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फैसला बेटे बेटियों की प्रतिष्ठा का*

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फैसला बेटे बेटियों की प्रतिष्ठा का*
प्रियंका राहुल की जोड़ी ने अपनी पार्टी कांग्रेस के पारंपरिक और पुष्तैनी क्षेत्र की किलेबंदी कर उसे सेफ बनाने के लिए बड़ी मशक्कत की गई ।प्रियंका वाड्रा की राजनैतिक सक्रियता और उनकी सभाओं में उमड़ी भीड़ ने युवाओ के साथ ही पुराने कांग्रेसियों और युवतियों-महिलाओ के साथ कांग्रेस विरोधियों के कान खड़े कर दिए।लेकिन यह सफलता नही थी।यह महज एक भाषण सुनने का कांग्रेसियों में राहुल के प्रति आकर्षण था।और प्रियंका के प्रति महज राजनैतिक जुड़ाव था।कांग्रेस एक राज्य में सफल हो रही है।वही दो राज्य हाथ से जा रहे है।2022 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश की सत्ता कांग्रेस के हाथ लगी थी।उस जीत का श्रेय प्रियंका वाड्रा को दिया जाने लगा और प्रियंका की इमेज बढ़ने लगी।कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में प्रियंका बिना पोर्टफोलियो की नेता है।लेकिन कांग्रेस यह समझती है कि गांधी परिवार और प्रियंका वाड्रा से चुनाव में नई रोशनी मिली है तो यह महज भ्रम है।रायबरेली और अमेठी की विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पारंपरिक सीटे मानी जाती थी।लेकिन 2012 में आया तूफान सबकुछ उड़ा कर ले गया।और कांग्रेस को रायबरेली की छह सीटो पर हार का सामना करना पड़ा।

कांग्रेस इस बार लोकसभा चुनाव में दलित प्रधानमंत्री का चेहरा आगे कर उतरना चाहती है।ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर घोषित कर कांग्रेस के गांधी परिवार की साख पर ग्रहण लगा दिया है।उसके लिए राहुल ने कोई जवाब नही दिया।प्रियंका वाड्रा गांधी परिवार के नाम को चुनाव में आगे करके मतदाताओं से वोट देने की अपील करती है।पूर्वजो की पहचान से वोट मांगने वाली कांग्रेस की अपनी कोई ताकत नही बची है। प्रियंका और राहुल का शुरुआती दौर में आक्रामक मुद्रा में दिखाई पड़ना कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पार्टीजनों में ठंडे पड़ते उत्साह को नई दिशा देने में कामयाब रहा।लेकिन मोदी की साख और बढ़ता जनाधार के कारण राहुल और प्रियंका को आगे बढ़ने में रुकावट आने लगी।प्रियंका वाड्रा और राहुल के साथ सभी कांग्रेसी मोदी का विरोध करने लगे।मोदी के पहले कभी इतना टारगेट प्रधानमंत्री के पद को नही किया गया।उसमें हर सभा मे प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती दी गई।

पांच विधानसभा चुनाव में जिस तरह से चुनावी घोषणाएं और पार्टी में राहुल और प्रियंका को सर्वेसर्वा मानने वालों की बड़ी फेहरिस्त है।कांग्रेस ने आजादी के पूर्व से लेकर आजादी के बाद के इतने वर्षो तक जनता की भावनाओ से खिलवाड़ कर वोट बैंक की राजनीति करती रही है।अब मतदाता जागरूक और शिक्षित हो गया है।कुम्भकार की दुकान से मटका ठोक बजाकर लेते है क्योंकि घर जाने के बाद फूटा हुआ निकले तो जवाबदारी किसकी?राहुल के बयान बेतुके और अभद्र होते है।उनके भाषण हम सुनते आ रहे है।कांग्रेस अपने गिरेबान में झांककर देखे।क्योकि मतदाताओं को जुठ परोसना कहा तक उचित है?कांग्रेस राहुल और प्रियंका के कंधे से बन्दूक चलाना चाहती है।हिन्दू और हिंदुत्ववादी की खिल्ली उड़ाने वाली कांग्रेस हिन्दुओ के पास किस मुंह से वोट लेने जाती है।कांग्रेस शुरू से देश मे तरक्की के नाम अडंगेबाजी की है।राहुल और प्रियंका का लगाव रायबरेली और अमेठी के साथ था वो धीरे धीरे फीका पड़ता गया।अभी कांग्रेस और इंडी गठबंधन से उधरे असन्तोष को समाप्त करने के लिए लाख समीक्षा की जाए।लेकिन मतदाता हमेशा जितने वाली पार्टी के साथ रहते है।

2024 में लोकसभा चुनाव है और इंडी गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर उलझन पैदा होती दिखाई दे रही है।क्योंकि हार से बौखलाहट बढ़ने से राहुल और प्रियंका के मन मे असन्तोष व्याप्त है।कांग्रेस पार्टी की गहन समीक्षा के बाद भी हार का कारण तुष्टिकरण, परिवारवाद कानून व्यवस्था और विकास की अंधी दौड़ मुख्य रहा है।जिसका कांग्रेस को कोई मलाल नही है।जीत का रास्ता तय करने की बहुत आवश्यकता है।कांग्रेस सार्थक परिणामो के लिए आशान्वित तो है लेकिन उसके लिए नई गणित लगानी पड़ेगी।क्योकि कांग्रेस का जनाधार खो चुका है।सभी राज्यो में मतदाताओ ने कांग्रेस और प्रियंका के साथ है का नारा दिया गया था।प्रियंका का कोई करिश्मा नही है और न ही राहुल का है।कांग्रेस गांधी परिवार की आड़ में फिर से सत्ता हासिल करना चाहती है।बेटे बेटियों के बीच चुनाव का मुद्दा मतदाताओं के सामने सवालिया निशान छोड़ गया है और अब आगामी चुनाव में बेटे बेटियों की प्रतिष्ठा दांव पर है।

                             कांतिलाल मांडोत

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