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धर्म सम्पूर्ण जीवन को संतुलित ओर संयमित बनाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

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*धर्म सम्पूर्ण जीवन को संतुलित ओर संयमित बनाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 30 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा (सायरा) में महावीर गौशाला स्थित स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि जन्म-मरण आदि के वेग में बहते – डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है तथा उत्तम शरण है। संसार में जन्म-मरण आदि का जल-प्रवाह प्राणियों को तीव्र वेग के साथ बहाये ले जा रहा है। जो धर्म की शरण में आ जाता है, वह बहने डूबने से बच जाता है। आपने समुद्र को देखा होगा ? समुद्र में कई जहाज चलते हैं। डगमगाते हुए जहाजों के लिए समुद्र में आधारभूत द्वीप होता है। इसी तरह जो धर्मरूपी महाद्वीप में आकर टिक जाता है, फिर जन्म जरा मरण रूपी तीव्र जल-प्रवाह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सार रूप में यों समझ लें कि धर्म का महत्त्व असंदिग्ध है।
जैन संत ने कहा धर्म का सम्बल जीवन में सबसे बड़ा सम्बल है। धर्म अन्तर में शांति और साहस का संचार करता है। धर्म की डगर पर चलने वाला कभी लक्ष्य से नहीं भटकता। धर्म से सदा उत्स की सौगात मिलती है। धर्म से चंचलता मिटती है, मन और इन्द्रियों पर अनुशासन होता है। धर्म, व्यक्ति को अपने आप से जोड़ता है। धर्म सम्पूर्ण जीवन को संतुलित और संयमित बनाता है। धर्म उच्च आचरण के मार्ग को प्रशस्त करता है। धर्म समभाव की प्रतिस्थापना करता है। धर्म जीवन का अमृत है।
रितेश मुनि ने जिनेन्द्रमुनि मसा के प्रवचन को मुख्यधारा से जोड़ने वाला बताया और कहा कि धर्म जीवन और जगत् का आधार है। धर्म दुर्गति से बचाकर सुगति देता है। समभाव से रहने की सुमति धर्म ही प्रदान करता है। कहाँ तक कहें, धर्म की महिमा अवर्णनीय है।धर्म को संसारभर के सभी मंगलों में सर्वोत्कृष्ट मंगल कहा है। जो जुड़ा है, उसके जीवन में अशुभ और अमंगल को स्थान नहीं है। जिसकी धर्म में श्रद्धा है और जिसके जीवन में धर्म का आचरण है, वह अंतर- बाह्य दृष्टि से कभी भी दरिद्र नहीं हो सकता।
प्रवीण मुनि ने कहा कि कल से पर्युषण महापर्व की आराधना शुरू होगी।मुनि ने तप आराधना करने का मुख्य द्वार धर्म को बताया और कहा कि धर्म कल्पवृक्ष के समान है। अहिंसा, संयम और तप से परिपूर्ण धर्म से जुड़िये। इस जुड़ाव के बाद जीवन में किसी भी तरह के क्लेशों की अवस्थिति नहीं रहेगी। धर्म सुख और शान्ति का विस्तार करता है। मनुष्य को चाहिए कि वह अप्रमत्तभाव से धर्म को जीवन के व्यवहार में जीयें।
प्रभातमुनि मसा ने कहा कि पर्युषण पर्व में तप नही कर सकते है तो सामायिक करने का आग्रह किया।मुनि ने कहा कि धर्म-साधना से शून्य है, उसके और पशु के जीवन में किसी तरह का अंतर नहीं है। धर्म के मर्म को बहुत कम लोग जानते हैं। यही कारण है कि धर्म के नाम पर बाहरी क्रियाकाण्डों एवं सम्प्रदायवाद का पोषण अधिक हो रहा है। 1सितंबर से पर्युषण महापर्व शुरू होंगे।सभी धर्मप्रेमी भाई बहनों को सत्संग श्रवण करने एवं तप आराधना करने का आग्रह किया।

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