नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे 9974940324 8955950335 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , महात्मा गांधी का जीवन सद्गुणों का, सत्संकल्पो का एक प्रेरणा स्त्रोत* – भारत दर्पण लाइव

महात्मा गांधी का जीवन सद्गुणों का, सत्संकल्पो का एक प्रेरणा स्त्रोत*

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

गांधी जयंती पर विशेष
*महात्मा गांधी का जीवन सद्गुणों का, सत्संकल्पो का एक प्रेरणा स्त्रोत*

भारतीय इतिहास में दो अक्टूबर का दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। जैसे चैत्र सुदी तेरस के दिन भगवान महावीर, वैशाखी पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध, चैत्र सुदी नवमी के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम और भाद्रव कृष्ण अष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का इस धरा पर अवतरण हुआ था। उनके जन्म से पृथ्वी पर करुणा, दया, नीति और धर्मरक्षा का एक प्रभावशाली आभामंडल बना, जिसने रक्षा कवच की तरह मूक पशुओं की रक्षा की। नारी जाति के कल्याण का पथ प्रशस्त किया। मर्यादा पालन का उत्कृष्ट आदर्श स्थापित किया तथा राक्षसों के मनमाने दुराचारों पर अंकुश लगाया एवं मानव रूप में अनीति व क्रूरता के साक्षात् अवतार नर-पिशाचों का संहार कर धर्म व नीति की स्थापना में अपना योगदान किया। उसी प्रकार दो अक्टूबर का दिन पराधीन भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में एक स्वर्ण किरण बनकर आया । आज के दिन जिस महापुरुषों ने जन्म लिया वह साधारण मानव ही था, किन्तु उस दुबली-पतली-सी काया में असाधारण आत्मबल, अद्भुत मनोबल का एक पूंजीभूत प्रकाश छिपा था, जिसकी प्रकाश किरणों ने दासता दुर्बलता, अज्ञान और अशिक्षा के घनीभूत अंधकार को चीर कर सम्पूर्ण एशिया खंड में स्वतन्त्रता, स्वाधीनता, अहिंसा और देश प्रेम का आलोक भर दिया। भारतीय जीवन के सुप्त आत्मविश्वास को जगा दिया। उसने सिद्ध कर दिया कि हिंसा, आतंक, लूट और भय आधार पर टिकी सत्ता, बन्दूक, तलवार और बमों के बल पर भोली प्रजा का शोषण करने वाली विदेशी ताकत अहिंसा और सत्य, देशप्रेम और आत्म-बलिदान की महाशक्ति के समक्ष टिक नहीं सकती।गांधीजी के विचार,उनकी दिनचर्या और उनके दैनिक कार्य किसी को पसंद है या नही है।लेकिन महात्मा गांधी को जानना ही पड़ेगा।मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है।सत्य मेरा भगवान है।अहिंसा उनसे मिलने का साधन है।गांधी को पढ़े बिना उनकी आलोचना करना आज फैशन बन गया है।जिन लोगो ने गांधी की जीवनशैली को पढ़ा है,वे सोचने के लिए मजबूर हो गए।आज टीवी पर गांधी के नाम पर आलोचनाओं की झड़ी लगा दी जाती है।लेकिन देश की आजादी प्राप्त करने के लिए उनका अहिंसा का मार्ग था।गाँधीजी का जीवन सद्गुणों का सत्संकल्पों का एक प्रेरणा स्रोत था। उनके विचार, उनका आधार, उनके संस्कार और उनका व्यवहार सत्य, अहिंसा, स्वावलम्बन, सादगी और सदाचार का मूर्तिर्गत स्वरूप था। गाँधी का चरित्र, गाँधी का चिन्तन सत्कमों की सुवास से महकता गुलदस्ता था। उनके सम्पर्क में आने वाले सैकड़ों-हजारों कार्यकर्ताओं का जीवन सद्गुणों व सद्विचारों की सुवास से महक उठा था। गाँधीजी के अनुयायी थे- विनोबा भावे, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल आदि।

उनका जीवन तो राष्ट्र के लिए प्रकाशपुंज बना ही किन्तु केवल गाँधीजी के निकट रहने वालों का, उनके क्षणिक संपर्क में आने वालों का जीवन भी उनके सद्विचारों की सुगंध से महकने लग गया था।गुजरात के पोरबन्दर शहर में एक धार्मिक गुजराती परिवार में दो अक्टूबर के दिन जिस तेजस्वी बालक का जन्म हुआ उसका नाम था मोहनदास। लोग उसे मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के नाम से जानने लगे। बालक मोहनदास जन्म से ही कुछ विलक्षण गुणों का पुंज था। माता-पिता के संस्कार, परिवार के वातावरण से प्रभावित होकर उसमें जन्म से ही सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, कर्तव्य भावना और संकल्पशीलता के सद्गुणों का विकास हुआ। यूं तो माता के गर्भ से सभी व्यक्ति एक शिशु के रूप में जन्म लेते हैं। जन्म लेते ही कोई महापुरुष या बड़ा आदमी नहीं होता।बात यह है कि बड़ा आदमी जन्म लेता नहीं, बनता है। जन्म लेते समय राम भी बालक थे, कृष्ण भी बालक थे और महावीर भी बालक ही थे। किन्तु वे सद्गुणों के बल पर अपने पूर्व जन्मों के सुसंस्कारों के प्रभाव से कुछ ऐसी विलक्षण विशेषताऐं लेकर प्रकट होते हैं जो बीज से वट-वृक्ष बन जाता है। कण से जो सुमेरू बन जाता है। पुरुष से महापुरुष बन जाता है। बालक मोहनदास भी जन्म से कुछ विलक्षणताओं के धनी थे।

