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संतोष सांसारिक जीवन का सबसे बड़ा आनन्द है-जिनेन्द्रमुनि म.सा*

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*संतोष सांसारिक जीवन का सबसे बड़ा आनन्द है-जिनेन्द्रमुनि म.सा*

कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 10 नवम्बर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वाधान में आयोजित सभा मे जिनेन्द्रमुनि म.सा ने फरमाया कि संतोष को छोड़कर शेष सारी वृतिया दुःखमयी है।इसलिए व्यक्ति को हर स्थिति में संतुष्ट रहना चाहिए।आज का युग अर्थ की दिशा में बढ़ता जा रहा है।संतोष मानवीय गुणों में एक प्रमुख गुण है।जिनेन्द्रमुनि ने कहा कि हम अपने गौरवशाली इतिहास और वर्तमान युग के तीन दशक पहले की सामाजिक स्थितियो पर दृष्टिपात करे तो यह झलक स्प्ष्ट दिखती है कि उस काल का मानव भी धनार्जन की कामना तो करता था किंतु उस कामना के पीछे सदुपायो,शुभ आकांक्षाओ की शुभ भावनाएं रहती थी।इससे वह गलत मार्ग को धनार्जन का माध्यम नही मानता था।परिणामस्वरूप, जितना वह अपने श्रम से अर्जित कर पाता,उससे उसे पूर्ण संतोष प्राप्त होता था और उससे इस सीमित आय से ही अपना व परिवार का भरण पोषण करने की समुचित व्यवस्था बना लेता था ।मुनि ने कहा आज युगीन मान्यताएं बदल चुकी है।संस्कृति का संक्रमण युग बदल रहा है।हमारे भारतीय बन्धु भी पाश्चात्य दुनिया की साधन संपन्न परिस्थितियों के लिए लालायित हो उठे है।जैन संत ने कहा जब आवे संतोष धन,सब धन धुल समान वाली कहावत बोलते हुए कहा कि सर्वोत्कृष्ट मनुष्य वह है,जिसे सर्वोत्कृष्ट संतोष है।जिनेन्द्रमुनि ने कहा कि लोभ के कारण संसार मे समस्त पापो की उत्तपत्ति होती है।इस लोभ का ही दूसरा नाम लालच है।लालच से सारे गुण नष्ट हो जाते है औऱ उसका स्थान ग्रहण कर लेते है क्रोध द्वेष और माया।मुनि ने कहा शायद ही कोई ऐसा पाप बचता हो जो लालच से पैदा न होता हो।मुनि ने कहा जिस मनुष्य के अन्तः करण में लालच का दैत्य एक बार प्रवेश कर गया,उसके लिए फिर जघन्य से जघन्य पाप कर डालना असम्भव नही रहता।आज का मानव दिन ब दिन अधिकाधिक लालची लोभी होता जा रहा है।लालच क्रूर मानसिक दुर्गुण या दोष है।जिसके वशीभूत हुआ व्यक्ति स्वजनों और मित्रों की गौरव गरिमा को धूल में मिलाकर उनके साथ विश्वासघात जैसा भयानक पाप करके भी अपनी सफलता पर अट्टहास करता है।रितेश मुनि ने कहा कि जिनप्राणित धर्म देह का धर्म नही है,वह आपका धर्म है।तुम आत्मा हो,शरीर नही हो।इसलिए वह तुम्हारा यानी आत्मा का धर्म है।जो आत्मा का स्वभाव है।वही आत्मा का धर्म है।तत्वदर्शी संत कहते है कि यदि ढूंढना ही चाहते हो तो यह ढूंढो कि आत्मा की शीतलता कहा मिलेगी।प्रभातमुनि ने कहा कि हमारी प्यास ज्ञान की प्यास नही यह बदल जाते है,संसार बदलता है,परिभाषाए बदल जाती है,पर धर्म नही बदलता।धर्म सनातन है,वह शाश्वत है और त्रिकालबाधित है।धर्म निगोढिया जीवो को भी मोक्ष की और उन्मुक्त करता है। सभा मे प्रवासियों का आगमन हुआ।सायरा निवासी मोहनलाल पुनमिया पुखराज सायरा सोहनलाल मांडोत भरत बम्बोरी अशोक मादरेचा आदि श्रावक उपस्थित रहे।

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