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मानव अपने जीवन को विनय ,सद्भाव और सदाचार की सौरभ से सुरभित और सुवासित कर समाज और राष्ट्र को सुरभिमय बनाये-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*मानव अपने जीवन को विनय ,सद्भाव और सदाचार की सौरभ से सुरभित और सुवासित कर समाज और राष्ट्र को सुरभिमय बनाये-जिनेन्द्रमुनि मसा*

कांतिलाल मांडोत

गोगुन्दा 14 अक्टूबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गोशाला उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा किसुवास ,सौरभ और महक कुछ ऐसे शब्द है,जिनका नाम लेने पर मानव मन को अद्भुत आनन्द की प्राप्ति होती है।गुलाब के पौधे में कांटे होते है।जब उसकी टहनी पर सुमन खिलता है,तो मानव का हाथ कांटो की परवाह न करते हुए सुमन की और बढ़ जाता है।प्रत्येक पौधे की अपनी एक सुवास होती है।मनुष्य को सुगन्धित पदार्थो से विशेष प्रेम है ही,मगर पशु पक्षी कीट सर्प जैसे प्राणी भी सुगन्ध के पीछे दीवाने बने रहते है।कोयल आम की डालियो पर फुदकती रहती है।भ्रमर और तितलियां रंग बिरंगे फूलो पर मंडराती रहती है।जहां सुगंध है,वहा आनन्द है।जिस तरह प्राकृतिक जगत की सुगंध मनुष्य को अपनी ओर आकृषित करती है,उसी प्रकार मनुष्य जीवन की भी अपनी सौरभ होती है।उस सौरभ के कारण मनुष्य तो क्या,जानवर भी उसकी ओर खिंचे चले आते है।मानव
सद प्रयासों से विभिन्न प्रकार की सौरभ का स्वामी बनकर, संसार को सुवासित करते हुए अपना कल्याण कर सकता है।इत्र फुलेल की सौरभ एक निश्चित समय के पश्चात समाप्त हो जाती है।,लेकिन ज्ञान गुण यश कीर्ति की सौरभ युगों युगों तक छाई रहती है।सत्य अहिंसा दया प्रेम करुणा ज्ञान और तप यह सब मानवीय सौरभ के महत्वपूर्ण भेद है।बुद्घ ,महावीर राम ,कृष्ण गांधी ऐसे ही महापुरुष थे,जिनकी सौरभ आज भी करोड़ो लोगो के मन मे छाई हुई है।जैन संत ने कहा राम ओर लक्ष्मण तो सदाचार से ओतप्रोत थे,वे अपने मर्यादा पथ से विचलित होने वाले नही थे।आज जहा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के गुण कीर्तन किये जाते है,वहा सेवा सदाचार की प्रतिमूर्ति लक्ष्मण को आदर के साथ स्मरण किया जाता है।लक्ष्मण की सेवा कर्तव्य परायणता भ्रातृ प्रेम एवं सदाचार की सौरभ मानवता के मस्तक को गौरान्वित किये हुए है।मुनि ने कहा जिस जीवन मे सदाचार की सौरभ है,वहाँ कदम कदम पर विजय निश्चित है।जीवन की सफलता सार्थकता के लिए मानव अपने जीवन को विनय विवेक सद्भाव की सुवासित सौरभ से सुरभित और और सुवासित कर समाज एवं राष्ट्र को सुरभिमय बनाये।प्रवीण मुनि ने कहा कर्म की गति टाले नही टलती है।आत्मा का कल्याण कर मोक्ष प्राप्ति को सफल बनाया जा सकता है।मुनि ने कहा कि आत्मा की उन्मुक्त बनाओ।आत्मा के कल्याण के लिए हमे प्रयत्न करने होंगे।रितेश मुनि ने कहा समता के बिना जीवन का सन्तुलन ही बिगड़ जाता है।हर्ष में फूलना और विषाद में खिन्न होना जीवन की विषमता है।मुनि ने कहा तांगे वाला वजन की समता न रखे तो उसका घोड़ा तांगा खींच पाता।समता आत्मा का स्वभाव है।बात बात पर क्रोध करना,आग बबूला होना आत्म स्वभाव के विपरीत है।प्रभातमुनि ने कहा अपने को सुखी बनाने की भावना से दूसरों को दुःखी बना देना अच्छा नही है।नदी वेग से बहती हुई सागर की तरफ जाती है तो रास्ते मे आने वाले गर्तों को भी भर्ती जाती है।हवा तूफान बनकर आती है तो सामने वाले को भी उड़ा ले जाती है।

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