न्याय-नीति एवं सदाचार-सत्य की विजय का पर्व है विजय दशमी*

Oplus_131072
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
*न्याय-नीति एवं सदाचार-सत्य की विजय का पर्व है विजय दशमी*
भारतीय संस्कृति एक प्रकार से पर्व व त्यौहारों की संस्कृति मानी जाती है। प्राचीन समाज-व्यवस्था में चार वर्ण थे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इन चारों वर्णों के कार्य, उल्लास और आयोजनों को ध्यान में रखकर त्यौहारों व उत्सवों का भी वर्गीकरण कर दिया गया। जैसे रक्षाबंधन ब्राह्मणों का त्यौहार बताया गया है, विजय दशमी क्षत्रियों का, दीपावली वैश्यों का और होली शूद्रों का। यद्यपि त्यौहारों को सभी वर्ण मिलकर मनाते हैं। इन उत्सवों पर सर्वत्र उल्लास, हलचल और धूमधाम रहती है। त्यौहार पूरे समाज के उल्लास का प्रतीक होता है।
यद्यपि पर्वों व त्यौहारों का केवल सामाजिक महत्त्व ही नहीं है। इनके साथ मनुष्य के आध्यात्मिक, आन्तरिक तथा व्यक्तिगत जीवन की चेतना भी जुड़ी हुई है। प्रत्येक पर्व के साथ कुछ ऊँचे आध्यात्मिक आदर्श, उच्च संकल्प और पवित्र कार्यों की भावना भी जुड़ी रहती है, जिस कारण पर्वों का सम्बन्ध समाज एवं धर्म के साथ जुड़ जाता है और पर्व सामाजिक उल्लास के साथ ही मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना को जगाने के प्रतीक बन जाते हैं।
आश्विन शुक्ल दशमी का दिन भारतीय समाज में विजय दशमी या विजय पर्व अथवा दशहरा, दुर्गा-पूजा आदि नामों से प्रसिद्ध है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शरद् ऋतु के इस सुहावने वातावरण में दशों दिशाएँ खुल जाती हैं। वर्षा ऋतु के कारण जो आवागमन रुक गये थे, वातावरण की नमी के कारण स्वास्थ्य में शिथिलता व जड़ता आ रही थी वह इस मौसम में स्वयं ही दूर हो जाती है। यह शरद् ऋतु रोग निवारक तथा आरोग्यवर्धक ऋतु मानी जाती है। धूप खिलने से प्रकृति की दिशाएँ भी खुल जाती हैं और शरीर के भीतर के दिग्चक्र भी खुल जाने से इस ऋतु में रोगी भी अपने आप नीरोगता व स्वस्थता का अनुभव करने लगते हैं।
दूसरी बात ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आसोज सुदि दशमी के दिन अंतरिक्ष में चन्द्र व नक्षत्र आदि का ऐसा योग मिलता है कि इस दिन का विजय मुहूर्त वर्ष में सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। यह सहज सिद्ध मुहूर्त है। इसलिए इस शुभ दिन में प्राचीन समय से ही प्रत्येक वर्ग अपने-अपने इच्छित शुभ कार्य आरम्भ करते हैं। व्यापारी व्यापार, उद्योग का शुभारंभ करता है। किसान खेत में बीज बोने का मुहूर्त करता है। नये कार्य दसमी के दिन आरम्भ किये जाते हैं। यद्यपि विज्ञान के युग में आवागमन एवं सुरक्षा, सैनिक-व्यवस्था व युद्ध आदि के सभी पुराने तरीके व सिद्धान्त बदल गये हैं। हवाई जहाज, कम्प्यूटर, अणुअस्त्र व मिसाइलों ने संसार की कायापलट कर दी है, फिर भी प्राचीन समाज-व्यवस्था के जो अच्छे सिद्धान्त थे और उनके आदर्श प्रतीक थे उनकी उपयोगिता आज भी कम नहीं है।
