युगों युगों तक हमारी संस्कृति और सभ्यता के गुणों की महक सुरभित करती रहेगी श्री कृष्ण की उदारता*

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*युगों युगों तक हमारी संस्कृति और सभ्यता के गुणों की महक सुरभित करती रहेगी श्री कृष्ण की उदारता*
आज कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व है। आज के दिन भारत की पावन धरा पर श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। महापुरुषों का जन्म प्रतिदिन नहीं होता। न हीं वे प्रतिमास, प्रतिवर्ष या प्रति सदी में जन्म लेते हैं। हजारों हजार वर्षों के पश्चात ही कोई दिव्य तेज इस धरती पर जन्म लेता है। जो अपना प्रभाव राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र में छोड़ जाता है ।अर्थात जब जब भी इस पुण्य भूमि में भारत में धर्म की हानि होती है, आडंबर और पाखंड समाज के प्रत्येक भाग में सिर उठाने लगते हैं तब तब धर्म के वास्तविक स्वरूप का उत्थान करने हेतु कुछेक ऐसी महान शक्तिया पैदा होती है। भगवान श्री कृष्ण ऐसे ही महापुरुष थे। परंपरा के अनुसार श्री कृष्णा को जन्मे हजारों वर्ष व्यतीत हो गए हैं उनके कार्यों से तत्कालीन समाज व राजनीति अत्यधिक प्रभावित हुई थी। यही कारण है कि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग है और देश विदेश में करोड़ों लोगों के लिए भी आराध्य बने हुए है।
*महापुरुषों का अभ्युदय*
श्री कृष्ण कथा से भला कौन परिचित नहीं होगा? जब भारत में आसुरी शक्तियां अपना प्रभाव दिखाकर जन जन को सत्य से हटा रही थी ।भक्तों और सज्जनों का जीना दुश्वार हो रहा था,विरोध करने वालो को कारागार की हवा खानी पड़ती थी। तब वे कृष्ण ही थे, जिन्होंने सबसे लोहा लिया और विधर्मियो का नाश किया ।यो ऐसी प्रत्येक परिस्थितिया प्रत्येक युग में कम ज्यादा बनती रहती है ।अंग्रेजों के शासनकाल में भी बनी थी, तब भी हजारों देश भक्त जेलो में डाल दिए गये ।फांसी पर चढ़ा दिए गए।उस काल में महात्मा गांधी जैसे महापुरुष का अवतरण हुआ था।
श्री कृष्ण का जन्म वासुदेव की पत्नी देवकी की कुक्षी से मथुरा के कारागृह में हुआ। मथुरा नरेश कंस ने अपनी बहन और बेहनोइ को जेल में डाल दिया ।उसी जेल में कृष्ण ने जन्म लिया। उनके जन्म के समय प्रकृति उनके अनुकुल थी। देव शक्ति का प्रभाव कहे या मानव के प्रयास का, देवकी की आठवीं संतान को सुरक्षित गोकुल भेज दिया गया, जहां ग्वालों के मध्य नंद यशोदा के यहां उनकी परवरिश हुई।घी दूध का खूब सेवन करते हुए उन्होंने अपनी शक्ति को बढ़ाया और मात्र 11 वर्ष की उम्र में अपने ही अत्याचारी मामा कंस का वध कर समाज को अगणित अत्याचार से मुक्ति दिलाई।
भगवान श्रीकृष्ण का प्रेम*
श्री कृष्ण का जीवन सचमुच अद्भुत था ।वे सच्चे प्रेमी थे। प्रेम ऐसा जिसमे सिर्फ प्रेमी था ।वासना का उसमें कोई स्थान नहीं था। उन्होंने गोकुल के कण कण में से प्रेम किया। गोपियों उनके प्रेम में मगन रहती थी । गाये कृष्ण को देखकर रंभाने लगती थी। उनकी झलक पाते ही स्वयं दुग्धधारा बहाने लगती थी ।गोपियां श्रीकृष्ण की शिकायतें करती हुई भी प्रश्न होती थी। उनकी बाल सुलभ उद्दण्डता में भी स्नेह का निर्झर बहता था। गोपियां भगवान कृष्ण के आने पर भी परेशान हो जाती थी और उनके चले जाने पर भी उनका स्मरण कर परेशान होने लगती थी ।भागवत में ऐसे प्रसंग भरे पड़े है। जब श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ मथुरा चले गए और वहां से नहीं लौटे तब जो गोपिया कभी यशोदा से उसकी शिकायत करती थी ,वे ही अपने मन की व्यथा गायों के माध्यम से व्यक्त करती थी।
श्री कृष्ण करुणा के सागर थे। जिनके मन मे करुणा है ,दया है,, प्रेम है उनकी याद किसको नहीं आती? गोकुल की गोपिया स्वयं तो श्री कृष्ण वियोग में दुखी है ही मगर गायों की दिशा उनसे अधिक करुणाजन्य दिखाई देती है।वे उद्धव के द्वारा संदेश भेजती है कि गाये आपका स्मरण करके कमजोर हो गई है। उनकी आंखों में आंसू बरसते रहते हैं। आपका नाम सुनते ही हुंकारने लगती है। जिन जिन स्थान पर आपने गायों का दोहन किया,वे उन स्थानों को ढूंढती हैं, मगर वही आपको न पाकर पछाड़ खाकर गिर पड़ती है। उनकी तडफ देखकर लगता है, मानो मछली को जल से निकाल दिया हो।वास्तव में यह प्रेम की पराकाष्ठा है।
*सत्य के पक्षधर*
भगवान श्री कृष्ण परम् ज्ञानी थे। कंस का दामन एक मथुरा का राज्य अपने नाना उग्रसेन को देखकर द्वारिका चले गए ।वहीं राज्य विस्तारकर शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।वे शक्ति के प्रबल पक्षधर थे। कौरव पांडव दोनों के संबंधी होने पर भी उन्होंने सदैव सत्य का पक्ष लिया। ध्रूत कीड़ा में षड्यपूर्वक पांडवों को हराकर कोरवो ने उनको वनवास दे दिया। वनवास अवधि पूर्णकरके पांडवों ने जब अपना राज्य मांगा तो दुर्योधनमु कर गया। पांडवों के पश्चात राजा ने शक्ति से राज्य प्राप्त करने की बात कही तो कृष्ण राजा होते हुए भी शांति दूत बनकर कौरवो की सभा में पहुंचे ।युद न हो इसलिए श्री कृष्ण ने राज्य के बदले सिर्फ पांच गांव देने का प्रस्ताव रखा। अभिमानी दुर्योधन न केवल कृष्ण का शांति प्रस्ताव ठुकराया ,अपितु उनका अपमान भी किया। किंतु कृष्ण ज्ञान व विवेकी थे। युद्ध होने पर देश की क्या दशा होगी,ये सब बाते उन्होंने बताई। अज्ञानी लोग अभियान की वशीभूत होकर जीवन के यथार्थ को भूल जाते हैं विकास नहीं होता बल्कि उससे भी विनाश को ही निमंत्रण मिलता है जो देश सदैव युद्ध में ऊंचे रहते हैं कि कभी भी प्रगति नहीं कर पाते।
*कांतिलाल मांडोत*

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