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चारो तरफ गन्दगी के ढेर,असूची के ढेर लगे हो,जहाँ दुर्गंध उछल रही हो,वतावरण में क्षणभर भी ढहरने का मन नही करता हो उस स्थान को नरक कहा गया है*

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19 अक्टूबर 2025 नरक चतुर्दशी

*नरक चतुर्दशी बाहर-भीतर स्वच्छ बनो !*
*चारो तरफ गन्दगी के ढेर,असूची के ढेर लगे हो,जहाँ दुर्गंध उछल रही हो,वतावरण में क्षणभर भी ढहरने का मन नही करता हो उस स्थान को नरक कहा गया है*
धन-तेरस के पश्चात् आने वाली काली चौदस को भारतीय संस्कृति में नरक चतुर्दशी कहा गया है। पुराणों के अनुसार नरकासुर नाम का राक्षस प्राणियों को कष्ट देता था। स्थान-स्थान पर गन्दगी, अशुचि फैला देता, ऋषियों के यज्ञ-स्थलों को अपवित्र कर देता। स्वर्ग में जाकर उसने देवताओं को भी परेशान किया। देवमाता अदिति के कुण्डल छीनकर ले गया। उसके उत्पातों से मनुष्य देव सभी परेशान हो गये। सबने मिलकर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से प्रार्थना की- हे वासुदेव ! त्राहि माम् ! इस नरकासुर से हमारी रक्षा करो, इस अपवित्र और अशुचिमय राक्षस के दुष्ट हाथों से हमारा त्राण करो। इस दुष्ट के उपद्रवों से हमारी रक्षा करो।तब श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और उसके द्वारा फैलाई हुई गन्दगी हड्डियाँ व माँस के ढेर को साफ करके भूमि को स्वच्छ किया गया। चारों तरफ सफाई अभियान चलाकर धरती को साफ-सुथरी मनुष्यों के रहने योग्य बनाया। उस दिन की स्मृति में इस तिथि का नरक चतुर्दशी नाम प्रचलित है।
विद्वान् लोग मानते हैं कि पौराणिक कथाएँ प्रतीकात्मक होती हैं, उनका सामाजिक, राष्ट्रीय एवं आध्यात्मिक प्रतीक होता है और उस प्रतीक को सूचित करने के लिए, एक विशेष लक्ष्य को उद्घाटित करने के लिए धार्मिक एवं पौराणिक रंग में रंग दी जाती है, ताकि लोक नीरस बात को सरसता के साथ समझ सकें, आध्यात्मिक एवं सामाजिक कृत्य को धर्म के रूप में स्वीकार कर सकें।
चातुर्मास के प्रारम्भ के दो मास वर्षा ऋतु के होते हैं। वर्षा के कारण गाँव, नगर, गली, सड़क, राजमार्ग चारों तरफ गंदगी, कीचड़, सीलन आदि की भरमार होती है। उस कारण डाँस, मच्छर आदि अनेक प्रकार के जहरीले कीट-पतंग पैदा हो जाते हैं। जगह-जगह पानी सड़ता है, कूड़ा सड़ाँध पैदा करता है और उस पर तरह-तरह के जहरीले मच्छर, कीड़े अण्डे देते हैं। बीमारियाँ फैलाते हैं। डेंगू बुखार का प्रकोप हम सब देख चुके हैं। इस प्रकार की संक्रामक बीमारियाँ वर्षा ऋतु के बाद फैलती हैं, गाँवों-शहरों का वातावरण एकदम नरक जैसा गंदा हो जाता है। उस नारकीय गंदगी को दूर कर सफाई-स्वच्छता करने के लिए नरकासुर को भागना पड़ेगा अर्थात गंदगी दूर करके स्वच्छता-सफाई करना ही नरकासुर का नाश करना है। नरक का अर्थ है-गन्दगी।
जहाँ प्राणी को सुख-चैन, आनन्द नहीं मिलता हो, उस स्थान को नरक कहते हैं।
आगमों में नरक का वर्णन करते हुए बताया है- सूर्य-चन्द्र की किरणें नहीं पहुँचती हैं। जहाँ हर समय कीचड़ चिक्खल रहता है। भूमि में सड़ौंध-दुर्गन्ध आती हो और असुचिविसा-चारों तरफ गन्दगी के, अशुचि के ढेर लगे हों। जहाँ दुर्गन्ध उछल रही हो, जहाँ के वातावरण में क्षणभर भी ठहरने को मन नहीं होता हो, ऐसे अपवित्र स्थान को नरक कहा गया है।
हमारे नगर, गली, भवन आदि जहाँ पर भी इस प्रकार की गन्दगी हो, वह स्थान वास्तव में नरक ही माना जाता है। मैं देखता हूँ लोग नहा-धोकर कपड़े साफ-सुथरे पहनते हैं, घरों पर सफेदी व कीमती रंग-रोगन करते हैं, किन्तु दूसरी तरफ उनके रसोईघरों के पास कूड़ेदान में मक्खी-मच्छर भिनभिनाते रहते हैं। नालियों पर कूड़े के ढेर लगे रहते हैं। जहाँ से निकलना भी मुश्किल होता है। यह कैसी सफाई है? सफाई में भी विवेक होना चाहिए। अपना घर, अपना मुहल्ला अगर साफ रखने की आदत बन जाये तो गन्दगी अपने आप दूर हो जायेगी।
