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भगवान श्रीराम अपने मन्दिर में पधारेंगे, अयोध्या नगरी की  झलक दुनिया निहारेगी*

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*भगवान श्रीराम अपने मन्दिर में पधारेंगे,अयोध्या नगरी की                     झलक दुनिया निहारेगी*
जन जन के आधार ईश मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का नाम आते ही मन श्रद्धाभिमुत हो उठता है।उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि आगामी जनवरी में पीएम राम के मंदिर का उद्घाटन करेंगे।श्रीराम अपने मन्दिर में पधारेंगे।21 लाख दीप जलाकर श्रीराम की अगवानी का नजारा और वैभव दुनिया देखेगी।योगी की धारणा है कि अयोध्या को दुनिया की सुंदर नगरी बनाएंगे।एक बार त्रेतायुग की झलक देखने को मिलेगी।योगी ने कहा कि आज वो लोग पश्चता रहे होंगे जिन्होंने प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में जन्म नही लिया।राम के पवित्र जीवन पर दृष्टिपात करते है तो लगता है कि राम का व्यक्तित्व और कृतित्व सचमुच अद्भुत था।सामाजिक,धार्मिक और राजनैतिक हर क्षेत्र में राम के आदर्शों का अनुपालन करके सुखों को विस्तार दिया जा सकता है।श्रीराम के प्रति श्रद्धा और जन जन के आराध्य देव की दुनिया को प्राप्ति सहज नही हुई है।राम मंदिर के लिए रास्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संघर्ष झेलने के बाद करोड़ो लोगो की आस्था के केंद्र बिंदु भगवान श्रीराम अयोध्या नगरी में बिराजमान होंगे।राम का नाम अपने आप मे प्रभावशाली है।

राम नाम को मणिदीप कहा गया है और मणिदीप हवा तो क्या आंधी तूफान में भी नही बुझता है।ऐसे हमारे श्रीराम के नाम से पत्थर तैरते थे।जिनके माध्यम से हनुमानजी लंका में सीतामाता का पता लगाया।देहरी दीप में पतंगे जलकर नहीं मरते है।देहरी द्वारा पर रखा गया दीपक अंदर बाहर दोनों और के अंधकार का हरण कर लेता है।श्रद्धा से जुड़कर ही व्यक्ति अपने जीवन मे विशिष्ट प्रतीति कर सकता हैहम जीवन मे प्रतिकूल परिस्थिति में घबरा जाते है।हम सर्वांश में सुखी होना चाहते है तो राम की उस स्थिति से जुड़े,उन्होंने दुःख की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आनन्द की अनुभूति की थी।राम को चौदह वर्ष की वनवास की आज्ञा मिली।वनवास की सूचना पाकर तो राम आनंदविभोर हो गए।अयोध्या का राज राम ने बटाऊ की तरह त्याग दिया।अयोध्या त्याग की भूमि है।अयोध्या समर्पण की भूमि है।हर मन मे रामत्व उतर आता है तो संसार की कोई ताकत परिस्थिति हमको विचलित नही कर सकती है।श्रीराम के भव्य और विशाल मंदिर के उदघाटन का नजारा दुनिया देखेगी।इस ऐतिहासिक मन्दिर के उद्घाटन में वैदिक और श्रमण संस्कृति के आराध्य की चमक और झलक से करोड़ो लोगो की आस्था के प्रतीक श्रीराम अपने निज मन्दिर में बिराजकर दुनिया का संताप हरेंगे।राम से संलग्नता जीवन की सार्थकता और सफलता है।जो राम में सलंघ्न है वे कही भी, कभी भी विचलित नही हो सकते है।कोई भी व्यक्ति कार्य को करते समय यदि बार बार असफल होता है तो एक बात प्रायः कही जाती है।अरे!यह भी क्या तुम बार बार असफल कैसे होते हो,क्या तुमारे भीतर राम नही है।बात स्पष्ट है कि सफल होने में भीतर राम अर्थात धर्म,धैर्य,उत्साह साहस और स्फूर्ति का होना नितांत जरूरी है।किसी भी व्यक्ति के द्वारा कोई अकरणीय कार्य हो जाता है तो अक्सर कहा जाता है- इस व्यक्ति के प्रति राम ही निकल गया है।यहा का जन जन राम से जुड़े ,राममय बने एवं संपूर्ण वातावरण में रामराज्य की मंगलमय प्रस्तावना हो।इससे बड़ी उपलब्धि क्या होगी।

                       कांतिलाल मांडोत

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