होली का त्योहार बुराइयों के विध्वंस का प्रतीक है*
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रंग-बिरंगी होली सबको कर इकरंग
होली का त्योहार बुराइयों के विध्वंस का प्रतीक है*
त्यौहार और पर्वोंकी संस्कृति का देश है भारत ! इसमें हर दिन कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। ये त्यौहार मानव-समाज की उमंगों एवं आशाओं के प्रतीक हैं। मनुष्य सहज ही आशावादी होता है, आशा ही उसे प्रसन्न और कार्यशील रखती हैं। इसलिए आशाओं को जीवित और प्रचण्ड रखने के लिए वह पर्व, त्यौहार आदि उत्सव मनाता रहता है। त्यौहारों में मानव जाति को संस्कार और विचार देने की एक अन्तरधारा इनमें छिपी रहती है। जैसे गंगा-यमुना के प्रवाह के भीतर सरस्वती का प्रवाह छिपा है। वैसे ही हमारे देश में हर त्यौहार व पर्व के भीतर एक आदर्श समाज की कल्पना और भावना, मानव जाति के पारस्परिक प्रेम, समानता, हर्ष-उल्लास का संस्कार और आदर्शों की कल्पना इन पर्वों के पीछे छिपी है।
होली का त्यौहार भारतीय में एक अपने ढंग का अनोखा और निराला त्यौहार है। अन्य त्यौहारों में देव-मूर्तियों की पूजा होती है, परन्तु इस त्यौहार में किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती, अपितु कूड़ा-कचरा, गंदगी आदि जलाई जाती है। यह त्यौहार बुराइयों के विध्वंस का प्रतीक है। होली रंगों का त्यौहार माना जाता है। गुलाल-अबीर उड़ाने-लगाने का त्यौहार है यह। अन्य त्यौहारों की भाँति इस त्यौहार के मूल में भी मानव जाति की समानता, भाईचारा और परस्पर का मनोमालिन्य मिटाकर एक-दूसरे के संग हर्ष-उल्लास मनाने की भावना निहित है, किन्तु धीरे-धीरे इसमें विकृतियाँ आ गई हैं। इसलिए आज सभ्य समाज होली जैसे त्यौहार से डरता है। इसे असभ्यता और अश्लीलता का त्यौहार बताने लग गया है।
वैसे हर एक परम्परा, पर्व या त्यौहार का प्रारम्भ किसी खास उद्देश्य के साथ ही होता है, परन्तु अज्ञान व अशिक्षा के कारण, पर्व की मूल भावना को लोक नहीं समझकर लीक पीटने के आदी हो जाते हैं। होली का त्यौहार भी इसी प्रकार विकृत हो गया है।
*सामूहिकता की भावना*
वैसे देखा जाय तो यह त्यौहार खेतों में फसल तैयार होने की खुशी में मनाया जाता है। होली की अग्नि में नये अन्न की बालों को भूनकर खाने के पीछे नई फसल का स्वाद और आह्लाद लेने की भावना छुपी है। इस त्यौहार की एक सबसे बड़ी विशेषता कहें या इसका उद्देश्य कहें कि इसमें सामाजिक समानता का बीज विद्यमान है। यह एक ऐसा त्यौहार है जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक वर्ण व समुदाय का भाई एक-दूसरे भाई से खुलकर गले मिलता है। दिल खोलकर एक साथ मनोरंजन करते हैं। इसलिए ऊँच-नीच, गरीब-अमीर, ब्राह्मण और शूद्र सभी परस्पर के भेदभाव भूलकर एक-दूसरे को रंगते हैं, एक-दूसरे से मिलते हैं और परस्पर एक-दूसरे का मुँह मीठा करते हैं। महापुरुषों ने सबको गले लगाने की, सबके साथ समान व्यवहार करने की जो शिक्षा दी है, होली के त्यौहार पर वह साकार होती दिखाई देती है। परस्पर वे वैर, विद्वेष भुलाकर सामूहिकता का सूत्र जोड़ने में होली का त्यौहार अपना महत्त्व रखता है। हिन्दू धर्म में बताया है होली के दिन ब्राह्मण यदि चाण्डाल का स्पर्श कर लेवे तो भी अपवित्र नहीं होता। यह मानव जाति को एक मानने की भावना का स्वर है।
*कूड़ा-कचरा जलाने का त्यौहार*
