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*मानव जीवन सेवा सहकार और आत्मीयता से ही विकसित होता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*मानव जीवन सेवा सहकार और आत्मीयता से ही विकसित होता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 12 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ उमरणा के स्थानक भवन में जैन संत ने प्रवचन माला में कहा कि धर्म का संदेश है प्राणी मात्र को हम अपनी आत्मा के समान समझे। ये बहुत उच्च विचार है, किन्तु यह धर्म का आधारभूत संदेश है। इससे भेद भाव पूर्ण कोई व्याख्या धर्म के अन्तर्गत नहीं आती ।यह स्पष्ट होते हुए कि हम भारतीय जो अधिकांशतः धर्म के अनुयायी है फिर भी हमने बीच मे ही इतने भेदभाव रख कर जीते हैं कि सारा जीवन ही भेदभाव के जहर में डूब सा गया है। महाश्रमण ने कहा कि हमारे लोक जीवन में सबसे बड़ी विडम्बना तो यही है कि हमारे कहां और हम कहां ?
नातिवाद, वर्गवाद प्रान्त वाद भाषावाद जैसे बड़े बड़े भेदभाव तो व्यापक स्तर पर है ही, इन के अन्तर्गत भी और अनेक छोटे छोटे भेदभाव भरे हुए है। गिनति ही नहीं की जा सकती ।आज तो छोटे से परिवार में भी भेदभावपूर्ण विसंगतियां चल रही है। परिणाम स्वरुप परिवार टूट रहे हैं ।व्यक्ति आज जितना अकेला है। सम्भवत पहले कभी नहीं था । आज हर व्यक्ति को अपनी पड़ी है, स्वार्थपरक इस तुच्छ मनोवृति ने अपनों को ही अपने से काट दिया है। एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए है।मारना और भरना इस समय सहज और सरल हो गया है।परिवार के परिवार इस आग में झुलस जाते है।परिवार में अपने सहोदर तक की हत्या कर देते है।आज मानवता फुट फुट कर रोती दिखाई दे रही है।सेवा सहयोग देना आत्मीयता, अपनापन जैसे उदात्त मूल्य आज क्षीण होते जा रहे है। ऐसा करके मानव स्वयं ही अपने लिये गड्ढा बना रहा है, जिसमें एक दिन उसे ही गिरना होगा अर्थात मानव जीवन सेवा सहकार और आत्मीयता से ही विकसित होता है। व्यक्ति जब औरों को देगा नहीं तो उसे मिलेंगा भी कैसे? नहीं मिलने पर जीवन की दशा क्या हो सकती है ? कल्पना करिये। अपने लिये चाहना और औरों के देने के समय भेद भाव करना यह स्वार्थपूर्ण मनोवृति अन्धकार में धकेल रही है। तब क्या हो सकता है।स्वयं सोच लीजिये।प्रवीण मुनि ने कहा कि आगम को जीवन मे अपनाना चाहिए।मुनि ने स्थानक भवन में उपस्थित श्राविकाओं को सम्बोधित करते कहा कि आगम वाणी भव सागर को पार ले जाने वाली सुगम वाणी है।रीतेश मुनि ने कहा आज की नारियां अब अबला नही,सबला है।महिलाओ ने हर क्षेत्र में तरक्की की है।समाज मे अहम भागीदारी स्थापित की है। वीर वीरांगना को हम कैसे भूल सकते है ।इस माटी की रक्षा के लिए झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो से लोहा लिया।आज भी लक्ष्मीबाई का नाम बड़े गौरव के साथ लिया जाता है।महिलाओ में सहनशीलता के गुण उनको धैर्यवान बनाते है।

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