*लंगोटी क्यों पहनी*

गाँधीजी केवल एक धोती पहनते थे। शुरु में उनकी यह पोशाक नहीं थी। वे अपनी परम्परागत गुजराती पोशाक में देश के कोने-कोने में भ्रमण करते थे। उन्होंने शरीर पर केवल एक धोती धारण की, इसके पीछे भी एक प्रेरक घटना है।
गाँधीजी एक बार उड़ीसा की यात्रा कर रहे थे। वहाँ उन्होंने एक गरीब स्त्री को देखा, जिसका कपड़ा बहुत ही मैला और फटा हुआ था कपड़ा भी इतना छोटा था कि उससे उस महिला का केवल आधा शरीर ही ढंका जाता था। गाँधीजी ने कहा- ‘बहिन ! तुम अपने कपड़े धोती क्यों नहीं? इतना आलस्य क्यों करती हो कि कपड़ा इतना मैला रहे? उस स्त्री ने सलज्ज दृष्टि से बापू की ओर देखा और कहा- ‘इसमें आलस्य की बात नहीं है श्रीमन् ! मेरे पास इसके अलावा कोई दूसरा कपड़ा ही नहीं है जिसे पहनकर मैं इसे धो सकूँ।’
उस स्त्री का यह कथन सुनकर गाँधीजी की आत्मा द्रवित हो उठी और वे मन-ही-मन कह उठे- ‘हाय ! आज मेरी भारत माता के पास पहनने को चिथड़े तक नहीं हैं।’ उसी समय गाँधीजी ने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक भारत स्वतन्त्र नहीं हो जाता और गरीब आदमी को भी देह ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नहीं मिलता, तब तक मैं कपड़ा नहीं पहनूँगा। लाज ढकने के लिए अपने पास एक लंगोटी रखना काफी होगा और गाँधीजी ने उसी समय अपनी परम्परागत पोशाक का परित्याग कर दिया।
घटनाएँ समुद्र में उठती तरंगें हैं। तरंगें उठती और मिट जाती हैं, किन्तु कभी-कभी तरंगें तूफान या ज्वारभाटा का रूप लेती हैं तो समूचे समुद्र को मथ डालती हैं। कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो जीवन के सम्पूर्ण व्यवहार को बदल देती है।सत्य-अहिंसा की प्रयोगशाला गाँधीजी के अनुकरणीय गुणों का, उनके जीवन-दर्शन का, वस्तुत: गाँधीवाद का वर्णन किया जाए तो एक बड़ा ग्रंथ भी छोटा पड़ेगा। गाँधीजी का जीवन सत्य-अहिंसा-प्रेम की एक जीती-जागती प्रयोगशाला थी। भगवान महावीर के ढाई सौ वर्षों के बाद उनकी अहिंसा को जितनी सूक्ष्मता और सार्वभौमता के साथ गाँधीजी ने समझा और समझदार जीवन में प्रयोग किया, अहिंसा की अजेय शक्ति से संसार को परिचित कराया, वह अपने आप में महत्वपूर्ण हैं।
कहावत है ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता’ परन्तु इस कहावत को झूठी कर दिया गाँधी ने अकेले गाँधी ने भारत की सुप्त आत्मा को जगा दिया। देश की अस्मिता को प्रचण्ड बना दिया। अकेली एक चिनगारी ने ब्रिटिश सत्ता के महावन को जलाकर राख कर डाला। सत्य अहिंसा की एक ही हथौड़ी ने गुलामी और पराधीनता की बेड़ियों को तोड़कर चूर-चूर कर दिया। यह बल उनके दुबले-पतले शरीर का नहीं, किन्तु सुदृढ़ जागृत आत्मा का था। सत्य, अहिंसा का बल था । आज गाँधी जयन्ती के दिन हम उनके चरित्र की छोटी-छोटी बातों का स्मरण कर उनसे प्रेरणा लें तो हमारे भीतर भी एक गाँधी जैसा पौरूष पैदा हो सकता है। आने वाली पीढ़ियाँ शायद यह विश्वास भी करें या न करें कि ‘गाँधी नाम का एक ऐसा व्यक्ति भी हुआ था जिसने अकेले की बिना तीर-तलवार के, बिना जादू-टोने के इतनी विशाल ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंका और भारतमाता को स्वतन्त्रता के गौरव से मण्डित किया।’ एक व्यक्ति ने हजारों त्यागी, बलिदानी, विद्वानों और देशभक्तों की एक फौज खड़ी कर दी। यह सब एक चमत्कार से कम नहीं है। संसार चमत्कार को नमस्कार करता है। गाँधीजी ने सचमुच एक चमत्कार पैदा कर दिया। आज हम उस सत्य, अहिंसा के चमत्कारी पुरुष को याद करके प्रेरणाएँ लें। यही गाँधी जयंती का सन्देश है।


                               कांतिलाल मांडोत

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

September 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
30