होली जलाने के लिए लोग इधर-उधर पड़ा कूड़ा-कचरा, झाड़-झंखाड़ इकट्ठा करते हैं। चारों तरफ पड़ी गंदगी साफ करके एक जगह ढेर लगाकर जलाते हैं।
होली का संदेश यह है कि भीतरी और बाहरी गंदगी को ढूँढ़ ढूँढ़कर साफ कर डालो। जहाँ भी बुराइयों का ढेर लगा है, अन्याय का गुव्वार भरा है उसे उठाकर साफ कर डालो। सब मिलकर समाज का शुद्धिकरण करो। दीपावली समाज में स्वच्छता का प्रदर्शन करती है, परन्तु होली गंदगी, कूड़ा-कचरा को जलाकर वातावरण को साफ-सुथरा बनाने की प्रेरणा देती है। होली कहती है, बुराई को भीतर छिपाकर मत रखो, परन्तु निर्भीक होकर उसे बाहर निकाल दो, जहाँ भी गंदगी व कूड़ा-कचरा है उसे उठाकर साफ कर दो, ताकि आपके समाज का वातावरण स्वच्छ रहे। आपके आसपास का वातावरण स्वच्छ रहे।होली में कीचड़, मिट्टी उछालना, असभ्य भाषा भद्दे और अश्लील मजाक करना यह तो मूर्खो व अज्ञानियों का काम है।
इसमे हत्याकाण्ड भी हो जाते हैं। इसका कारण है होली अपने होश-हवास खो देना, मदिरापान या मानसिक असंतुलन के कारण होली पर कई बार प्रेम की व शांति की होली भी जला देती है।
*कच्चे रंग क्यों ?*
होली का त्यौहार भारतीय समाज में सबसे अधिक सामूहिकता और उमंग, उल्लास का परिचायक है। इसलिए अमीर लोग ही नहीं, गरीब से गरीब भी नाचता कूदता है, प्रसन्नता में एक-दूसरे के गले लगता है। होली में रंग उड़ाया जाता है। इसलिए कच्चे रंगों का उपयोग होता है। कच्चा रंग हमें सूचित करता है-जीवन में सुख-दुख के प्रसंग होते हैं। कटुता, मान अपमान आदि के भी प्रसंग बनते हैं। परन्तु उन रंगों को मन पर जमने मत दो। किसी को कटु शब्द, अपमानजनक व्यवहार, द्वेष और शत्रुता के भाव जो भी तुम्हारे साथ हुए उन्हें मिटा दो। उन रंगों को उड़ा दो। उन रंगों को मन पर जमाकर रखने से तुम्हारी प्रसन्नता और खुशियों का रंग बदरंग हो जायेगा। इसलिए गुलाल के रंगों की तरह इन पुराने व्यवहारों को भूल जाओ और मन को फिर साफ-सुथरा रखो तभी तो रंग-विरंगी आपके जीवन को सुख और प्रसन्नता देगी, आनन्द और उल्लास देगी। अतः होली को यदि समझदारी और विवेकपूर्वक मनाया जाय, इसमें निहित सामाजिक एकता व सामूहिकता के आदर्शों को ध्यान में रखा जाय तो यह पर्व समाज के लिए आनन्ददायक बन सकता है।
*पुराण कथाओं का हार्द*
होली की पौराणिक कथा हिन्दू पुराणों में भी आती है और जैन कथा साहित्य में भी आती है। हिन्दू पुराणों के अनुसार जो होली का उपाख्यान प्रसिद्ध है उसमें भक्त प्रह्लाद ने असत्य और अन्याय का प्रतिरोध करके सत्य की रक्षा की थी। न्याय के लिए वह प्रतिबद्ध था और सर्वस्व समर्पित करने को तैयार था। हिरण्यकश्यप उसमें बाधा डाल रहा था। तब भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप धारण कर उस असुर का वध किया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की। नृसिंह रूप का मतलब है प्रत्येक नर सिंह बनकर असत्य से लड़े। अन्याय से संघर्ष करे। बुराइयों के सामने घुटने नहीं टेके। कायर और डरपोक व्यक्ति, कमजोर और दुर्बल मनःशक्ति वाले संसार में विजयी नहीं हो सकते। इसलिए मनुष्य अपने भीतर छुपे नृ-सिंह स्वरूप को प्रकट करे, शक्ति को जगाये और अन्याय का नाश करे। नरसिंह का अवतार अन्याय का नाश करने के लिए है।असत्य से युद्ध करने के लिए है।अन्याय व असत्य से चोली दामन रखना नरसिंह स्वरूप का अपमान है।
*कांतिलाल मांडोत*
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