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तृष्णा ने मानव जीवन को कुंठित कर दिया है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*तृष्णा ने मानव जीवन को कुंठित कर दिया है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 21 नवम्बर
संतोष आने पर ही सच्चा सुख प्राप्त होता है।जीवन मे शांति का प्रादुर्भाव होता है।संत महात्मा की अंगुली में जो बल है,वह असंतोषी के अपार वैभव में नही है।बदलते युग मे इस तृष्णा ने विश्व को अपने जाल में लपेट दिया है।संतोष के बिना शांति की कल्पना करना गूलर के वृक्ष पर फूलो को ढूंढना है।जो संतोष को साथ लेता है।उसका जीवन शांति से महक उठता है।उपरोक्त विचार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ तरपाल के ढालावत भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने व्यक्त किये और कहा विन्रम उसे बहार भटकाते है उसकी बाहर भटकन उसे और शांत बना देती है ।संत ने कहा बहुर्मुखी होकर जीने वाला शान्ति को खोजता है उतना ही वह अशांत हो जाता है पर शांति उसे नही मिलती ।उसकी स्थिति तो मृग के समान है जो कस्तूरी को ढूंढने के लिए वन प्रान्तर भटकता है।वह इस तथ्य से बिलकुल अपरिचित है।आप शांति को बाहर तलाशते है,परन्तु शांति आपके भीतर प्रतिष्ठित है।इसे में अज्ञानता की पराकाष्ठा ही कहूंगा।ऐसा नही कि जो अज्ञानी है,वही अशांत हो,जो ज्ञानवंत है,वह भी अशांत है ।शांति का सीधा सम्बंध आत्मबोध से है।जैन संत ने कहा वही शांति को पा सकता है,वहीं जीवन को भी जी सकता है।

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