*राग को जीतने के लिए राग का स्वरूप समझकर उसे रूपांतरित करना होगा-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*राग को जीतने के लिए राग का स्वरूप समझकर उसे रूपांतरित करना होगा-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कान्तिलाल मांडोत
गोगुन्दा 26 जुलाई
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा में आयोजित धर्मसभा मे जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि राग को जीतने के लिए राग के स्वरूप को समझना होगा।क्योंकि राग एक जहर है।सांप के जहर को उतारने के लिए संसार मे सर्वोत्तम दवा सांप के जहर से ही बनती हैं।मुनि ने कहा कि राग को प्रथम धर्मानुराग में बदलना है।देव गुरु धर्म और साधर्मि और प्राणिमात्र के प्रति रूपांतरित होकर शुभ राग बन जाता है।फिर धीरे धीरे यही धारा राग में बदल जाती है।राग की इसी शुद्धिकरण प्रक्रिया के अंतर्गत मन के उदात्तीकरण का स्वरूप प्रकट किया है।संत ने कहा कि संसार का यह सिद्धांत है कि प्रत्येक वस्तु का प्रतिपक्ष होता है।ठंडे गुण वाले शीतल पदार्थ है तो उसका प्रतिपक्ष उष्ण भी है।रितेश मुनि ने कहा कि प्रत्येक वस्तु द्रव्य अनन्त धर्मात्मक है अर्थात अनेक गुण पर्यायात्मक है।मुनि ने कहा कि विचारना अथवा स्वीकार करना अनेकांत है।ज्ञान दर्शन चारित्र आदि आत्मा के विशेष गुण है।आत्मा एक अखंड द्रव्य है।यह कभी खण्ड खण्ड नही होते है।संत ने कहा कि गुणों का स्वीकार करना अनेकांत है ।आत्मा चेतन स्वरूप है।आत्मा का जड़ स्वभाव नही है।जड़ जड़ स्वरूप ही है ।चेतन स्वरूप नही है।
प्रवीण मुनि ने कहा कि आत्मा के भिन्न भिन्न पदार्थो पर ममत्व एवम मूर्छा भाव अपरिग्रह है ।मूर्छा का अत्यधिक नाश अपरिग्रह है।मुनि ने कहा कि जिस तरह कुत्ता सुखी हड्डी को चबाते हुए अपने मुंह से निकलने वाले खून को हड्डी का खून समझ कर आनन्द मानता है, ठीक यही दशा अज्ञानी जीवो की है।प्रभातमुनि ने धार्मिक छंद पर बोलते हुए कहा कि जीवन सुखरूप से व्यतीत करना है, तो जीवन मे प्रभु आराधना जरूरी है।दूर दूर से संतो के दर्शन के लिए श्रावकों की आवाजाही चालू है ।
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