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अहिंसा किसी व्यक्ति,देश या जाति विशेष की सम्पति नही-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*अहिंसा किसी व्यक्ति,देश या जाति विशेष की सम्पति नही-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 18अक्टूबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने फरमाया की जीवन के महान क्षण बीत गये।लेकिन आज दिन तक हमने जीवन के सत्य को नही पहचाना।हम अभी तक अपनी आंखों से असत्य का पर्दा नही हटा पाए। महावीर स्वामी ने सत्य को ही जीवन मे अपनाने पर जोर दिया।जीवन मे सत्य की उतनी ही आवश्यकता है,जितनी कि घर मे अंधेरे को हटाने के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है।सत्य तो जीवन का बल है।उसमें अद्भुत प्रकाश समाया हुआ है।मुनि ने कहा अंतिम विजय तो सदा सत्य की ही होगी।सत्य को बिसराओ मत,उसे स्वीकारो।सत्य से बढ़कर कौनसी शक्ति है?महात्मा गांधी तो इसी शताब्दी में हुए थे।उनके पास क्या शस्त्र बल था?नही उनके पास बल था सत्य का।करोड़ो भारतवासी उनके दीवाने थे।उन्होंने जीवन मे सत्य को उतारा।अंग्रेजो को सत्य का पाठ पढ़ाया।बताया कि सारस की भांति गर्दन को रेत में छिपाने से खतरा टलेगा नही?सत्य सदैव कल्याणकारी एवं सुंदर होता है।
प्रवीण मुनि ने कहा अहिंसा किसी व्यक्ति ,देश या जाति विशेष की सम्पति नही है।यह तो विश्व का सर्वमान्य सिद्धान्त है।यह मानवता का उज्ज्वल प्रतीक है।उनके द्वारा ही जन समाज की सारी व्यवस्थाऐ व प्रवृतियां युग युग से सुचारू रुप से चली आ रही है।जिस व्यक्ति के जीवन मे अहिंसा का भाव नही,वह नरक समान है।अहिंसा वीरता सिखलाती है।अहिंसा वीरो का धर्म है।महावीर स्वामी के समय भारतीय इतिहास में अंधकार पूर्ण युग माना जाता था।उस समय भारतीयों पर अंध विश्वास और रूढ़िवाद के बादल सर्वत्र मंडरा रहे थे।यज्ञ के नाम पर देवी देवताओं के प्राणों की होली खेली जाती थी।स्त्री समाज की भावना से खेला जाता था।उस समय श्रमण संस्कृति के भगवान महावीर ने अलख जगाई।गांव गांव घूमकर अहिंसा और प्रेम का संदेश सुनाया।रितेश मुनि ने कहा कि आत्म निरीक्षण करके देखना है कि क्या हम असत्य से सत्य की और बढ़े है?क्या अंधेरे में से उजाले की और कदम रखा है।मुनि ने कहा यदि इस हेतु सच्चे ह्दय से क्षणिक भी प्रयास हुआ है।हमने मृत्यु से अमरता की और प्रस्थान किया है।सत्य पर अडिग रहकर अपनी सौरभ लुटाने वाले प्रसंगों में महासती अंजना का प्रसंग भी अद्भुत एवं देदीप्यमान है।प्रभातमुनि मसा ने इसी सत्य पर जोर देकर कहा कि रामायण उठाकर देखो-सीता की अग्नि परीक्षा होने जा रही थी।इस करुणाजनक स्थिति को देखकर अयोध्यावासी झर झर आंसू बहा रहे थे।राम की निष्ठुरता देख उनके मन में उथल पुथल मची थी।प्रभातमुनि ने कहा सीता ,द्रोपदी और अंजना की गाथाएं युग को आज भी प्रेरणा प्रदान कर रही है।

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