जिनके सुसंस्कार प्रबल होते है,वह सुसंस्कारी वातावरण में भी अपना संतुलन नही खोता-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*जिनके सुसंस्कार प्रबल होते है,वह सुसंस्कारी वातावरण में भी अपना संतुलन नही खोता-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 19 सितंबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के स्थानक भवन में आयोजित सभा को सम्बोधित करते हुए जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि जीवन रूपी वृक्ष को पल्लवित करने के लिए संस्कार बीज है।खेत उतपन्न कपास मानव की लज्जा ढकने में समर्थ होते है।खेत मे बिखरे अनाज के कण मानव की क्षुधा शांत नही कर सकते।कपास को संस्कारित करना होगा।सुपाच्य बनाना होगा।संस्कारित हुए बिना अन्न के कणों को खा जाने पर वैध की शरण मे जाना पड़ता है।जिनेन्द्रमुनि ने कहा संस्कार का जरा भी तिरस्कार न करे।यदि संस्कार सुसंस्कार है तो उनका परिणाम आत्मा में,जीवन में उज्जवलता लाएगा और यदि वे कुसंस्कार है तो उनके परिणाम में आत्मा को पीड़ा झेलनी पड़ेगी।संत ने कहा जिनके सुसंस्कार प्रबल होते है,वह सुसंस्कारी वातावरण में भी अपना संतुलन नही खोता।मुनि ने कहा माता द्वारा सुसंस्कार मिलने के कारण ही,राक्षसों के कुसंस्कारों में रहकर भी प्रहलाद भक्तों में शिरोमणि बने रहे।इसके विपरीत जिसके कुसंस्कार प्रबल है वह अच्छे वातावरण में भी दूषण फैलाता है।इसलिए यह प्रयास सदा रहे कि शुभ संस्कार प्रबलतम हो।मुनि ने कहा सद्संस्कारों से ही संस्कृति का निर्धारण एवं निर्माण होता है।सतसंस्कारो को ही उपेक्षित कर दिया गया तो हमारे पास फिर शेष रहेगा ही क्या?यह कटु सत्य है कि आज संस्कारो की खुलकर उपेक्षा हो रही है।जैन संत ने कहा हमे अपनी रास्ट्रीय ,सामाजिक ,नैतिक अस्मिता की रक्षा के लिए शाश्वत जीवन मूल्यों का अभिरक्षण करना होगा ।प्रवीण मुनि ने कहा हमे अपनी संस्कृति और आपने आदर्शों को भूलने भुलाने की भूल नही करनी चाहिए।संत ने कहा कि आधुनिकता या तथाकथित प्रगतिवाद के नाम पर किसी का अंधानुकरण करके विकृतियों का प्रवेश नही होना चाहिए।रितेश मुनि ने कहा आप हंस रहे है।और हंसकर टालने की आवश्यकता नही है।हमे जागरूकता पूर्वक विकृतियों के प्रतिकार एवं संस्कारो के प्रचार प्रसार व स्वीकार के लिए अपने आपको भीतर के तेजस्वी संकल्पों के साथ तैयार रहना है।प्रभातमुनि ने कहा बालक के जीवन मे जो विकृतियां घर करती है।उसके मूल में हमारी अपनी विकृतियों एवं विकृत वातावरण का प्रभाव होता है।
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