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सुख की चाह के लिए तप की साधना अनिवार्य है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*सुख की चाह के लिए तप की साधना अनिवार्य है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

कांतिलाल मांडोत

गोगुन्दा 2 सितंबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ के तत्वावधान में पर्युषण पर्व में जिनेन्द्रमुनि मसा के मुखारविंद से आगम वाणी का विवेचन हो रहा है।संत ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को बताया कि सुख की चाहत के लिए तप आराधना जरूरी है।मुनि ने कहा कि माता का स्थान सर्वोपरि है।हमारे जीवन मे माता का स्थान सर्वोपरि है।माता ही बच्चे की प्रथम गुरु होती है जीवन मे हर प्रकार की बाधाओं को पार करने की प्रेरणा देती है।

संत ने कहा पर्युषण पर्व धार्मिक भावनाओं को जागृत करने वाला पर्व है।प्रवीण मुनि मसा ने जैन धर्म मे वर्णित चौथे आरे के बारे में बताते हुए कहा कि आने वाला समय अधिक कठिन समय होगा।मुनि ने कहा कि आत्मा के कल्याण के लिए कठिन पुरुषार्थ करना होगा।जीवन मे आत्म सुख को पाने के लिए आत्म कल्याण का विचार करना पड़ेगा।रितेश मुनि ने कहा कि बच्चों के विकास में माता की भूमिका सर्वोपरि है।

माता समाज और परिवार की आदर्श निर्माता है।नारी की महिमा बताते हुए मुनि ने कहा कि माता कुमाता नही होती है।लेकिन अपवाद को छोड़कर कुछ माता अपने गरिमामय पद पर कीचड़ उंडेल रही है।यह आदर्श माता की गरिमामय उपलब्धि नही है।प्रभातमुनि ने कहा जो त्याग करता है वह तप की श्रेणी में आता है ।तप करने वाला ही तपस्वी कहलाता है मुनि ने कहा जप ने आगे बढोगे तो तप की महिमा होगी। संत ने कहा आठ दिवस महत्वपूर्ण है ।हमे तप प्रतिदिन करना है।आत्मा में लगे कर्मो को तपा दे ,वह तप की श्रेणी में आता है।मुनिने कहा पाप की अनुमोदन नही करे,तप में बड़ी ताकत है।स्वाध्याय जितना अधिक करोगे ,दुनिया मे पाप से उतना ही दूर रहोगे।पर्युषण पर्व में अन्य राज्य से लोगो का आवागमन हुआ।

रेलमगरा के श्रावको ने संतो के दर्शन किये।जिनेन्द्रमुनि मसा के दर्शन लाभ लेने वाले कमोल निवासी कस्तूरचंद सोलंकी को राजस्थान सरकार ने भामाशाह की उपाधि दी है।सभागार में कस्तूरचंद सोलंकी को समाज और संत समाज की तरफ से महादानी कर्ण की उपाधि देते हुए संघ की तरफ से शाल और माला पहनाकर स्वागत किया गया।श्री महावीर जैन गौशाला के अध्यक्ष हीरालाल मादरेचा और उपाध्यक्ष अशोक कुमार मादरेचा ने अतिथियों का स्वागत किया।इस दौरान कस्तूरचंद सोलंकी गोपाल सेठ प्रकाश लौढा वच्छराज घटावत सोहनलाल मांडोत कुंदनमल चौरड़िया आदि उपस्थित रहे।गाय को मीठा भोजन अर्पण करने वाले कुंदनमल चौरड़िया का सम्मान किया गया।तपस्वियों को प्रत्याख्यान करवाया गया। स्थानक भवन में जप शुरू किए गए है।
कस्तूरचंद सोलंकी को जिनेन्द्रमुनि मसा ने दानवीर कर्ण की उपाधि दी गई-फोटो जैन समाज

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