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अहिंसा के जाज्वल्यमान नक्षत्र अपरिग्रह के आराधक और अनेकान्तवाद के प्रेणता भगवान महावीर

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       भगवान महावीर की जन्म जयंती

अहिंसा के जाज्वल्यमान नक्षत्र अपरिग्रह के आराधक और अनेकान्तवाद के प्रेणता भगवान  महावीर

भगवान महावीर ने आर्यक्षेत्र में जन्म लिया है।सचमुच ही पुण्य भूमि है।इतिहास और साहित्य का अध्ययन करे तो हम देखेंगे कि जितने महापुरुष इस क्षेत्र में हुए है,शायद ही अन्य क्षेत्रों में हुए। यह तीर्थंकरों की जन्म भूमि है तो अवतारों की कर्मभूमि है।इसी पुण्यधरा पर प्रभु महावीर का जन्म हुआ। जन मन के श्रद्धा केंद्र दलित पीड़ित के उद्धारक अहिंसा का जाज्वल्यमान नक्षत्र अपरिग्रह के आराधक और अनेकान्तवाद के प्रेणता महावीर का नाम आते ही ह्दय में आनन्द की उर्मिया उठने लगती है।

  महावीर तो आज भी है
भगवान महावीर की परंपरा तो अति प्राचीन है।ऋषभदेव से चली जैन धर्म की रश्मि महावीर तक आते आते ज्योति बन गई।वे इस काल के अंतिम तीर्थंकर कहलाये।उनके सिद्धान्त आज भी चिंतकों को सोचने के लिए विवश करते है।छब्बीसौ वर्ष पूर्व महावीर ने ऐसा अद्भभुत संदेश दिया।उस समय चाहे इन सिंद्धान्तो की आवश्यकता रही हो या नही,लेकिन आज के युग मे महावीर और उनके सिद्धांतो का सार्वजनिक एवं सार्वदेशिक महत्व है।अपने अक्षुण्ण और अबाधित सिद्धांतो के रूप में महावीर आज भी हमारे बीच है।अहिंसा अपरिग्रह और अनेकान्तवाद की त्रिवेणी महावीर ने ही इस भारत भू पर प्रवाहित की थी।यह त्रिवेणी विश्व मैत्री एवम विश्व समता की प्रतीक बनकर आज भी प्रवाहित है।साम्यवाद और समाजवाद की आधारशिला है।

   महावीर की दृष्टी में सर्वोदय
विनोबा भावे का आंदोलन सर्वोदय जाना पहचाना आंदोलन था।उनके भूदान यज्ञ में अधिक भूमि वालो से धरती का दान मांगकर भूमिहीनों को भूमि दी गई।उस युग मे अधर्म ही धर्म था।संस्कृति का स्थान विकृति ने ले लिया था।नारी का सम्मान नही था,अपितु उसका घोर असम्मान था।उसे भेड़ बकरी की तरह बेचा और खरीदा जाता था।महावीर ने छह महीने तक आहार का त्याग समाज को दृष्टि देने के लिए किया।सबकी आंखे खुली।यज्ञों के बलि देने को धर्म माना जाता था।कैसा भयावह वातावरण था महावीर के युग मे।चारो और अंधेरा ही अंधेरा था।मानो लोग दृष्टिहीन थे।राजा प्रजा को उचित अनुकरण नही दे पा रहे थे।

महावीर के धर्म की भी यही गति थी।वह समर्थ था और समर्थ है।सभी का उद्धार करने की सामर्थ्य महावीर के धर्म मे थी और है।महावीर ने सबको दृष्टि दी कि तुम किसी के आश्रित या मुहताज नही हो।तुम स्वयं ही अपना उद्धार करोगे।तुमारा कल्याण कोई दूसरा नही कर सकता।हाथी को हाथी ही दल दल से निकाल सकता है।दुनिया मे किसी भी धर्म मे हिंसा को स्थान नही है फिर भी आज हिंसा का बोलबाला है।आज मानव जीवन के मूल्य क्षीण होते जा रहे है।समस्याओं के घेरे में विश्व घिरा हुआ है।इसका मुख्य कारण है समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण की अपरिपक्वता तथा अस्वस्थता।भगवान महावीर ने साधना की ऊंचाइयों को छुआ तब उजालों के प्रति जन जन में विशेष अनुराग न था।

