दीपावली भारतीय संस्कृति का महान आध्यात्मिक पर्व है-के जिनेन्द्रमुनि मसा*
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
*दीपावली भारतीय संस्कृति का महान आध्यात्मिक पर्व है-के
जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 31 अक्टूबर
दीपावली पर्व के आगमन पर हर एक व्यक्ति को बेसब्री से इंतजार रहता है।अंधकार हमारा मूल स्वभाव नही है।हमारा अपना मूल स्वभाव है,वह प्रकाश है।दीप पर्व पर हम हमारे भीतर में संयम साधना एवं परमार्थ का प्रकाश पैदा करे,तभी दीपावली के इस पर्व की सार्थकता सिद्ध होगी।जैन परम्परा के अनुसार भगवान महावीर के परीनिर्वाण एवं गणधर गौतम को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति एवम पर्व के साथ जुड़ी हुई है।मर्यादा पुरुषोत्तम राम लंका विजय करके चौदह वर्ष बाद अयोध्या में लौटे थे। उनके मंगल आगमन पर अयोध्या वासियो ने अपने घरों और सम्पूर्ण नगर को दिप को जगमगकर राम का अभिवादन किया था।इसी तरह श्री कृष्ण ने दीपावली से एक दिन पूर्व चतुर्दशी को नरकासुर दैत्य की अनुचित प्रवृतियां से त्रस्त तत्कालीन जन जीवन को नरकासुर का वध करके मुक्त किया था।तभी से दीपावली मनाई जाती है।उपरोक्त विचार श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में आयोजित सभा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने व्यक्त किये।संत ने कहा केवल मकानों दुकानों की सफाई एवं लक्ष्मी पूजन तक ही सीमित नही है।दीप पर्व भौतिक पर्व ही नही अपितु आध्यात्मिक पर्व भी है।इस पर्व की आराधना अधिकाधिक जागरूकता पूर्वक करने का हमारा लक्ष्य होना चाहिए।आतिशबाजी में अपने अर्थ और समय की प्रयुक्ति किसी भी दृष्टि से उचित नही है।आतिशबाजी से जो हिंसाएं भड़कती है,उन्हें नजरअंदाज नही करना है।मुनि ने कहा दीपावली आदि में हम मिठाई आदि खाते है और हमारे ही कई साथी भूख के मारे छटपटाते रहे तो यह स्वार्थभरा दृष्टिकोण है।हमे किसी को खिलाकर ही कुछ खाना चाहिए।मुनि ने कहा अपना पेट तो पशु भीभर लिया करता है।पर यह जरूरी है कि अपने समाज,जाति का बराबर ख्याल रखे।दीपावली पर्व पूण्य कमाने का पर्व है।संत ने कहा दीपावली के पावन अवसर पर यह अभ्यास भी रहे कि हम अपने जीवन मे अच्छाई का समावेश करे और बुराइयों से अपना दामन बचाये सद्गगुणों से समृद्घ जीवन न केवल स्वयं के लिए,अपितु अन्य के लिए भी वरदान सिद्ध होता है।प्रवीणमुनि ने कहा कि राम राज्याभिषेक उत्सव तथा भगवान महावीर निर्वाण की दोनों घटनाओं में समानता यही है कि जनता ने दीप जलाकर प्रकाश उत्सव मनाया।रितेशमुनि ने कहा जैन परम्परा के अनुसार महावीर अपने जीवन के 72वे वर्ष में पावापुरी में चातुर्मास बिताते है और अपना निर्वाण समय नजदीक आया देखकर कार्तिक वदी 14 को ही छठम तप करके उसी दिन में अंतिम उपदेश प्रारम्भ करते है।प्रभातमुनि ने कहा अमावस्या की सघन काली रात में ज्योति का झिलमिल प्रकाश करके दीपवाली मनाने की परंपरा भारतीय संस्कृति के बहुमुखी चिंतन को प्रकट करती है ।
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space