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पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ने हवाओ के रुख के साथ किया समझौता

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पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ने हवाओ के रुख के साथ किया समझौता

पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष ममता बनर्जी ताल के साथ कदम मिलाना जरूरी समझती है।ममता बनर्जी पश्चिमी बंगाल की तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद पीएम की दौड़ में सबसे आगे है। मोदी प्रधानमंत्री बनने से लेकर आज दिन तक उनका विरोध हर पग पर कर रही है।नोटबन्दी की बात हो,कश्मीर में अनुच्छेद 370 हो,एनआरसी हो या राम मंदिर निर्माण हर बात का विरोध ममता करती आ रही है।पीएम की कुर्सी के महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के मंसूबे मोदी के आने के बाद धराशायी हो गए।वे मोदी की कार्यप्रणाली और विकास की सुलगती लौ को बुझाना चाहते है।

मोदी की विकास यात्रा को विपक्ष रोकना चाहता है।इस दूरी को पाटा भी नही जा सकता है।ममता बनर्जी कांग्रेस को भी पानी पी पीकर कोसती रहती है।रास्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने के बाद ममता के तेवर कम होते जा रहे है।आज दिन तक नोटबन्दी का रोना रोने वाली ममता ने जब एकला चलो की मजबूरी देखी तो यू टर्न लेते हुए कहा कि कांग्रेस का जिस राज्य में जनाधारमें बढ़त होगी।वहाँ पर ही ममता का कांग्रेस को सहयोग दिया जाएगा।विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए सबसे पहले ममता ने तमाम दलों की बैठक बुलाई।इस बैठक में 17 दलों ने भाग लिया।इन तमाम राजनीतिक पार्टियों का एक ही मकसद था कि मोदी 2024 की लोकसभा की वैतरणी पार नही होनी चाहिए।कांग्रेस ने दो राज्यो में जीत का परचम लहराते ही तृणमूल का कांग्रेस में दिलचस्पी बढ़ने लगी।

मुर्शिदाबाद उप चुनाव के बाद कांग्रेस नेता राहुल की सूरत में एक केस में सजा सुनाए जाने के बाद सदस्यता खत्म हो गई।कांग्रेस की उंगली पकड़ कर राजनीतिक गलियारों तक पहुंची ममता ने हमेशा कांग्रेस को अलग नजरिया से ही देखा है।टीएमसी, कांग्रेस और भाजपा को हमेशा कट्टर विरोधी समझने वाली ममता का समय के साथ रुख कर करवट बदलतने में ही तृणमूल का फायदा दिख रहा है।अपनी मेहनत के बल पर तीन बार सरकार बनाने वाली ममता की डगर आगामी विधानसभा चुनाव में आसान नही दिख रही है।कांग्रेस के साथ के बिना भाजपा के अंगद की तरह जमीन पर रखे पैर को कोई हिला नही सकता है।इस गणित को आगे रखकर ममता ने कांग्रेस के पाले में गेंद डाली है।ममता हर समय विपक्ष को कोसती रहती है।भाजपा को हर समय दुश्मन समझने वाली ममता की तृणमूल प्रादेशिक पार्टी के तौर पर पद स्थापित होने से ममता को धक्का लगा है। दरअसल,ममता तृणमूल का प्रदर्शन करने में निराशा अनुभव कर रही है।ममता के मन मे यह विचार चल रहा है कि हिमाचल और कर्नाटक की जीत के पीछे भारत जोड़ो यात्रा की सफलता है।इसलिए कांग्रेस उभर रही है।और मोदी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस से अच्छा विकल्प कोई नही है।उस मुद्दे को याद कर कांग्रेस का सहयोग तृणमूल के लिए संजीवनी समान माना जा रहा है।ममता ने पूर्वोत्तर राज्यो के चुनाव के दौरान तृणमूल में शामिल कराने के आरोप लगे थे।तृणमूल ने केंद्र सरकार की उपेक्षा कर दिल्ली में धरना दिया था।कांग्रेस और तृणमूल में बढ़ती विचारभेद की लड़ाई के बाद कांग्रेस तृणमूल के साथ पैठ जमाने मे सफल होती है या जिस तरह कांग्रेस को ममता ने दूध में मख्खी की तरह निकाल फेंका था।उसका बदला कांग्रेस लेती है या कांग्रेस की विचारधारा के अनुरूप करती है। समय का सबको इंतजार रहेगा।समय बलवान है।

                           

कांतिलाल मांडोत 

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