पत्रकारिता को लोकतंत्र गामी और लोकतंत्र को उन्नत बनाने का लक्ष्य रखे*
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*पत्रकारिता को लोकतंत्र गामी और लोकतंत्र को उन्नत बनाने का लक्ष्य रखे*
लोकतांत्रिक समाज मे पत्रकारिता को चौथा स्तम्भ माना जाता है।बिना किसी खास संवैधानिक अधिकारों और भारत जैसे देशो में सतत आर्थिक सुरक्षा के बावजूद अगर सच की आंख से किसी घटना को देखना संभव है तो उसका बड़ा और भरोसेमंद जरिया पत्रकारिता ही है।पत्रकारों को समाज का संरक्षण हासिल होने चाहिए ।लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है पत्रकारिता का लक्ष्य पैसा कमाना नही बल्कि पत्रकारिता के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत करना है।मज़बूत संकल्प शक्ति और धैर्य की स्पष्टता से आगे बढ़ने से सफलता चरण चूमती है।हथियार जब सिपाही के हाथ मे होता है तो वह सुरक्षा के लिए उपयोग होता है।पत्रकारिता को एक मिशन समझने वाले ही विरले होते है।राष्ट्र समाज और राजनैतिक पृष्टभूमि को मजबूत आधारस्तम्भ का मकसद पत्रकारिता है।वर्तमान में हथियार नही हाथो का ही महत्व है।अखबारों से जुड़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल है तो इसको सबसे अधिक खतरा सरकारो का होता है।पत्रकारों को देखते हुए आये दिन घटित होने वाली घटनाओं को देखते हुए पत्रकार सुरक्षा अधिनियम लागू करने ,अधिस्वीकृत अधिनियम में सरलीकरण के लिए सरकार से समय समय पर पत्रकार संगठनों ने गुहार लगाई है।लेकिन सरकार की मंशा नही लगती है।मोहरा बनाने का काम किया जा रहा है।पत्रकारिता सार्वजनिक उपयोगिता सेवा है।यह व्यवसाय नही है।बाजारीकरण के इस युग में पत्रकारिता पर जिस खतरे की बात की जाती है।पत्रकार को लोकतंत्रगामी बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए।हमे लोकतंत्र को उन्नत बनाने का लक्ष्य रखकर आगे बढ़ना है।अच्छी साफ सुथरी लिखाई,अच्छे साफ सुथरे विचार से ही आती है।क्योंकि हमारे विचार भाषा मे उभरते है।इसलिए विचार को ठीक करने का माध्यम भी भाषा ही है।ऐसा विचार जो सत्यनिष्ठ हो और किसी एक विचारधारा या किसी एक धर्म या किसी एक राजनीतिक दल के दरवाजे पर बंधा न हो।जिसकी निर्मलता सामने वाले के मन मे झलके।जिसकी विरोधियों को भी शीतलता का आभास हो।
. *कांतिलाल मांडोत*
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