पुस्तके ज्ञानियों की समाधि,किसी मे राम,किसी मे कृष्ण तो किसी मे भगवान महावीर विधमान-जिनेन्द्रमुनि मसा*
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*पुस्तके ज्ञानियों की समाधि,किसी मे राम,किसी मे कृष्ण तो किसी मे भगवान महावीर विधमान-जिनेन्द्रमुनि मसा*
कांतिलाल मांडोत
गोगुन्दा 21 अगस्त
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि
पुस्तके दर्पण की समानता तो है ही, मनुष्यों की तरह उनका जन्म-मरण और आयुष्य भी होता है। कुछ मानव जन्म लेते ही मर जाते हैं तो कुछ बालक, किशोर, तरुण, युवा होकर मरते हैं और अल्पजीवी कहे जाते हैं। कुछ व्यक्ति सौ वर्ष की आयु जीते हैं तो कुछ सौ को पार कर जाते हैं। मनुष्यों से ऊपर देव योनि के जीव हजारों, लाखों वर्ष जीते हैं।इसी प्रकार पुस्तकों का भी आयुष्य है। मुनि ने कहा कि जासूसी उपन्यास, घटिया साहित्य की पुस्तकें एक बार पढ़ी जाकर मर जाती हैं और रद्दी में बेच दी जाती हैं। दुकानदार उनके पन्ने फाड़-फाड़कर पुड़िया बनाकर उनका अन्तिम संस्कार कर देता है। उत्तराध्ययनसून, धम्मपद, गीता, रामायण, महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथ, चाणक्य नीति, पंचतंत्र, नीतिशास्त्र जैसा साहित्य चिरंजीवी या दीर्घजीवी है। ये ऐसी पुस्तकें हैं कि पाठकों की सैकड़ों पीढ़ियाँ बदल गईं, पर वे अभी भी जीवित हैं। धर्मग्रंथ-सग्रंथ और शास्त्र अमर हैं। इनका सृष्टि के अंत तक अस्तित्त्व रहेगा।
धर्मग्रंथ को शास्त्र इसलिए कहा जाता है कि वह हमारे चित्त पर शासन करता है। राग-द्वेष से उद्धत हुए मन को अनुशासित करता है। इसलिए अनुशासन करने में समर्थ होने के कारण इसे कहा जाता है।
शास्त्र सबकी आँख है। सूर्य संसार का नेत्र है इसलिए उसे ‘जगच्चक्षु’ कहा है। किन्तु ज्ञानियों को अनंत चक्षु कहा जाता है। क्योंकि वे अपने ज्ञान से अनन्त, अपार संसार को देख लेते हैं। अंधा भी शास्त्र की आँख से देख लेता है। प्रसिद्ध विचारक लिंटन ने कहा है ग्रंथों में आत्मा होती है। सद्ग्रंथों का कभी नाश नहीं होता। लिंटन के इन शब्दों में यह स्पष्ट ध्वनित है कि पुस्तकें जीवित भी हैं और उनका आयुष्य भी होता है।पुस्तकों के लक्षण और उनके गुणों के बारे मे कहा है कि पुस्तकें ज्ञानियों की समाधि हैं। इसमे किसी मे राम,किसी मे कृष्ण ,भगवान महावीर तो किसी मे शिव विधमान है।प्रवीण मुनि ने कहा कि क्रोध की ज्वाला में जलकर स्वयं बर्बाद होता है जबकि अपने परिवार का भी सर्वनाश कर देता है।क्रोध पागलपन है।इस क्षणिक पागलपन में कई अपना सर्वस्व लुटाते हुए हम समाज मे देख सकते है।मुनि ने लोगो को क्रोध नही करके ठंडे दिमाग से रहने और जीवन को मधुर बनाने की सिख दी गई।रितेश मुनि ने कहा कि ज्ञानवान हर जगह प्रसिद्धि प्राप्त करता है।ज्ञानी हर जगह पूजा जाता है।ज्ञान से बढ़कर संसार मे कुछ नही है।अज्ञानी कदम कदम पर तिरस्कृत होता है।प्रभातमुनि ने भगवान की आराधना करने और अपनी आत्मा के कल्याण के लिए उपस्थित श्रावकों को कहा और आत्मविश्वास से आगे बढ़ने का आह्वान किया।
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