*भीतर की सफाई भी करो*
यह तो हुई बाहरी सफाई की बात। केवल बाहरी सफाई करने से ही नरक चतुर्दशी की सार्थकता नहीं होती। बाहरी सफाई के साथ मन की सफाई, जीवन की सफाई भी जरूरी है।
देखो बंदे का धन्धा, तन उजला मन गंदा।तो यह तो कोई सफाई नहीं हुई। मन में अपवित्र विचार भरे हों, दूसरों की निन्दा, चुगली, ईर्ष्या का कूड़ा पड़ा हो, काम-क्रोध की अशुचि सड़ रही हो तो मन पवित्र कैसे होगा? दीपावली को लक्ष्मी-पूजा करना है तो उसके लिए मन की सफाई करना भी जरूरी है। तेरस के पहले-पहले आपने घर, दुकान, मकान सब साफ-सुथरे कर लिये, लीप-पोत, झाड़-बुहारकर कचरा फेंक दिया, यह तो एक तरह की तैयारी हो गई। फिर तेरस आई, तो कुछ परोपकार का, सेवा का, दीन-दुःखियों के दुःख-दर्द दूर करने का संकल्प लिया। सेवा की तब धन-तेरस मन गई। अब विचारों की शुद्धि से, शुभभावनाओं से, मन की पवित्रता से,चिन्तन-ध्यान-सद्भाव से मन को और माँजकर उज्ज्वल कर लिया तो नरक चतुर्दशी सार्थक हो गई। यह दोनों पर्व दीपावली की तैयारी के हैं। दीपावली कैसे मनानी है यह इसका साफ-साफ सन्देश इन दोनों पर्वों में बता दिया है।
नरक चतुर्दशी के प्रसंग में मैं एक आध्यात्मिक और नैतिक बात भी कहना चाहूँगा। नरक चतुर्दशी का एक सन्देश है-नरक के कारणों से बचने का चिन्तन। मन की गन्दगी, विचारों की अपवित्रता तो नरक का कारण क्या, प्रत्यक्ष नरक है। इसके अलावा शास्त्रों में नरक के अन्य अनेक कारण बताये हैं।
चार बातों से प्राणी नरक जाने योग्य पापकर्म करता है। जैसे-महाआरम्भ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय जीवों का वध और माँसाहार। इन चारों कारणों में गागर में सागर की तरह सब कुछ बता दिया है। हिंसा, धन की लालसा, तीव्र आसक्ति, माँसाहार-जिह्वा के स्वाद की लिप्सा, नृशंसता, कठोरता, क्रूरता, उद्योग-व्यापार में नीति और धर्म की उपेक्षा कर अप्रामाणिकता, अत्यन्त लोभ आदि सभी दुर्गुण इन चारों में आ गये हैं। इसलिए संक्षेप में चार बातों के द्वारा भगवान ने बता दिया है-जो व्यक्ति पीछे बताये दुर्गुणों से युक्त होगा, उसका यहाँ भी जीवन अशान्त होगा, उद्विग्न होगा और मरकर परलोक में भी नरक में जायेगा। अर्जुन के एक प्रश्न के उत्तर में योगीश्वर श्रीकृष्ण बताते हैं-नरक में जाने के तीन रास्ते हैं।
काम (मोह-वासना), क्रोध तथा लोभ (आसक्ति) ये तीन नरक जाने के मार्ग हैं। आत्मा का पतन कर ये तीनों उसे नरक में पहुँचा देते हैं।
जहाँ ‘मैं’ अर्थात् अहंकार है वहीं पतन है। पतन का मतलब है नरक। उत्थान का मतलब है स्वर्ग। तो यह तुम मानते हो न ? अहंकार से पतन होता है। अहंकार ‘मैं’ यह अहंकार का दुत्कार है। इसलिए अहंकार भी नरक में जाने का कारण है।”
आज नरक चतुर्दशी के दिन आप दोनों पक्षों पर विचार करें; बल्कि जीवन के समग्र पक्षों पर विचार करें, तन को, मन को, जीवन को, घर-परिवार को, समाज व राष्ट्र को नरक से बचाने का प्रयास करें। बाहरी गन्दगी से भी मुक्त हों। अशुद्धता को बर्दाश्त नहीं करता, जहाँ गंदगी पड़ी हो, अशुचि, रक्त आदि तो उसे साफ किये बिना शास्त्र-स्वाध्याय कर

सनातन धर्म मे तन की स्वच्छता, घर की स्वच्छता, मन की स्वच्छता सबका सन्तुलित विचार है और इस समग्र स्वच्छता के विवेक का यह अवसर है। मन से नरक मिटाओ, विचार से नरक दूर करो और घर से भी नरक दूर करके चतुर्दशी की भावना के दूसरे आदर्श को सार्थक करो।

         *कांतिलाल मांडोत वरिष्ठ पत्रकार*

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