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अपराधियों की शरणस्थली रहा उत्तरप्रदेश में लखनऊ सबसे अग्रणी*

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*अपराधियों की शरणस्थली रहा उत्तरप्रदेश में लखनऊ सबसे अग्रणी*
शक्तिशाली अपराधी राजनीतिकों के लिए स्वर्ग बना लखनऊ खूनी संघर्ष की रणभूमि में तब्दील होने लगा । अजीत सिंह की हत्या के बाद लखनऊ के अपराध जगत में जहां एक स्थान रिक्त हुआ है, वहीं पुलिस को आशंका थी कि प्रतिद्वंदी गिरोहों के बीच आपसी संघर्ष का माहौल बन रहा था।लिहाजा,लखनऊ में माफिया सरगनाओं की भीड़ के लिए सिर्फ पुलिस जिम्मेदार नहीं थी क्योंकि ज्यादातर दुर्दात अपराधी और शूटर राजनैतिक दलों से जुड़े हुए थे।उनमें आपराधिक पृष्ठभूमि से उभरे विधायक मुख्तार अंसारी और मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया जैसे कुछ लोग राजनैतिक पार्टियों के समर्थन के बिना अपना साम्राज्य चला रहे थे, पर वे सत्ताधारी पार्टी के दाएं-बाएं ही रहते थे। कुछ इसी तरह अजीत सिंह का भी तेजी से उदय हुआ था ।

कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने सपा के टिकट पर विधान परिषद का चुनाव लड़ा तो उनकी काट के लिए कोई उम्मीदवार न मिलने से भाजपा ने एक अन्य रमेश कालिया की पत्नी उषा यादव को मैदान में उतारी । राजनैतिक आकाओं के दम पर लखनऊ में करोड़ों रु. का साम्राज्य स्थापित करने वाले अकेले अजीत सिंह नहीं थे. राजा भैया, अमरमणि त्रिपाठी, अक्षय प्रताप सिंह, अखिलेश सिंह, धनंजय सिंह, मुख्तार अंसारी, अभय सिंह, अजीज उर्फ अजिया और अरुण शंकर शुक्ल उर्फ अन्ना जैसे लोगों का सत्ता के गलियारों में खासा दखल था और इनमें से ज्यादातर किसी राजनैतिक पार्टी के शक्तिशाली नेता थे।
सदन के सम्मानित सदस्य होने पर भी कई लोगों ने लखनऊ के भीतर-बाहर आपराधिक गतिविधियां जारी रखी थी ज्यादातर के पास अपनी ताकतवर निजी सेना और कार्यक्षेत्र थे।करीब 4,000 करोड़ रु. मूल्य के होती थी निर्माण गतिविधियां।
आवास परियोजनाएं और तेजी से फैल रहा बहुमंजिला इमारतों का व्यवसाय माफिया सरगना से सांसद-विधायक बने लोगों के लिए तैयार चरागाह था।उत्तरप्रदेश के जंगलराज की बात करे तो कई दिन तक कहते जाए तो भी पूरा नही होगा। अपना-अपना हिस्सा पाने और शिखर पर बने रहने के चक्कर में माफिया सरगनाओं के गिरोह आपस में लड़ते रहते थे।
जब ये माफिया सरगना परेशानी में होते हैं तो राजनैतिक दल इन्हें अपनी छत्रछाया में लेकर पुलिस के चंगुल से बचाते थे।कुछ वर्षो पहले सत्ताधारी सपा की एक विधायक गीता सिंह ने कथित तौर पर एक पॉश कॉलोनी में जमीन के एक छोटे हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। हालांकि वे इससे इनकार करती रही थी। उनके पति यशपाल सिंह पीएसी के अतिरिक्त महानिदेशक और मुलायम सिंह के करीबी थे। एक अन्य घटना में सपा के वरिष्ठ नेता अरुण शंकर शुक्ल ने भी कथित रूप से एक प्लॉट पर कब्जा जमा लिया था। कई हत्या सहित करीब आधा दर्जन बड़ी आपराधिक वारदातों में सपा के कार्यकर्ता शामिल थे।

कुछ घटनाओं में उन्होंने पुलिस को भी निशाना बनाया था। डीआइजी रैंक के एक अधिकारी का कहना था किउत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में पुलिस अधीक्षक नाममात्र के अधिकारी हैं क्योंकि उनके अधीनस्थ इंस्पेक्टर, उप-निरीक्षक और आरक्षक सत्ताधारी दलों के विधायकों की पसंद और मांग के आधार पर नियुक्त हुए थे।सरकार चाहे सपा की हो या बसपा की.” पर लखनऊ के लोग नही मानते थे कि राजधानी अपराधी राजनीतिकों का अड्डा बन गई थी।आज वर्तमान में योगी आदित्यनाथ की सरकार में सुशासन के साथ विकास खास मुद्दा बना हुआ है।अपराधिक प्रवृतियां खत्म हो गई है।दलितों को अपनी मुट्ठी में समझने वाली मायावती की झोली खाली हो गई।परिवार के साथ तीन महीने तक समाजवादी ड्रामा के चलते अखिलेश को जनता ने नकार दिया।उत्तरप्रदेश की कायापलट करने वाले योगी आदित्यनाथ ने एक मिसाल पेश कर लोगो को शांति से रहने की अपील कर उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही है।मुलायम सिंह नायक माने जाते थे।बेटे ने खलनायक बना दिया।

ऐसे खलनायक को उत्तरप्रदेश के चुनावों में किसी ने नही बुलाया।ऐसी बेचारगी कभी मुलायमसिंह ने नही देखी थी,जहा उन्हें बेटे ने पहुंचा दिया।जनता ने वैसा ही अखिलेश के साथ किया।योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की कोई कसर नही छोड़ी है।आज आर्थिक स्वावलंबन में दूसरी शक्ति बन गई है।धर्म और अध्यात्म में रुचि रखने वाले योगी आदित्यनाथ सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमो में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे है।उत्तरप्रदेश को बुलंदियों तक ले जाने का श्रेय भाजपा के नेता और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही जाता है।

                      *कांतिलाल मांडोत*

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