*मानव जीवन दुर्लभ,अनमोल और क्षण भंगुर है-जिनेन्द्रमुनि मसा

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*मानव जीवन दुर्लभ,अनमोल और क्षण भंगुर है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 29 जुलाई
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के उमरणा स्थानक भवन में आयोजित धर्म सभा मे जिनेन्द्रमुनि मसा ने उपस्थित श्रावकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन अनमोल है।इसकी कोई कीमत नही है।जबकि जीवन क्षण भंगुर है।क्षण का कोई भरोसा नही है।मनुष्य जीवन हर दृष्टि से विलक्षण है।संत ने कहा इस जीवन को मृत्यु कब ले जाये,उसके पहले धर्म आराधना एवं श्रेष्ठ कर्मो का संचय कर लेना चाहिए।क्योंकि धर्म ही तारणहार है।धर्म ही मोक्षदायिनी है।मुनि ने भार पूर्वक कहा कि मनुष्य जीवन का विश्व मे कोई मोल नही है।मोल नही किया जा सकता है।जीवन सत्कर्मो में खपा रहेगा तो अकर्म से छुटकारा मिल जाएगा।मनुष्य जीवन मे धर्म और धार्मिकता की प्राकृतिक सदभावनाए इसी तरह आकार ग्रहण करती है।मनुष्य को अहंकार नही करना चाहिए।जीवन मे धन दौलत कोठी बंगले भाई बहन नौकर चाकर साथ नही आएंगे।मनुष्य का साथ देने वाला अपना धर्म और सत्कर्म साथ जाएंगे।धर्म के बिना मनुष्य का कोई ठिकाना नही है।परमात्मा के प्रति हम आध्यात्मिक रूप से धारण करते है,वास्तव में दुनिया मे धर्म धार्मिकता का सत्य है।रितेश मुनि मसा ने कहा कि राग के विष को अमृत बनाओ।हमारे में जो राग भाव है उस राग के जहर को अमृत बनाने की कोशिश करनी चाहिए।जहर भी कभी अमृत बन सकता है क्या?हमारा आपका सामान्य अनुभव कहेगा कि नही बन सकता ।जहर खाने से आदमी मर जाता है।लेकिन इस जहर के ऊपर भी कई प्रयोग करके इसको दवा के रूप में काम मे लिया जाता है।कई प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती है।मुनि ने भार पूर्वक कहा कि सामयिक करने वाले भाइयों को साधर्मि वात्सता सीखने की आवश्यकता है।साधर्मि वात्सल्यता होगी तभी सामयिक और जप तप के अधिकारी बनेंगे ।संत ने कहा दया भाव तो किसी दीन पर होता है।दुःखी पर होता है।जो कमजोर है वह दया का पात्र कहा जाता है।श्रावक साधु या धर्मियों को तकलीफ़ में देखकर तड़फन होती है वह दया भाव नही है,वात्सल्य भाव है।शाम के समय बछड़े को दूध पिलाना होता है जब दरवाजा बंद होता है तो गाय हम्बे हम्बे की आवाज लगाती है।यह वात्सल्यता है,वात्सल्य भाव है।प्रवीण मुनि ने कहा कि मन वचन और काया तीन तरीके है ।जबकि खुद क्रिया करना,दूसरे से क्रिया करवाना और क्रिया करवाने वाले का अनुमोदन करना ये क्रिया के तीन साधन बताए गए है।प्रभातमुनि ने कहा कि आज करोड़ो पाकर भी मनुष्य की भूख नही मिटती है।संत ने कहा कि आसक्ति बढ़ेगी ,लेकिन दानपुण्य करने का नाम नही लेता है।नदी बहती रहती है तो उसमें पानी मीठा रहता है।लेकिन समुद्र में मिलने के बाद मीठा पानी भी खारा हो जाता है।नदी का पानी मीठा इसलिए होता है कि वह हरेक के काम आता है।,बहता रहता है।मुनि ने कहा कि आसक्ति छोड़ दान पुण्य से अपना जीवन सफल बनाइए।धन को शुभ कार्य मे लगाइए।स्थानक भवन में प्रवचन सुनने लोगो का आवागमन हुआ।संघ की तरफ से आग्रह किया है कि संतो के दर्शन और प्रवचन का लाभ अर्जित करने स्थानक भवन में ज्यादा से ज्यादा श्रावक श्राविकाएं पधारे।

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