अज्ञान के कारण फलस्वरूप दुःख भी सुख लगता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*अज्ञान के कारण फलस्वरूप दुःख भी सुख लगता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 20 अगस्त
उमरणा में धर्मसभा का आयोजन
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन संघ के तत्वावधान में धर्मसभा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि सभी प्रकार के भौतिक सुख ,पांचों इंद्रियों में से किसी भी इंद्रिय को अच्छा लगने वाला हो,समाज मे प्रतिष्ठा आदि का हो अन्य किसी भी प्रकार का सुख हो जो अनुकूल वस्तु या परिस्थिति से मिलता है उसको सुख मान लेना ही सबसे बडी भूल है और इस भुल का कारण स्वयं का अज्ञान ही है ।क्योकि कोई भी भौतिक सुख शास्वत नही हो सकता ,साथ नही चल सकता और जितने समय भी वह रहता है प्राणी को मूर्छित अथवा बेहोश करता रहता है।संत ने कहा कि धीरे धीरे पराधीनता में जकडता जाता है।जैन संत ने कहा जितने भी अज्ञानी प्राणी है वे सभी दुःखों को उत्पन्न करते हैऔर इस अज्ञान के कारण ही मूढ़ पुरूष अनन्त संसार मे सभी प्रकार के दुःखो को बार बार भोगता हुआ परिभ्रमण करता है।मुनि ने कहा राग एवं अहं का मूल कारण मिथ्यात्व है।जड़ शरीर और कुटुम्ब को अपना समझ लेना ही मिथ्यात्व है।प्रवीण मुनि ने कहा कि जिस व्यक्ति या वस्तु या परिस्थितियों को हम अपना समझते है,उनकी अनुकूलता में सुख व प्रतिकूलता में दुःख महसूस होता है।इस आसक्ति को कम करना ही सुख है।हर समय सुखी रहना है तो वस्तु या परिस्थितियों के प्रति मेरापन कम करना चाहिए।रितेश मुनि ने कहा कि ममत्व अगर दुःख का मूल है तो हम ममत्व करते ही क्यो है?हम ममत्व उसी वस्तु से करते है जिससे हमारा स्वार्थ होता है।संत ने कहा भूख का स्वार्थ मिटने पर मिठाई भी बुरी लगने लगतीं है जबकि मिठाई तो वही है।संत ने कहा जब तक मनुष्य का स्वार्थ पूरा होता है तब तक ही उसमें ममत्व रहता है।स्वार्थ में कमी होने पर ममत्व द्वेष का रूप धारण कर सकता है।प्रभातमुनि ने प्रवचन माला में कहा कि आत्मा में अनन्त शक्ति अनंत सुख रहा हुआ है।परंतु अज्ञानी मनुष्य को मालूम ही नही है कि अपने भीतर अनन्त शक्ति रही हुई है।अज्ञान के कारण सुख के खजाने को जानने की और अभ्यास के द्वारा सिहत्व को जगाने की आवश्यकता है।
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