ज्ञान ही हमे जीवन जीने की कला सिखाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*ज्ञान ही हमे जीवन जीने की कला सिखाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा-27 जुलाई
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा में विराजमान जिनेन्द्रमुनि मसा ने श्रावक श्राविकाओं के समक्ष जिनवाणी के प्रवचन माला की श्रृंखला के तहत ज्ञान की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि ज्ञान एक चुम्बक की भांति होता है।जो आसपास की सूचनाओं को अपने पास एकत्रित कर लेता है।संत ने कहा ईश्वर की प्राप्ति और जीवन मे सफलता के लिए मन पर नियंत्रण कर आगे बढ़ने से सफलता प्राप्त कर लेते है।जैन मुनि ने कहा कि जीवन मे ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है।ऋषियों को जंगल मे ध्यान करने की प्रक्रिया को हमने पढ़ा और सुना है।मनुष्य की सामान्य जीवनचर्या ध्यान द्वारा नवदृष्टि प्राप्त करती है।ध्यान गहराई में आराम करने और अपने मन मे आराम करने में मदद करता है ।
मुनिने कहा कि आगंतुक श्रावक श्राविकाओं को गोशाला का भ्रमण कर यहाँ की बीमार गायों की देखभाल करने की रीति को परखने की चेष्टा करे।संत ने कहा भाई बहन अक्सर प्लास्टिक की थैलियों को लपेट कर कूड़ादान में डाल देते है जिससे गाय सब्जी के छिलके के साथ प्लास्टिक का निवाला पेट मे जाता है ।इस पर संत ने आग्रह पूर्वक कहा कि ऐसा कभी नही किया जाए। घोर तपस्वी प्रवीण मुनि मसा ने आगम पर व्यक्तव्य दिया।आगम के ज्ञाता प्रवीण मुनि ने कहा कि तीर्थंकरों को केवल ज्ञान प्राप्त हो जाता है तब वे जिनतीर्थ का प्रवर्तन करते है।चारो ओर बच्चों के चरित्र को दूषित करने वाले अश्लील व जासूसी उपन्यास का प्रचार प्रसार बढ़ रहा है ऐसी विषम परिस्थिति में भोगवादी संस्कृति की और बढ़ती हुई हमारी भावी पीढ़ी में संस्कारों का वपन करने तथा उनके संस्कारो को बढ़िया बनाने के लिएआगम का प्रचार प्रसार और उनकी नियमित स्वाध्याय की आवश्यकता है।रीतेश मुनि मसा ने नवकार मंत्र से प्रवचन की शुरुआत कर उपस्थित श्रावकों को बताया कि त्याग ही जीवन की पहली सीढ़ी है ।संत ने कहा कि अपनी वस्तु त्याग करने में जितना आनन्द आता है उतना संसार में कही पर भी आनन्द नहीं है।अपनी थाली में परोसा गया अन्न ,सोना चांदी या अपनी खास वस्तु का त्याग करने वाला व्यक्ति ही महान है।संत ने कहा कि गलती करके गलती को स्वीकार कर लेता है और किसी की बड़ी से बड़ी गलती को माफ कर देता है ,वही त्यागी है।संत ने देवताओं की गति पर प्रकाश डाला और कहा कि साधुओं के लिए पांच व्रत अनिवार्य है।रीतेश मुनि मसा ने कहा कि जिन्होंने त्याग किया है उसका इतिहास बन गया है।मुनि ने कहा आपका लक्ष्य जो भी हो,आप सफल होना चाहते है तोआपको त्याग करना ही होगा।प्रभातमुनि मसा ने कहा कि कथनी करनी समान भाव रखने होंगे।मुनि ने कहा कि करनी का फल कभी मिथ्या नही जाता है।बोए पेड़ बबूल के वाली कहावत सृष्टि में विधमान है।मुनि ने कहा कि कर्मो का फल मिल कर रहता है।हम किसी को दुःख देते है तो दुःख ही मिलता है ।आप किसी को बेतुकी बाते करते है तो सामने भी ऐसी ही वाणी मिलती है ।मुनि ने कहा कि आप किसी को धक्का मारते है तो उसके बदले में धक्का ही मिलेगा।जन्म लेकर भी कर्मो का हिसाब किताब चुकता करना पडता है।संत ने कहा हमारे अच्छे कर्म का फल अच्छा ही मिलेगा।हमारे कर्म ही बच्चों का भविष्य सुधारने में महती भूमिका रहती है।रविवार को उदयपुर गोगुन्दा ओगणा तरपाल सायरा और सिंघाड़ा से श्रावक श्राविकाओं का आगमन हुआ।उदयपुर से श्रावक श्राविकाओं ने संतो के दर्शन किये।मीठालाल कांग्रेचा हिमत भोगर नानालाल सुथार गोपाल कुमार जैन आदि श्रावकों ने संतो का आशीर्वाद लिया।

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