नमस्कार 🙏 हमारे न्यूज पोर्टल - मे आपका स्वागत हैं ,यहाँ आपको हमेशा ताजा खबरों से रूबरू कराया जाएगा , खबर ओर विज्ञापन के लिए संपर्क करे 9974940324 8955950335 ,हमारे यूट्यूब चैनल को सबस्क्राइब करें, साथ मे हमारे फेसबुक को लाइक जरूर करें , जिवन में अति का प्रवेश होते ही दुःखों का आगमन हो जाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा* – भारत दर्पण लाइव

जिवन में अति का प्रवेश होते ही दुःखों का आगमन हो जाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*

😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊

*जिवन में अति का प्रवेश होते ही दुःखों का आगमन हो जाता है-जिनेन्द्रमुनि मसा*
आकाश का कोई छोर नही,उसी तरह तृष्णा का कोई अंत नही,समाप्ति नही,तृष्णा अनन्त आकाश की भांति
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 22 सितंबर
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर गौशाल उमरणा में श्रावकों के समक्ष जिनेन्द्रमुनि मसा ने फरमाया कि जो तृष्णारहित है ,उसके लिए कुछ भी संभव नही है।वास्तव में कठिनाइयां तो उसके सामने आ रही है,जिसकी तृष्णा बढ़ी हुई है।जिसकी आवश्यकता असीमित है।जिसे और और की भुख बढ़ रही है।वही दुःखी एवं परेशान है।रोटी कपड़ा और मकान ये तीनो जीवन मे सहज रूप से मिल जाये।वह मानव सुखी कहलाता है।आज मानव मन की आकांशा केवल निर्वाह तक सीमित नही रही है,वह और भी कुछ प्राप्त करने की इच्छा रखता है।उसकी तृष्णा ने उसके मन मस्तिष्क को दबा दिया है।उसकी कामनाएं आकाश को झपटने हेतु लालायित हो रही है।जीवन मे अति का प्रवेश होते ही दुःखों का आगमन हो जाता है।मुनि ने कहा अति को रोको,वरना दुःखों को अनचाहा आमंत्रण मिल जाएगा।वे बिना बुलाये आपके मेहमान बन जाएंगे।जिन लोगो ने अपनी इच्छाओं ,आकांशाओ व तृष्णाओं को बढ़ा लिया है,उन्हें फिर जीवन मे शांति की कामना नही करनी चाहिए।मुनि ने कहा समस्याए जीवन निर्वाह के कारण नही,बल्कि अति निर्वाह के कारण पैदा हो रही है।अति निर्वाह की आकांशा ने लोभ और तृष्णा को जन्म दिया है।सागर मे एक लहर के बाद दूसरी लहर उठती है,उसी प्रकार एक इच्छा के पूर्ण होते ही दूसरी स्वतः पैदा हो जाती है।अति निर्वाह इसी तृष्णा का रूप है,जो बढ़ता ही जाता है।उसका कोई अंत दिखाई नही देता है।सिकन्दर सारी दुनिया को जितने की इच्छा लेकर ही दुनिया से चला गया।उसकी मनोकामनाएं पूरी नही हो सकी।प्रवीण मुनि ने कहा आज का मानव भौतिक सुख के पीछे भाग रहा है और आत्म शांति से दूर होता जा रहा है।भौतिक सुखों की यह भुख कभी न मिटने वाली भूख है।आत्म शांति का एक क्षण भी हमारी वर्षों की तृष्णा को शांत कर देता है।आज मनुष्य शांति की तलाश में अधिक दौड़ रहा है।लेकिन भौतिक सुख के पथ उन्हें दुःख में धकेल देते है।रितेश मुनि ने कहा कि किसी के मन को पीड़ा पहुंचाना भी हिंसा है।वह में शबरी प्रभु राम की प्रतीक्षा में व्याकुल बनकर बैठी रही,उसे ज्ञात था कि राम इधर से ही निकलेंगे तो मेरी कुटिया में अवश्य आएंगे।शबरी का आग्रह राम लक्ष्मण को उसकी कुटिया तक ले गया।दीन शबरी भला राम का कैसे सत्कार करती?उसने जंगल से बेर चुने थे।,उन्ही को राम के सामने रखा और चख चखकर खिलाने लगी।जहाँ सम्यग्दृष्टि का भाव आता है ,वहां ऊंच नीच नही रहता है। प्रभात मुनि ने कहा कि दान सभी को करना चाहिए।कहते है जिस कूप का जल नही निकाला जाता,उस कूप का जल सड़ने लगता है।जो धन तिजोरी में बन्द है ,उसकी गति भी बुरी होती है।धनपति को भी चाहिए कि वह पात्र देखकर धन का विसर्जन करे।

Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें 

Advertising Space


स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे.

Donate Now

लाइव कैलेंडर

December 2025
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
293031