अच्छाई कमजोर पड़ सकती है,मगर पराभूत नही होती-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*अच्छाई कमजोर पड़ सकती है,मगर पराभूत नही होती-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 13 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गौशाला उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि विजय तो सदैव सत्य की ही होती है।समाज मे जो जागृत पुरूष है,उन्हें जागृति के प्रयासों को मन्द नही होने देना चाहिए।उन्हें चाहिए कि वे नई पीढ़ी को सुसंस्कारित करते हुए कुसंग की और रोकने का अहर्निश प्रयास करे।मुनि ने कहा दुर्व्यसनी के साथ रहने से मानव दुर्व्यसनी हो जाता है।जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग शुभ कार्यो में करेंगे तो बुराइयों की और हमारी दृष्टि ही नही जाएगी।क्योकि दीपक तो रोशनी ही देता है।मुनि ने कहा बालक का मन तो रेशम के धागे की तरह मुलायम होता है।उधर आप जिधर चाहे मोड़ सकते है।वर्तमान में माता पिता अपनी संतान को सुसंस्कारित करने की और ध्यान नही दे पाते।प्रवीण मुनि ने कहा भाव ओर विचार व्यक्ति के मन को प्रभावित करते है और मन व्यक्ति के तन को प्रभावित करता है।जैसे हमारे भाव विचार होते है,वैसा ही हमारा मन बनता है।इसी प्रकार जैसा हमारा मन होता है,वैसा हमारा तन का निर्माण होता है।मुनि ने कहा भाव निकृष्ट है तो मन शांत होगा और मन अशांत होगा तो तन तनावजन्य रोगों से घिरेगा।रितेशमुनि मसा ने कहा जो माया में पूरी तरह कैद है,उन्हें चाहे कितना भी समझाया जाये फिर भी वे कुछ भी नही समझ सकते है।हम घोड़ो को तलाब के पास तो ले जा सकते है,मगर पानी तो घोड़ो को ही पीना पड़ेगा।दम्भी भीतर बाहर एक समान नही होता है।मुनि ने कहा धर्म के पथ पर चलना है तो माया के बंधन ढीले करने पड़ेंगे।मोह में आकर के मनुष्य माया में बंध जाता है।वह उसे त्यागने में संकोच करता है।मोह ही तो सब दुःखों की जड़ है।प्रभातमुनि मसा ने उपस्थित श्रावकों को कहा कि माया के जूठे बंधन में बंधकर मनुष्य निज धर्म से विमुख बनकर अपना ही अपकार करता चला जाता है।

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