प्राचीनकाल में वर्षा ऋतु समाप्त होने पर क्षत्रिय वर्ग अपने अस्त्र-शस्त्रों की देखभाल करते थे ढाल, तलवार आदि पर धार-चमक आदि करके उन्हें तैयार करते थे। और घोड़े, हाथी, रथ आदि की पूजा करके विजयोल्लास मनाते थे। युद्ध के लिए आज ही के शुभ मुहूर्त में प्रस्थान किया जाता था। क्षत्रियों के लिए विजय दशमी का त्यौहार सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। मैसूर में तो आज भी मैसूर के महाराजा की सवारी निकलती है और राजमहलों व नगर में दीपावली जैसी रोशनी की जाती है।
*क्या दशमी को रावण का वध हुआ था ?*
प्राचीन धारणा के अनुसार दशहरा ही के दिन महाराज राम ने रावण का वध करके लंका विजय की थी। यद्यपि यह धारणा न तो इतिहास-सम्मत है और न ही वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास जी के रामचरितमानस के अनुसार सिद्ध होती है। क्योंकि वहाँ बताया गया है श्री रामचन्द्र जी ने वर्षा ऋतु के चार महीने पंपापुर में ही निवास किया। शरद् ऋतु आरम्भ हो जाने पर हनुमान जी को सीता जी का पता लगाने के लिए भेजा था। तो फिर दशहरे के दिन रावण-वध किस प्रकार सम्भव है? क्योंकि प्राचीन युद्ध नीति के अनुसार वर्षा ऋतु में युद्ध भी बन्द रहते थे। अनेक्र इतिहासकारों ने खोज करके रावण-वध की ही कुछ तिथियाँ खोजी हैं। कइयों ने फाल्गुन शुक्ल एकादशी बताई है तो कइयों ने वैशाख कृष्ण चतुर्दशी मानी है। अस्तु, हमें इतिहास व लोक मान्यता के साथ कुछ भी छेड़छाड़ नहीं करनी है। जो मान्यता, धारणा व रूढ़ि चली आ रही है।
उसकेपीछे रहा हुआ प्रतीकार्थ समझ लेंगे तो विवाद का कोई कारण ही नहीं रह सकता। हिन्दू धर्म के भविष्योत्तर पुराण में लिखा है कि प्राचीनकाल में क्षत्रिय राजा युद्ध के लिए प्रस्थान करने से पूर्व विजय दशमी के दिन शत्रु का एक पुतला बनाकर बाण से उसका हृदय बींध देते थे। इससे यह मान लिया जाता था कि हमने अपने शत्रु का नाश कर दिया। यह एक प्रकार से आत्म-विश्वास जगाने का साधन अथवा एक विजय सकुन के रूप में यह प्रथा प्रचलित थी कि शत्रु का पुतला बनाकर उसका सिर छेद देना, हृदय बींध देना। आज भी जनता विरोध प्रकट करने के लिए नेताओं के पुतले फूंकती है तो पुतला जलाने की प्रथा ही सम्भव है। धीरे-धीरे कालान्तर में रावण-वध का रूप ले चुकी हो और विशालकाय शत्रु के पुतले को रावण मानकर इसका सम्बन्ध रामलीला से भी जोड़ दिया गया हो। कुछ भी हो, विजय दशमी के दिन रावण या शत्रु के पुतले का वध एक प्रकार से अपनी विजय का प्रतीक अथवा विजय का विश्वास पैदा करने का साधन था और अन्याय, अत्याचार, असत्य पर न्याय, सदाचार व सत्य की विजय का प्रतीक मानकर इसे पर्व का रूप दे दिया गया
*विजय दशमी का ऐतिहासिक आदर्श
