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लोकतंत्र,स्वतंत्रता और समानता के महत्वपूर्ण मूल्यों की याद दिलाता है गणतंत्र दिवस*

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*लोकतंत्र,स्वतंत्रता और समानता के महत्वपूर्ण मूल्यों की याद दिलाता है गणतंत्र दिवस*

भारतीय से संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू कीया गया।उस दिन से अब तक हम सभी धूमधाम से मना रहे है। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश अंग्रेजी शासन की हुमुमत से आजाद हुआ था।उस समय भारत के पास स्वयं का कोई संविधान नही था।काफी विचार के बाद भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया और 26 नवम्बर 1949 को इसे अपनाया गया।लेकिन 26 जनवरी 1950 को इसे पूरी तरह लागू किया गया।26 जनवरी का दिन हमे लोकतंत्र,स्वतंत्रता और समानता के महत्वपूर्ण मूल्यों को याद दिलाता है।26 जनवरी के इस महान दिवस को याद रखने के लिए इसे हम धूमधाम से मनाते है।जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।उनके बलिदानों के कारण आज हम अपने अधिकारों का उपयोग कर पा रहे है।इस दिन को हम अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों का सम्मान करते हुए मनाते है।लेकिन आजादी मिलना ही काफी नही था।उसे संजोना भी अति आवश्यक था।इसलिए हमारे संविधान निर्माताओ ने वो इतिहास रचा,जिसने गणतंत्र को मजबूत आधार दिया।ड्रॉ भीमराव अंबेडकर,राजेंद्र प्रसाद जैसे महापुरुषों की सूझबूझ और दूरदर्शिता ने हमे वो प्रकाश स्तम्भ दिया।जो हमे लोकतंत्र के अंधकार से निकाल कर न्याय समानता और भाई चारे के उजाले में लाता है।26 जनवरी का दिन लोकतन्त्र की ताकत को दर्शाता है।संविधान का पालन करते हुए देश को आगे बढ़ाने का काम करना होगा।26 जनवरी हमारे लोकतांत्रिक भावना की जीत का भी प्रतीक है।देश स्वंतत्र होने के बाद भारत ने इन वर्षों में बहुत तरक्की की है।विकास के पथ पर अग्रसर है।देश की आजादी के बाद राजनेताओ ने शुरुआती दौर में जिस रफ्तार से विकास को गतिमान बनाने का संकल्प दोहराया गया था।वह कमजोर था।हम अब विश्व की तीसरी शक्ति बनने जा रहे है तो यह पिछले कुछ वर्षों की मेहनत है।हमारे देश मे परिवारवाद की राजनीति के कारण देश गरीबी रेखा से ऊपर नही उठ सका।कानून व्यवस्था चरमरा गई थी।आजादी के बाद नक्सलवाद और आतंकवाद के काले कहर ने हजारो लोगो को मौत के घाट उतार दिया ।ऐसा नहीं कि भारत की एकता और अखंडता बाधित नही हुई है। भारत ने तरक्की भी की है।सैन्य ताकत और अंतरिक्ष की कामयाबी किसी से कम नही है।मेक इन इंडिया,मेड इन इंडिया के जाज्वल्यमान नक्षत्र की उस उपलब्धि को नकार नही सकते है।भारत आर्थिक स्वावलम्बन में आगे है।लोगो की आर्थिक सफलता से विश्वास बढ़ा है।जल थल और नभ तीनो सेनाओं के शौर्य पराक्रम की मिसाल दी जा रही है।लेकिन आज सबकुछ विपरीत है।देश की सत्ता के गलियारों में घूमने वालो पर प्रश्न चिन्ह लगने लगा था।देश की आजादी के बाद अनेक अनचाही समस्याओ से जूझना पडा था।
राष्ट्र की अस्मिता पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे थे।भारत ने अपनी आजादी,अहिंसा और सत्याग्रह से प्राप्त की थी।मगर सत्ता के भूखे लोग पद और प्रतिष्ठा पाने के लिएअनुचित मार्ग भी अपनाते रहे।सत्ता का संघर्ष प्रत्येक युग मे होता रहा है।विश्व के अनेक देशों में सत्ता के लिए खूनी संघर्ष हुए है।ये संघर्ष आज भी चल रहे है।छोटे छोटे देश आतंकवाद का सहारा लेकर चुनी हुई सरकार को हटा देते थे।भारत भी अछूता नही था।उनको देश से कोई सरोकार नही था।उनको तो हर हालत में सत्ता चाहिए।चुनावो में अवैध तरिके अपनाये जाते रहे है।विधायको और सांसदों को पद और पैसा देकर खरीद लिया जाता था।क्या यह उचित है?जीतता कोई और सत्ता पर अधिकार कोई दूसरा कर देता था।आज देश मे हजारो लोग है जो महावीर बुद्ध और गांधी के कायल है।फिर भी विरोध के स्वर उठते है।हड़तालें एवं आंदोलन होते है।सरकार नये चुनाव करवाती है।हम देख रहे है कि जनबल के समक्ष सता के शिखर पर बैठे लोग चुपचाप नीचे उतरकर विपक्ष में बैठ जाते है।वर्षो तक इस देश मे एक ही दल का शासन था।अब स्थिति अलग है।चुनाव के द्वारा सत्ता परिवर्तन अहिंसात्मक तरीका है।आज कोई राष्ट्र निर्माण की बात करता है तो उसके षड्यंत्र की बू आने लगती है।गरीबो के उत्थान की,नारी के सम्मान की कोई बात करता है तो लगता है वह हमको विचलित कर रहा है क्योंकि कथनी करनी समान नही है।जो कथनी करनी की एकरूपता रखे हुए है ,उन पर जनता भरोसा कर रही है।इन वर्षों में भारत भौतिक रूप से सम्पन्न है।आज के दिन हमारे विचार,परम्पराए और बड़े बुजुर्गों के अनुभवों का नई पीढ़ी को लाभ उठाकर राष्ट्र निर्मण का व्रत लेना चाहिए।संकीर्ण और विभाजनकारी निर्णयों को रोकना चाहिए।तभी विकसित देश बनाने के लिए कामयाब हो सकते है।गणतंत्र दिवस को धूमधाम से मनाना चाहिए।

                 

                        *कांतिलाल मांडोत*

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