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धर्म के नियमो में स्वास्थ्य सुरक्षा निहित है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*धर्म के नियमो में स्वास्थ्य सुरक्षा निहित है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 6 नवम्बर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा मे जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि आहार जीवन का आधार है।यह एक चाक धुरी है जिस पर जीवन घूमता है।जीवन का पूरा चक्र आहार से संचालित है।धर्म के सारे नियम स्वास्थय रक्षा की कुंजी है।अस्वस्थता अधर्म की देन है।जब तक जीवन मे ओज विधमान है तब तक व्यक्ति जीवित रहता है।ज्यो-ज्यो-व्यक्ति भौतिक विकास करता गया त्यों-त्यों वह अपनी परम्परा संस्कृति से विमुख होता गया।आहार से सन्दर्भित भारतीय संस्कृति चौका की संस्कृति थी।आज चौंका को लोग भूल गए है।चौंका उनके लिए एक दकियानूसी रूढ़िवादी बनकर रह गया है।मुनि ने कहा रात्रि भोजन अनेक बीमारियों की जड़ है तथा आहार के लिए प्रदूषण रहित शुद्ध वातावरण का होना बहुत जरूरी है।

सूर्य के ताप को श्रेष्ठ आहार की व्याख्या करते हुए कहा कि यह हमारे पोषण का केंद्र है।प्रत्येक क्षेत्र का वायुमण्डल हमारे जीवन की हर क्रिया को प्रभावित करता है तो आहार को क्यो नही प्रभावित करेगा?बहुत कम लोग ऐसे है जो शुद्धि का ध्यान रखते है।बाजार में नालियों के पास जहाँ गन्दगियाँ बहती रहती है मच्छर भिनभिनाते रहते है।नाले की दुर्गंध उड़ती रहती है।वातावरण और पर्यावरण की दृष्टि से कितने प्रदूषित है।मुनि ने कहा कि ऐसे स्थल पर जो कुछ खाया पिया जाएगा स्वास्थ्य के प्रतिकुल होगा।संत ने कहा जैन धर्म वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।वह मानव को प्रामाणिक जीवन जीने की बात कहता है।इसलिए जैन धर्म मे रात्रि भोजन का निषेध किया गया है।मुनि ने कहा जो कुछ भी खाते है उसका पाचन तैजस शरीर के द्वारा होता है।तैजस शरीर सूर्य की ऊष्मा से सक्रिय रहता है।जैन धर्म मे प्रत्याख्यान के द्वारा और अन्य धर्मो में व्रत प्रतिज्ञा आदि के द्वारा स्वास्थ्ययहीत में अनेक विधियों की स्थापना की है।उन्हें जीवन मे स्थान देना चाहिए।मुनि ने कहा गरिष्ठ भोजन दुष्पाश्चय होता है।ऐसा भोजन शरीर मे विकृतिया पैदा करता है।मुनि ने जोर देकर कहा बीमारियों के मूल में आहार है।सात्विक आहार चित्तवृत्तियों में विकार नही,सद संस्कारो को जन्म देता है।संत ने कहा सुंदरता, स्वच्छता और पवित्रता के लिए शुद्ध ताजा एवं पौष्टिक आहार आवश्यक है।प्रवीण मुनि ने कहा आज के समय मे मानवता की जगह दानवता पनप रही है।कही राष्ट्रानधता, धर्मान्धता आदि मूढ़ताएं सिर उठा रही है।रितेशमुनि ने कहा कि आदर्शो का कथन चिंतन और श्रवण काफी अच्छा लगता है,पर याद रखिये केवल कथन चिंतन और श्रवण ही पर्याप्त नही है।पहले स्वयं को आदर्श बनाओ,तब विश्व को आदर्श बना सकोगे।प्रभातमुनि ने कहा कि कभी कभी अपने स्वार्थों की सृष्टि रचने के लिए दूसरों की जिंदगी तक को कुचल डालता है।क्या यह उसकी मानवता है?

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