विकृति की अनुकृति
जयंती के दिन विशाल आयोजनों में बड़े बड़े मंचो से महावीर के प्रति जो कुछ भावना व्यक्त की जाती है,उससे तो यही लगता है कि लोग भगवान महावीर के प्रति सर्वात्मा समर्पित है।आज विश्व भर में जितनी भी हिंसा है,परिग्रह है,असत्य है,लूटपाट और अब्रह्मचर्य है उसके पीछे मात्र एक ही कारण है और वह भगवान महावीर की अवहेलना।जब हम किसी की बात नही मानना चाहते है,तो उसे पूजनीय बनाकर कही एक और स्थापित कर देते है और फिर उसी के नाम पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकते है।आज वैमनस्य प्रसार पा रहा है।वास्तव में यह मनुष्य के मन का अपना ही विकार है क्योंकि जिस विशुद्धता का वातावरण भगवान महावीर ने दिया था उसमें न कोई वर्ग था,न ही कोई भेद।भगवान महावीर ने प्राणिमात्र से मैत्री का स्वर उच्चारा था।वे पापी से नही पाप से घृणा करने की सिख देते थे।यह घृणा भी केवल उस सीमा तक थी जब तक पापी उस पाप के प्रति पश्चाताप की मुद्रा में न आ जाए, उसे निवृत न पा ले।

महावीर का आत्म कथन
प्रभु महावीर का यही कथन है कि युद्ध मे सहस्त्रों पर विजय पाने के बजाय आत्मा को विजय करो।स्वयं उन्होंने इस कथन को अपने जीवन मे अपनाया।अपने को जीतकर उस स्थित तक पहुंच गए जहाँ से उनके लिए पराजय अर्थहीन हो जाती है और उस अवस्था मे जो भी उनके सन्निकट आया वह थोड़े से प्रयास में ही विजय हो गया।उस स्थिति में इंद्रभूति जैसा प्रकांड व्यक्तित्व उन्हें चुनौती देने आया तो स्तब्ध रह गया।
भगवान ने अहिंसा को सर्वाधिक महत्व दिया।उनका दृष्टिकोण पूर्णतः व्यवहारिक था।वे कभी भी असहज चिंतन में नही रमे।उनकी अहिंसा में कायरता को स्थान नही था।उनके अनेकान्त में साम्यवादी दृष्टि थी।वे अहिंसा को साहसी और अनेकान्तवादी को दृढ़ देखना चाहते थे। भगवान के उज्वल सिद्धातों में कही भी कोई न्यूनता नही थी।वे तो पूर्ण तौर पर पारदर्शी थे।

संकल्प ग्रहण
आज भगवान महावीर की जन्म जयंती के अवसर पर सबसे पहले संकल्प ले कर अपने आचरण में पूर्ण रूप से विशुद्ध,नैतिक,धर्ममय रहेंगे तो निश्चित ही आपका अनुकरण होगा और आपके संग अनेक जन उसी उपलब्धि से अलंकृत होंगे।वे सर्वोदय के प्रतीक थे।उनका सर्वोदय आज भी प्रशस्त है।आज के भोग संस्कृति वाले युग मे महावीर की दृष्टि अहिंसा के समर्थ आलोक से सुख शांति का मार्ग प्रशस्त करने में समर्थ है।दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी है।महावीर के शाश्वत सिद्धांतो से फिर नया आलोक मिलता है।यदि हम एक दूसरे की टांग खींचते रहे तो इतिहास हमे कभी क्षमा नही करेगा।उपासक ही धर्म के विनाशक कहलायेंगे।महावीर किसी व्यक्ति या संप्रदाय विशेष के नही थे।

कांतिलाल मांडोत

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