राजस्थान कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बीच विपरीत दिशाओं में सुलह के दावे*

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*राजस्थान कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं के बीच विपरीत दिशाओं में सुलह के दावे*
राजस्थान कांग्रेस में दो नेताओ के बीच सियासी घमासान का अंत होने का दावा किया जा रहा है।कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के दिल्ली निवास स्थान पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच पिछले कई महीनों से विरोध चल रहा था।उसका बैठक के दौरान सुलह होने की बात मीडिया के समक्ष पेश की गई।दोनों दिग्गज नेताओं का फिर से एक होने का दावा किया गया है।लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट मीडिया के सामने उपस्थित हुए तब उनके चेहरे मुर्झाए हुए थे।चेहरों पर दोनों दिग्गज नेताओं के बीच सुलह के कोई लक्षण दिखाई नही दे रहे है।
2020 से दोनों नेताओं के बीच वैचारिक भेद टॉक ऑफ टाउन थे।धीरे धीरे संबंध इतने बिगड़ गए कि दोनों नेताओं की दिशा अलग अलग हो गई।एक दूसरे से कटने लगे थे।सचिन पायलट ने अनशन और जनसंघर्ष यात्रा की शुरुआत अशोक गहलोत के खिलाफ की गई थी।जिसमे तीन मांगे रखी गई थी।दरअसल,इस उठापटक के बाद भी कांग्रेस हाईकमान इस घटनाक्रम को चूपी साधे देखते रहे,लेकिन दोनों नेताओं के बीच सियासी मैत्री के लिए कोई प्रयास नही किया।हाई कमान की सचिन को लेकर यह मजबूरी रही होगी कि युवा नेता की राजस्थान में जरूरत है।चुनाव सिर पर है और कांग्रेस युवाओ को एक मंच पर एकत्रित करने का कार्य सचिन बखूबी निभाना जानते है।लिहाजा,हाईकमान ने सचिन को बारबार समझा कर वापस भेज दिया जाता था।उधर, अशोक गहलोत राजस्थान की सियासत के चाणक्य है।धुरंधर गहलोत राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके है।राजस्थान में वर्तमान टर्म में कांग्रेस की वापसी कराने के लिए जनकल्याणकारी योजनाओ का पिटारा खोल मतदाताओं को लुभाने और वोट दिलाने के प्रयास को तेजगति से आगे बढ़ाया जा रहा है।
कांग्रेस के लिए दोनों नेताओं की जरुरत है।कांग्रेस इनको खोना नही चाहती है।बैठक के दौरान कांग्रेस सुलह की बात कह रही है तो क्या अशोक गहलोत सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाने की सिफारिश करेंगे?अगर इस काम को गतिमान रखते हुए कांग्रेस राजस्थान में आगे बढ़ती है तो कांग्रेस राजस्थान में मुकाम हासिल कर सकती है।गहलोत ने मीडिया में दिए बयान में यह कहा कि सचिन कांग्रेस में है तो चुनाव मेंमिलकर काम करते है।इससे यह प्रतीत होता है कि सचिन पर अशोक गहलोत अभी भी विश्वास जताने में असफल रहे है।कांग्रेस की साख को बचाने के लिए मनमुटाव खत्म कर दोनों नेताओं को फिर से एक मंच पर आना होगा।क्योंकि इतने समय की एक दूसरे के बीच दीवार खींची चली आ रही है।जो अब नासूर बन गई है।अशोक की कामयाबी युवा नेताओ के समर्थन में है।कई सीटो पर दमखम दिखाने वाले सचिन के पास मतदाताओं का ब्रेकग्राउंड जनसंघर्ष यात्रा में स्पष्ट दिखाई दिया था।कांग्रेस दावा कर रही है कि दोनों नेताओ के बीच कोई गीले शिकवे नही है।तब दोनों नेताओं की हाजिरी एक मंच पर खुले में मतदाता देखना चाहते है।सचिन का विरोध मुख्यमंत्री बनने पर हो रहा है।लेकिन सचिन के लिए दूसरी पार्टी में कोई मुख्यमंत्री का प्लेटफार्म नही है।सचिन को अब भी पार्टी में सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद मिलता है तो सचिन के लिए सुखद प्रसंग होगा।
सियासी घमासान होता है तो टूट की आशंका रहती है।कांग्रेस सुलह की बात कर राजस्थान के चुनाव तक चूपी साधे रखने में अपना फायदा समझ रही है।लिहाजा,कांग्रेस के इस सीजफायर के बाद पंजाब में खेल खेला गया था उसकी पुनरावृत्ति राजस्थान झेल नही पायेगा?क्योकि इस बार भाजपा की बारी है और भाजपा नए समीकरण के साथ मैदान में उतर चुकी है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी दिनों में राजस्थान के अजमेर शहर से चुनावी प्रचार करने के लिए सियासी दांव खेल चुके है।
सचिन को सियासी जमीन तैयार करने के लिए समय की जरूरत है राजस्थान में चुनाव का बिगुल बज चुका है।ऐसे में सचिन के पास एक ही ऑप्सन है कि शांति के साथ कांग्रेस का हाथ पकड़े रहे,उसी में पायलट की भलाई है।अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अपनी अपनी अपने जगह पर इमेज है।जिससे दोनों को कोई अलग करना नही चाहता है।सचिन ने पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर सियासी हलचल पैदा कर दी थी।उसके बाद न हाईकमान की कोई टिप्पणी आई और न ही अशोक गहलोत ने पलट कर जवाब दिया ।इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे दोनों नेताओं की अहमीयत्त है।और कांग्रेस अशोक गहलोत से किनारा करना चाहती है और न ही सचिन पायलट से।अब जब सुलह का मार्ग खुलता दिखाई दे रहा है तो इसके बाद समर्थकों को और युवाओ को क्या संदेश देंगे?जिनके साथ कंधे से कंधे मिलाकर सड़को पर 42 डिग्री गर्मी में पैदल चले थे।दोनों नेताओं की जिद्द के सामने हाईकमान मजबूर है।अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद देना नही चाहते है और सचिन को मुख्यमंत्री बनना है।तब आखिरी फैसला क्या हो सकता है।कांग्रेस को सुलह के नाम पर पार्टी के अंदर ही खींचतान आगे बढ़ गई तो चुनावी मुद्दा बनते देर नही लगेगी।इसलिए जिस शांति और सुलह की बात को केंद्र में रखकर राहुल के आमने सामने बात को अमलीजामा पहनाया है वो कांग्रेस के हित में रहेगा।अलबत्ता,कांग्रेस शांति का परिचय दे।
कांतिलाल मांडोत*

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