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धैर्य के फल मीठे और मधुर होते है,विपत्ति के समय धैर्य धारण करना चाहिए*

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*धैर्य के फल मीठे और मधुर होते है,विपत्ति के समय धैर्य धारण करना चाहिए*
जब भी कभी विपत्ति,विनाश और संकटों के बादलों ने,भूचालों या आंधियो ने मानव की शक्ति,उसकी सत्ता या प्रतिभा को दबाना चाहा, उसे तिरस्कृत करना चाहा,तब सदा ही वे व्यक्ति उन झंझटो, तुफानो को सफलतापूर्वक जीत सके है,जिन्होंने असीम धैर्य का परिचय दिया और इसे आधार स्वीकृत किया।धैर्य एक ऐसा मानवीय गुण है,जो समस्त गुणों को प्रकाशित करने की क्षमता रखता है।वही इसके सुखो को स्थिरता प्रदान करता है और विवेक की ज्योति को जागृत रखने में महत्वपूर्ण सहयोगी बनता है।व्यक्ति का व्यक्तित्व जब तक धैर्य के सम्बल पर टिका हुआ है,तब तक वह प्रत्येक विपत्ति में और अधिक निखरकर निकलता रहेगा।

जितने संकटों के द्वारों से वह गुजरेगा,सफलता का राजमहल उतनी ही निकटता तक चला जायेगा।इसलिए अनुभवी संतो विद्वानों और ऋषि महऋषियों ने जीवन की सफलता का बहुत कुछ श्रेय धैर्य पर आधारित माना गया है।घर मे किसी की मौत होने पर परिवारजन को धैर्य रखने की सलाह दी जाती है।किसी घर मे परिवार के परिवार उजड़ जाते है।आर्थिक विपत्ति,घर मे भाई बहन या पत्नी की मौत के बाद व्यक्ति टूट जाता है।उस समय ढाढस बंधाया जाता है और धैर्य धारण करने के लिए कहा जाता है।जोधपुर में गत दिनों एक परिवार में दोनों भाई बहन की मुँहबोले दादाजी ने हत्या कर दी।उस समय माता पिता को असहाय वेदना से गुजरना पड़ा था।आये दिन अनेक तकलीफों से गुजरने वाले व्यक्तियों के लिए धैर्य सबसे अहम और महत्वपूर्ण है।

जिसके सहारे आदमी विपत्ति से लड़ सकता है।मार्ग धीरे धीरे ही पार करना चाहिए।यहाँ धीरे धीरे से शिथिलता न समझे।धीरे धीरे का अभिप्राय धैर्यपूर्वक सोच समझकर कार्य करने से है।पहाड़ की चढ़ाई भी व्यक्ति को धैर्यपूर्वक चढ़नी चाहिए।वरना उसे अपना उद्देश्य पूरा करने में सफलता नही मिल पायेगी। नतीजतन,इसी तरह विद्याध्ययन और धनोपार्जन में भी व्यक्ति पर्याप्त धैर्य धारण करना आवश्यक होता है शीघ्रता से प्राप्त की गई विधा स्थिर नही हो पाती और धनोपार्जन में की गई व्यग्रता लाभ के स्थान पर हानि का भी निमित बन सकती है।जिस व्यक्ति में धैर्य का सम्बल नही होता,वह छोटे से छोटे कार्य को भी सिद्ध करने में सफल नही हो पाता और कार्य को शीघ्रता में करने का अभ्यस्त हो जाता है।परिणाम यह निकलता है कि ऐसे लोग किसी भी कार्य को शुरू करने की जल्दबाजी में उसके गुण अवगुणों का न तो विचार कर पाते है,और न ही उस कार्य की सफलता के लिए सुविचारित रुपरेखा ही बना पाते है।इस प्रकार के अविवेकी कदम उठाने से उन पर विपत्तियों का पहाड़ सा टूट पड़ता है। 

इससे व्यक्ति को असफलता ही हाथ लगती है।जो विवेकपूर्वक पूर्णतया सोच विचार कर धैर्य के साथ किसी कार्य को एक बार शुरू कर देते है तो फिर उस कार्य को पूर्ण करके ही छोड़ते है।उसकी पूर्णता में कितने ही विघ्न क्यो न आये,उनका धैर्य सदा साहस बनाए रखता है और अपने पथ पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा भी प्रदान करता रहता है।धैर्य नही रखने वाले राई को पहाड़ बना देते है। हम समाज मे हर रोज देखते है।धैर्य की कमी के कारण एक दूसरे पर हमला कर देते है।मानसिक हमले से ज्यादा खतरनाक हमला शारीरिक होता है।परिवार में हररोज तमाशा बनाने वाले कभी कभी बड़े स्वरूप में सबकुछ खो देते है।किसी आवेश में आकर हद से ज्यादा व्यक्ति उतेजित होकर अपने रिश्तेदारों को खरी खोटी कह देता है।उससे रिश्तों में दरार पड़ जाती है।हर बात पर बारीकियों से सोच समझ कर निर्णय लेकर बात रखे।क्योकि धीरज मनुष्य का बहुत बड़ा गुण ही नही है वह जीवन मे सम्मान प्रतिष्ठा में अभिवृद्धि करता है।हमे हर कदम पर धैर्य धारण करने की आवश्यकता है।

                       *कांतिलाल मांडोत*

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