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गोगुन्दा तहसील के गांवों की गलियों में गणगौर के गीतों की गूंज, गोगुन्दा में पूरे शबाब में गणगौर पर्व*

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*गोगुन्दा तहसील के गांवों की गलियों में गणगौर के गीतों की गूंज, गोगुन्दा में पूरे शबाब में गणगौर पर्व*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 26 मार्च
गणगौर एक रंगीन पर्व है जो होली के दूसरे दिन से शुरू होता है जो 18 दिन तक चलने वाला त्योहार है।यह मान्यता है कि गवरज्या होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती है।तथा 18 दिनों के बाद ईसर उन्हें फिर लेने के आते है।यानी चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है।गोगुन्दा सायरा,ओगना आदि क्षेत्र में गणगौर पूरे शबाब पर है।हर दिन कुंवारी युवतियां सरोवर या कुएं से पानी लाकर महादेव मंदिर में जलाभिषेक करने का क्रम चल रहा है।गणगौर पर्व हर राज्य में अलग अलग नामो से जाना जाता है।लेकिन राजस्थान का विशिष्ट पर्व के रूप में मनाया जाता है।राजस्थान में हर जिले में उत्साह और उमंग के साथ इस त्योहार को मनाते है।

विवाहिता और अविवाहिता कुंवारी लडकिया 16 दिन तक व्रत उपवास रखती है।विवाहिता महिलाएं अपने पति की दीर्धायु और घर मे सुख शांति और समृद्वि के लिए व्रत रखती है तो कुंवारी लडकिया मन चाहा पति या वर पाने के लिए व्रत उपवास रखती है।गणगौर सिंजारा के दिन महिलाएं एवं युवतियां हाथ मे मेहंदी लगाती है और अपनीं पूजन की गई गणगौर को किसी तालाब या सरोवर में जाकर पानी पिलाती है।इसके बाद दूसरे दिन उसका विसर्जन करने का विधान है

गणगौर माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है।यह वैवाहिक और दाम्पत्य सुख का प्रतीक माना गया है।गणगौर शबाब पर है।युवतियां और महिलाएं गणगौर के इस पर्व को धूमधाम से मना रही है।राजस्थान में गणगौर पर्व का बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।यह शहरों और गांवो में धूमधाम से मनाया जा रहा है।छोटी छोटी बालिका इसको पर्व के रूप में देखती है।राजस्थान का इतिहास आज भी हरेक के जेहन में है।यू तो राजस्थान में हर त्योहार रुची से मनाया जाता है,लेकिन गणगौर ही एक ऐसा पर्व है जिसमे भगवान शिव और पार्वती की सांसारिक कहानी है जो मनुष्य जीवन के लिए सकारात्मक भूमिका अदा करने के लिए काफी है।

आज गांवो में हर गांव में गणगौर पर्व पर बालिका नृत्य कर और राजस्थानी भजनों पर घूमर लेकर उत्साहित होती है तो ग्रामीण शिव मंदिर प्रांगण में एकत्रित होकर बेटियों का उत्साह और गणगौर के प्रति आस्था को देखकर अभिभूत होते दिखाई देते है।इस पर्व में भौतिक ही नही आध्यात्मिक महत्व को दर्शाया गया है।गणगौर महिला शशक्तिकरण का प्रतीक रूप इसलिए माना गया है कि इसमें महिलाओं और बच्चियों के भावी योग्यता की झलक देखने को मिलती है।

यह भक्ति ही नही सम्पूर्ण अध्यात्म से जुड़ी परम्परा है जिसको मनाने से आत्मिक अनुभूति होती है।यह भगवान शिव से जुड़ी आस्था का प्रतीक रूप ही नही है। इस पर्व को मनाने के बाद महिलाएं और युवतियां आत्मिक सुख का अनुभव करती है ।हेमा प्रजापत ने बताया हम छोटी उम्र से ही गणगौर पर्व धूमधाम से मनाते आ रहे है।मनु सुथार ने कहा कि यह पर्व सुख समृद्वि में वृद्धि करने का महान पर्व है।राजस्थान में गणगौर पर्व लोकनृत्य है तो उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में भी धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है।गणगौर हर वर्ष सभी राज्यों में मनाते है लेकिन इस पर्व को राजस्थान में धूमधाम से मनाया जाने वाला विशिष्ट त्योहार है।गोगुन्दा में गणगौर मेला प्रसिद्ध है।इस बार भी गणगौर मेले की तैयारी शुरू हो गई है।

नाथद्वारा में गुलाबी गणगौर मनाने का रिवाज है।इस दिन महिलाएं और युवतियां गुलाबी कपड़े पहनती है।राजस्थान के पुराने रीति रिवाजों को प्रदर्शित करने वाला सामाजिक उत्सव है।सायरा और भानपुरा में भी गणगौर पर्व मनाने युवतियां घूमर नृत्य कर कुएं से लाया जाने वाला पवित्र जल महादेव या पीपल को अर्पित कर आशीर्वाद ग्रहण कर रही है।

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