वाणी में असीम शक्ति है,परन्तु मौन में उससे भी प्रचण्ड शक्ति है-जिनेन्द्रमुनि मसा
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वाणी में असीम शक्ति है,परन्तु मौन में उससे भी प्रचण्ड शक्ति है-जिनेन्द्रमुनि मसा
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 27 नवम्बर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ईसवाल के भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि भारतीय मनीषियों ने हमारी वाणी को वाकशक्ति बताया है।कहा जाता है जब कोई बोलता है तो वह मनुष्य है और जब मौन होता है तो देवता है।यानी वाणी मनुष्य की भाषा है तो मौन देवताओं की भाषा है।वाणी में असीम शक्ति है।मनुष्य अपने अंतःकरण की शक्ति को बोलकर ही बिखेर देता है।किंतु साधक मौन रहकर उस शक्ति को आत्मशक्ति को संवर्धन में उपयोग करते है। और मौन द्वारा अपने भावों को अत्यधिक प्रभावशाली बना देता है।मुनि ने कहा कि व्यक्तित्व को और प्रभावशाली और लोकप्रिय बनाता है।जो जितना कम बोलता है।उसकी वाणी उतनी ही प्रभावशाली होती है।जैन संत ने कहा मौन मनुष्य की सर्वप्रियता का एक अचूक साधन है।मौन रहने वाला कलह,कटुता से बचता रहता है।मौन एक रक्षा कवच है ज्ञानियो का भी और मूर्खो का भी।ज्ञानी मौन रहता है तो वह उसका गुण है।भूषण है और सत्यव्रत की रक्षा कर सकता है। लोकप्रियता को बनाये रख सकता है।लोग उसे समझदार समझते है।मूर्खता का ढक्कन है मौन!मुनि ने कहा मौन कभी भी दूसरों को हानि नही पहुंचा सकता है।जबकि मनुष्य बोलकर कलह,विग्रह विद्वेष फुट और हिंसा को भड़काता है।दुसरो के दिलो में तीर चुभो सकता है।जिसमे दंगे फसाद खून खराबा होता है।उसमें भड़कीले भाषण उतेजक शब्द ही ज्यादा काम करते है।पहले बोली चलती है।फिर गोली चलती है ।मुनि ने कहा अंडे देने के बाद मुर्गी यह मूर्खता करती है कि वह चहचहाने लगती है।उसकी चहचहाट सुनकर कौआ आ जाता है।वह उसके अंडे छीन लेता है।जो वस्तुएं अपनी भावी संतान के लिए खाने के लिए रखी थी,उन्हें भी वह चट कर जाता है।अगर वह छुप रहती तो दोनों आफतो से बच सकती थी।यह बोलने का परिणाम है।जैन मुनि ने कहा संसार का इतिहास उठाकर देख लो।जितने भी अनर्थ हुए है,युद्ध हुए थे,नरसंहार हुए है,उनके पीछे सबसे बड़ा कारण वाणी रही है।बोलने से ही अनर्थ हुए है।इतिहास का उदाहरण देते हुए मुनि ने कहा कि द्रोपदी एक कटु वचन नही बोलती तो महाभारत की विनाश लीला नही होती, कुरुक्षेत्र में खून की नदियां नही बहती।विशाल सेना का विनाश क्यो हुआ?एक द्रोपदी के बोलने के कारण।दशरथ अगर कैकयी को वचन नही देते,तो न तो राम की जगह भरत का राजतिलक होता और न ही राम वनवास जाते।और रावण के साथ कभी युद्ध होता।मुनि ने कहा आज भी परिवार समाज व राष्ट्र के किसी भी क्षेत्र में चले जाइये,जितने विग्रह से संघर्ष होते है,परिवार टूटते है,उनके मूल में कही न कही बोलना ही मुख्य कारण रहता है।सास बहू के कलह अगर सास मौन रखले तो बहु अकेली कितनी देर बोल सकेगी।अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता।बिना घास की चिंगारी किसको जला नहीं सकती।संत ने कहा सुखी जगह पर गिरी आग अपने आप बुझ जाती है,अकेला व्यक्ति कलह नही कर सकता।
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