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तन और धन ही नहीं अपनी प्रज्ञा का भी सदुपयोग करिये- जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*तन और धन ही नहीं अपनी प्रज्ञा का भी सदुपयोग करिये- जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 19 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ के तत्वावधान में महावीर गोशाला स्थित स्थानक भवन में प्रवचन माला में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि अपने तन और धन का सदुपयोग हों, इस विषय में तो विवेचना प्रायः होती है, किन्तु अपनी प्रज्ञा का भी सदुपयोग हों ,इस दिशा में हम बहुत कम सोचते हैं। जीवन में खास कर ,मानव जीवन की जितनी विशिष्ट उपलब्धियां है उन में सर्वोत्तम उपलब्धि प्रज्ञा है। संत ने रक्षाबंधन पर बात करते हुए कहा कि रक्षा के लिए बांधा जानेवाला धागा धागा ही नही रहकर वह रक्षासूत्र बन जाता है।द्रोपदी ने रक्षा सूत्र के रूप में आंचल का टुकड़ा बांधा था।मुनि ने कहा रक्षासूत्र बंधन ही नही हर बीमारियों को दूर भगाती है हाथ मे बांधी जाने वाली यह डोर।जैन मुनि ने कहा कि प्रज्ञा से मानव मन में विचारों की सृष्टि होती है। दृढ़ निश्चय का उद्गम भी प्रज्ञा से ही होता है इतना ही नहीं पूर्व अनुभवों की स्मृति भी प्रज्ञा में ही संस्थित होती है। प्रज्ञा मानव का नियामक और प्रेरक तत्व हैं समस्त चिंतनों का मातृ क्षेत्र है। अतः प्रज्ञाका सदुपयोग हो यह इसलिये भी आवश्यक है कि सम्पूर्ण जीवन की सफलता प्रज्ञा पर ही निर्भर करती है। इस पर संत प्रवीण मुनिने कहा कि जिनेन्द्रमुनि ने प्रज्ञा पर जानकारी उपलब्ध कराई है।इसी कड़ी में मुनि ने कहा कि प्रज्ञा को धर्म तत्व से सम्बन्धित करना प्रज्ञा के सदुपयोग के लिये आवश्यक है। धर्म तत्व व्यक्ति को उच्च आदशों से परिचित करता है। साथ जीवन के लिये वह कुछ ऐसे सिद्धान्त देता है जिन से धर्म रहित जीवन भर भी परिचित नहीं हो सकता। वे सिद्धान्त कुछ ऐसे महत्व पूर्ण होते हैं कि जीवन की ही बदल कर रखदेते हैं। परमार्थ, विश्व मैत्री, सद्भाव और अध्यात्म की दिशा धर्म के सिद्धान्तों से ही प्राप्त होती है। धर्म जब प्रज्ञा से जुड़ता है तो प्रज्ञा का अधोगामी चिन्तन ऊर्ध्वगामी बन जाता है । तुच्छ विषयों के स्थान पर विचार धारा उच्चलक्ष्य की तरफ मुड़ जाती है।
आज व्यक्ति के चरित्र का पतन इसीलिये होता जा रहा है कि मानव की
प्रज्ञा को धार्मिक सिद्धान्तों से नहीं जोड़ा जा रहा है।
रितेश मुनि ने कहा कि आज के दौर में अनेक व्यक्ति धर्म और उसके सिद्धान्तों को व्यर्थ समझते हैं इसलिये कि उन्हें धर्म का सच्चा अर्थ कभी मिला ही नहीं । धर्म का सच्चा अर्थ विश्व मैत्री परमार्थ और आत्मानुशासन में है ।
धर्म सार्वभौम महा प्रज्ञा है। मानव की प्रज्ञा उससे जुड़कर स्वतः ही दिव्य बन जाती है। शिक्षा किसी बुराई को मिटा पाना संभव नहीं होगा । बुराई का समाधान प्रज्ञा जागरण में है। मानव की प्रज्ञा जागृत हो जाए तो बुराई कैसी भी और कितनी भी पुरानी क्यो न हों एक दिन समाप्त हो ही जाएगी। याद रखिये प्रज्ञा की स्वीकृति के बिना कोई व्यक्ति छोटे से छोटा पाप भी नहीं करेगा। जब स्वयं प्रज्ञा पाप कार्य के प्रति बगावत कर उठेगी तो जीवन में कोई भी अधर्म कैसे टिकेगा ? प्रभातमुनि ने कहा कि गाय के लिए सुंदर गोशाला बनी हुई है जिस पर सैंकड़ो गायों का पोषण हो रहा है।मुनि ने कहा व्यवसायी से बचा कर गायों को रखा जाता है । सामल गांव के नागरिकों ने गायों का टैम्पो पकड़कर सायरा थाने में सूचना दी।इस पर सायरा थाना के हेडकांस्टेबल यशवंत सिंह झाला और भवानीशंकर जोशी ने तीन गाय और दो बछड़े को छुड़ा कर उमरणा गोशाला में पहुंचाया।इस महापर्व पर अहिंसक कार्य समाज के लिए प्रेरणादायक रहा है।

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