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*अहंकार एक दिन टूट कर ही रहता है,ज्ञानवान व्यक्ति अहंकार से शून्य होता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*अहंकार एक दिन टूट कर ही रहता है,ज्ञानवान व्यक्ति अहंकार से शून्य होता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 8 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में आयोजित सभा मे प्रवचन माला में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि प्रत्येक मानव अपने मन में कोई-न-कोई महत्वाकांक्षा संजोये रहता है। अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति से तनिक सफलता प्राप्त होते ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति में अहंकार जाग्रत हो जाता है। जब मन में अहंकार जाग्रत हो जाता है तो उसी पल मानव की प्रगति का पथ अवरुद्ध हो जाता है।अहंकार कषायों की दूसरी श्रेणी में आता है। ज्ञानवान व्यक्ति अहंकार से शून्य होता है। जिसमें ज्ञान का अभाव होता है, उसे यदि पद-पैसा प्राप्त हो जाये तो वह आकाश में उड़ने लगता है। उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ते। विनय भाव उसके हृदय में निकल जाता है।
संत ने कहा जहाँ अहंकार जागा, वहाँ व्यक्ति स्वयं को शिखर समझने लगता है। दूसरा उसके समक्ष नगण्य हो जाता है। वह उछलता रहता है। फुटबाल से किसी ने प्रश्न किया- भाई ! यह दुनियाँ वाले तुम्हारे ठोकर क्यों मारते हैं?फुटबाल बोला- मेरे पेट में अहंकार की हवा भरी हुई है, जब तक यह हवा भरी रहेगी, तब तक मैं उछलता-कूदता रहूँगा।लोग मेरे ठोकरें मारते रहेंगे और दुनियाँ मेरा तमाशा देखती रहेगी।
मुनि ने कहा यह तो एक प्रतीकात्मक बात थी, लेकिन जो मानव अहंकार करेगा, मान करेगा, यह दुनियाँ उसके भी ठोकरें मारती रहेगी। अरे भाई ! आप किस चीज का अहंकार कर रहे हो? इस दुनियाँ में आपसे भी कई अच्छे-अच्छे शूरवीर, दानवीर पैदा हुए और चले गये। आज उनका कोई अता-पता नहीं है। अपने धन, वैभव, सौंदर्य का मान करके आत्मा को क्यों मैली कर रहे हो? एक दिन जब तुम्हें सच्चाई का बोध होगा, तब लगेगा कि जीवन के सुनहरे पल हमने व्यर्थ ही खो दिये। जब तक बुद्धि जागृत नहीं होती, मानव मान, अभिमान के खण्डहर में बैठा रहता है। यह अहंकार. अभिमान, मान सभी एक-दूसरे के पर्याय हैं। मान एक दिन टूटकर ही रहता है।इसलिए मानव को जीवन में इससे दूर रहकर ही चलना चाहिए।
रीतेश मुनि ने कहासुख बाहर में नहीं अपने भीतर में है।भगवान महावीर ने कहा कि के जीवन में त्याग है। इच्छा औसतन को साधु त्याग देता है।सच्चा सुख बाहर नही है। वह तो आपके भीतर आपकी आत्मा में है। आत्मा का सुख त्याग और सेवा से मिलता है। कष्ट उठाना दुख अपनाना तप है। सुख देना त्याग है।प्रवीण मुनि मसा ने कहा अपनी योग्यता से किसी के काम आना सेवा है। आपने एक रोटी कम खाई यह तय हो गया। यह एक रोटी किसी को खिला दी,वह त्याग है।प्रभातमुनि ने मंगलाचरण किया और उपस्थित लोगों को कहा कि त्याग जीवन की पहली सीढ़ी है।त्यागने वाला इस लोक और परलोक में आत्मकल्याण करता है।वह पुण्य का भागी बनता है।

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