चाहिए।रितेशमुनि ने कहा आज जनजीवन में चरित्र निर्माण के उपर्युक्त तत्व क्षीण हो रहे है।तो इसके दो कारण है पहला कारण तो यह है कि धर्म को साधना तक सीमित कर देखा जाता है तो यह तत्व आगे कैसे बढेंगे।दूसरा कारण है अनास्था, धर्म के प्रति मानव मन मे जो आस्था का सम्बल चाहिए वह टूट रहा है।प्रभातमुनि ने कहा आज धर्म को प्रचलित साम्प्रदायिक व्याख्याओं के स्थान पर चरित्र निर्माण के उपयोगी तत्व में समझना आवश्यक है।

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