उत्साहहीनता और निराशा जीवन के लिए अंधकार है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*उत्साहहीनता और निराशा जीवन के लिए अंधकार है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
गोगुन्दा 11 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि प्रत्येक जीवन अपरिमित क्षमता का भंडार है ।जीवन की महत्त्व पूर्ण व्यक्ति अपने जीवन में ही निहित है। वे उजागर भी हो सकती है। किन्तु आवश्यकता है उत्साह और आशा पूर्ण बन कर जीने की।उत्साहहीनता और निराशा जीवन के लिये अन्धकार है ।आज इस अन्धकार में लाखों मानव भटक रहे हैं। संत ने कहा दूर दूर से लोगो का आवागमन हुआ है।भीलवाड़ा से आई श्राविक का संघ की तरफ से बहुमान किया गया ।मुनि ने प्रवचन श्रृंखला को चालू रखते हुए कहा कि भटकाव जहां पैदा होता है वहां व्यक्ति किधर चला कोई कुछ कह नहीं सकता। आज जितने पाप पैदा हो रहे हैं,एक मात्र कारण है भटकाव । भटकाव का कारण निराशा है। महाश्रमण ने कहा कि व्यक्ति जीवन के क्षेत्र में ज्यों ही आगे बढ़ता हैं बहुत अधिक महत्वाकांक्षाएं पाल लेता है। जब महत्वाकांक्षाएं पूर्ण नहीं होती है तो निराशा पाले समुद्र में डूबने लगता है । धर्म मानव को निराशा के दलदल से बाहर निकालने का महत्व पूर्णकार्य करता है। धर्म का संदेश है अपने आप पर विश्वास करों। हम जो कुछ करते हैं वे ही कर्म है। यह धर्म का शाश्वत सिद्धान्त है। और सर्वमान्य है। इस सिद्धान्त में जीवन परिवर्तित करने की अपार क्षमता है। मानव अपनी कार्यविधि में परिवर्तन करके अपने भाग्य को भी बदल सकता है। यह बहुत उत्साह पूर्ण प्रेरणा है। यह प्रेरणा जीवन में फैली हुई निराशा को आशा में परिवर्तितकर देती है। मानव स्वरुपतः परमात्मा है। उसे अपने आप में छुपी हुई शक्तियोंकी समझ नहीं है। इसीलिए उसका भटकाव है। अपने भटकाव का समाधान उसे धर्म के प्रकाश में ढूंढना चाहिये। धर्म व्यर्थ नहीं है। यह अत्यन्त प्रेरक तत्वहै। इसे पूर्ण श्रद्धा के साथ आत्मसात् कर इसका उपयोग किया,जाए तो जीवन की सारी उलझनें अवश्य समाप्त हो जाएगी। धर्म की विधियों को कर्म काण्डकी तरह नहीं कर उसके सूक्ष्मार्थ को समझकर करना चाहिये । धर्म के क्षेत्र में निराशा का अस्तित्व ही नहीं है। यह प्रतिक्षण व्यक्ति को उत्साह प्रदान करने की महान क्षमता रखता है। क्योंकि इसके सिद्धान्त ही जीवन विकास के सूत्र हैं। रीतेश मुनि ने कहा कि समाज मे चमचा हर जगह मिल जाता है।चापलूसी करने वाले दोगलेपन का शिकार होते है।संत ने कहा इस तरह चापलूसी करके दो व्यक्तियों में खाई परिलक्षित करने वाले समाज के लिए घातक है।इस तरह के लोगो से बचने की जरूरत है ।सच्चाई जब तक आती है तब तक व्यक्ति व्यक्ति के बीच गहरा टकराव घर कर लेता है।चापलूसी करके सामने वाले व्यक्ति की प्रशंसा ओर दूर बैठा व्यक्ति उसकी चापलूसी का शिकार होता है।यह दोगलापन ठीक नही है।प्रभातमुनि मसा ने अहंकार से बचने की सीख दी।उपस्थित सज्जनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अहंकार करने वालो को समाज मे कोई पदवी या पद नही देता है।उससे समाज ही क्या परिवार भी कट जाता है।अहंकार दुसरो का नुकसान करें या नही करे, स्वयं के लिए समाज मे पीछे हट जरूर करवाता है।अहंकार से दूर रहने की नसियत दी गई।संतो के दर्शन के लिए उदयपुर डूंगला भीलवाड़ा और चितौड़गढ़ से आवागमन हुआ।तपस्वियों की तपस्या और उपवास आदि तप आराधना शुरू हो गई है।

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