*सामायिक समभाव का प्रतीक-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*सामायिक समभाव का प्रतीक-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 30 जुलाई
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा के स्थानक भवन मे विराजमान संत जिनेन्द्रमुनि मसा आदि ठाना 4 के सानिध्य में प्रवचन माला में संत जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि सामायिक समभाव का प्रतीक है। सामायिक करते समय एकाग्रता रखते हुए सम भाव रखना चाहिए।राग द्वेष रहित ज्ञान दर्शन और चारित्र से मोक्ष का भाव रखना है।अड़तालीस मिनट की इस साधना में एकचित होकर शुद्ध भाव से भगवान में मन पिरोकर साधना करनी चाहिए।मुनि ने कहा अनुकूल और प्रतिकूल दोनों परिस्थितियों में सम रहना है ।सामायिक की साधना कर्म निर्जरा के लिए महत्वपूर्ण है।चारो तरफ विषमता का वातावरण है।इसलिए हर एक व्यक्ति दुःखी है।मुनि ने कहा दुःख का कारण आर्थिक विषमता नही है,बल्कि मानसिक विषमता है।आर्थिक विषमता अगर दुःख का कारण होती तो सभी धनाढ्य व्यक्ति सुखी होते।विषम परिस्थितियों को पार करने के लिए भगवान ने सामायिक की विधि बताई,जिसे मन हल्का और भगवान के साथ जोड़कर सुख अनुभव किया जा सके।मुनि ने कहा संयमी के जीवन काल पर्यंत समयिक होती है।श्रावक श्राविकाओं को गुरुजनों ने विषय कषाय में रहते हुए सामायिक करने की प्रेरणा दी गई है ।संत ने कहा जिनवाणी का हमारे ऊपर उपकार है।जिसे हमे सामायिक करने का अवसर प्रदान हुआ।संत रीतेश मुनि ने कहा कि अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्येक आवश्यक क्रियाएं करता है।वह अर्थदंड रूप हिंसा है।बल्कि आवश्यकता व बिना किसी प्रयोजन के अनर्गल स्वछन्द प्रवृति करता है वह अनर्थ दंड हिसा है।इससे महापाप का भागी होता है।मुनि ने कहा अपने जीवन को सीमित कर लेता है तो वह अल्पारंभी व अल्पपरिग्रह होने से अल्प हिंसा का भागी है।प्रभातमुनि ने कहा कि जैन धर्म अनेकान्तवाद में मानता है लेकिन कर्मवाद में भी एक मुख्य स्थान रखता है।व्यक्ति जो भी कर्म करता है, उसे उसी के अनुरूप फल भोगना पड़ता है।जैन मुनि के चातुर्मास के इस पवित्र और आत्मकल्याण के अवसर का लाभ लेने लोग दर्शन कर प्रवचन श्रवण का सुअवसर प्राप्त करने के लिए स्थानक भवन पर पहुंच रहे है।
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