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बिना मानवता के जीवन विकसित नही होता-जिनेन्द्रमुनि महाराज साहब*

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*बिना मानवता के जीवन विकसित नही होता-जिनेन्द्रमुनि महाराज साहब*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 14 नवम्बर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि आप मे मानवता का आलोक नही है तो जीवन गड़बड़ा जाएगा।इस लोक का जीवन तो गड़बड़ाहट में रहेगा ही,साथ ही साथ परलोक का जीवन भी गड़बड़ा जाएगा।बिना मानवता के जीवन विकसित नही होता।जब फूल खिलता है,तब वह दूर दूर तक अपनी सौरभ फैलाकर वहा का वातावरण महका देता है,मुखरित कर देता है।फूल भँवरों को निमंत्रण देने नही जाता।किन्तु उसकी गंध और मिठास को लेने के लिए वे स्वयं उसकी और दौड़ पड़ते है।अपना माधुर्य और सौरभ दुसरो को देने में ही फूल अपना श्रेय समझता है।इसी प्रकार जब मानव में मानवता का गुण विकसित होते है तो वह अपने जीवन का मधु पहले परिवार को देता है,फिर समाज और राष्ट्र को भी प्रदान करता है।मानवता की उपलब्धि के लिए मानव को सर्वप्रथम स्वभाव से भद्र होना चाहिए, ऋजु सरल होना चाहिए।किन्तु आज तो ऐसा होना,मूर्ख होना माना जाता है।स्वभाव के भद्र को भोंदू कहा जाता है।घर का परिवार भी उसे भोंदू कहकर पुकारते है।जैन संत ने कहा मनुष्य को विनीत होना चाहिए।धर्म का मूल विनय है।जो अभिमान में फुला हुआ है,वह साधु तो क्या भगवान के पास से भी खाली ही लौटेगा, जो फूटा घड़ा है वह सदा ही खाली रहता है।मुनि ने कहा जहा विनय है वही ज्ञान है।सोना भी धातु है और लोहा भी धातु है पर हीरा सोने में ही जड़ा जाता है क्योंकि उसमें लचीलापन है।मुनि ने कहा जीवन मे नम्र बनना है सोना बनना है।जब सोना बन जाता है,तब उसमें अहिंसा,दया सत्य अस्तेय प्रेम करुणा के हीरे जड़े जाते है।रितेश मुनि ने कहा त्याग का मूल्य या सार्थकता केवल आध्यात्मिक क्षेत्र ने ही हो,ऐसी बात नही है।भौतिक जगत के लौकिक व्यवहार में भी त्याग की मूल्यवत्ता है।त्यागी पुरुष का जन सामान्य की दृष्टि में भी विशेष स्थान बन जाता है।उसका त्याग उसे सर्वोपरि बना देता है।जो व्यक्ति नित्य संचयी है,केवल दिन प्रतिदिन संग्रह ही करता है त्याग की ,दान की भावना उसके ह्दय में जन्म ही नही लेती,उसकी प्रतिष्ठा लोक में अत्यंत गिर जाती है,और जो अपना सर्वस्व त्याग देते है,उन्हें लोक में सर्वोपरि सम्मान प्राप्त होता है।दानवीर कर्ण,महाराज शिवि, दधीचि और भामाशाह जैसे दानवीरों की गौरव गाथाये आज भी लोक में जनसाधारण को त्याग के लिए गरिमामयी प्रेरणाएं दे रही है ।धर्मसभा में मोहनलाल पुनमिया ,रमेश दोषी बाबूलाल सायरा मोहनलाल बाफना भैरूलाल बम्बोरीआदि महानुभाव उपस्थित रहे।सुरेश कोठारी का स्वागत किया गया।

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