कहा जाता है इस आश्विन मास की दशमी के दिन महाभारत का युद्ध आरम्भ हुआ था। यह युद्ध भी दुर्योधन के अन्याय, अनीति व दुराचार के विरुद्ध न्याय, नीति एवं सदाचार के अभियान के रूप में ही माना जाता है। इस प्रकार यदि रामायण एवं महाभारत काल के दोनों सन्दर्भों पर विचार करें तो विजय दशमी का पर्व न्याय-नीति एवं सदाचार-सत्य की विजय का प्रतीक पर्व माना जाता है।एक बात स्पष्ट है कि विजय दशमी का महत्त्व अधिकतर हिन्दू पुराणों में ही मिलता है। जैन संस्कृति में इस सम्बन्ध में कोई विशेष उल्लेख नहीं है। कारण जैन संस्कृति मूलतः अहिंसा और संयम-प्रधान रही है। निवृत्ति-प्रधान संस्कृति में प्रवृत्ति-प्रधान पर्वों का विशेष महत्त्व नहीं होता। इस कारण विजय दशमी के पर्व का इतिहास और लोक कथाएँ, किंवदन्तियाँ हिन्दू पुराणों में ही अधिक मिलती हैं।
*दशहरा दश को जीतो*विजय पर्व को हम आत्म-विजय के पर्व के रूप में ग्रहण करके इस पर चिन्तन करें। विजय दशमी को दशहरा कहते हैं। दशहरा अर्थात् दश को
हरने वाला, दश का नाश करने वाला। सामान्य भाषा में दशकन्धर नाम रावण का है और रावण का नाश करने की कथा के साथ इसका सम्बन्ध जुड़ता है। परन्तु राम-रावण युद्ध को अगर आप आध्यात्मिक अर्थ में लेंगे तो राम न्याय-नीति और सदाचार का प्रतीक होगा, रावण अन्याय, अनीति, दुराचार, अहंकार का प्रतीक है। यद्यपि बल, बुद्धि, वैभव में रावण राम से कम नहीं था, रावण का वैभव कितना विशाल था, सोने की ईंटों से जिसके भवन बने हुए थे, समुद्र की खाई जिसके नगर की रक्षा करती थी, जिसके दश सिर अर्थात् दस बुद्धिमानों की बुद्धि उसके पास थी, बीस भुजाएँ अर्थात् दस बलवानों, महायोद्धाओं का बल उसकी भुजाओं में था। वरुणदेव जैसा विज्ञान का निष्णात उसके यहाँ पानी भरता था, पवनदेव जैसा शक्तिशाली उसको हवा करता था-यह सब रावण के वैभव के प्रतीक हैं और ऐसा बलवान रावण अनीति और अहंकार के कारण भीतर से एकदम खोखला हो गया। उसकी राक्षसों की महाबली सेना, साधारण रीष्ठ और बंदरों की सेना से भी हार गई। रावण जैसा विद्वान्, बुद्धिमान् और बलवान राम के एक बाण से धराशायी हो गया। यह सब बड़ी गूढ़ पहेलियाँ हैं। मतलब इसका यह है कि व्यक्ति चाहे जितना बलवान क्यों न हो, चाहे जितना बड़ा सत्ताधीश और धनाधीश क्यों न हो, चरित्रहीन और अनीतिमान होने से सामान्य व्यक्ति के सामने भी हार खा जाता है। राम एक चरित्रवान, नीतिमान, सदाचारी, मर्यादा-पालक शक्ति का प्रतीक है। संसार में सदा ही यह खेल चलता रहा है। जब-जब भी अनीति, अन्याय शक्ति के रूप में उभरकर समाज को उत्पीड़ित और प्रताड़ित करते हैं तो न्याय और सदाचार की शक्ति उसका नाश करके अन्याय पर न्याय की विजय-ध्वजा फहराती है।
इस प्रकार राम-रावण का युद्ध अधर्म और धर्म का युद्ध बन जाता है, दुराचार और सदाचार का युद्ध बन जाता है।
इस प्रकार विजय दशमी पर्व को आप आत्म-विजय के सन्दर्भ में देखें, साथ ही जिस प्रकार प्रजापति ने देवताओं की शक्तियों को केन्द्रित करके दुर्गा महाशक्ति का निर्माण किया, उसी प्रकार हम अपने दिव्य गुणों से साहस, संकल्प, सत्य, संयम, सदाचार, सन्तोष आदि गुणों को केन्द्रित करके ज्ञान चेतना और ध्यान चेतना के रूप में दुर्गा शक्ति को प्रकट करें ताकि मोह, मूढ़ता, मद, आलस्यरूपी राक्षसों का नाश करके हम संसार में सर्वश्रेष्ठ आत्म-विजय के भागी बन सकें।
*कांतिलाल मांडोत वरिष्ठ पत्रकार*

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space
