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*राखी का पर्व सात्विक,स्नेह और प्रेम का पर्व है*

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*राखी का पर्व सात्विक,स्नेह और प्रेम का पर्व है*

समाज का हर वर्ग एक दूसरे को स्नेह के बंधन में बांध लें तो जीवन ही निखर जाएगा।अभाव का अंत हो जाएगा।एक दूसरे की रक्षा करने की भावना बलवती करने वाला पर्व है। शत्रुता का शमन कर मित्रता एवं भाई चारे को बढ़ाने वाला पर्व है।भाई और बहन के प्यार में जो सात्विकता दिखती है वह अन्य संबंधों में कहां परिलक्षित हो पाती है। विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो की वह घटना क्या विश्व कभी भूल पाएगा ? जिसमे स्वामी विवेकानंद ने उस अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने उदगार व्यक्त करने से पहले सभा को संबोधित करते हुए कहा बहनों और भाइयों ,’सिस्टर एंड ब्रदर ‘कहा था ।इसके पहले अमेरिकावासी लेडिज एंड जैंटलमैन महिला और पुरुषों का संबोधन ही सुनते थे ।

रक्षाबंधन सारे समाज का पर्व है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करे और समाज की व्यवस्था को बनाए रखने हेतु संपन्न वर्ग अपने से विपन्न व्यक्ति का सहयोग करें यही संदेश है रक्षाबंधन का। भारतीय जनमानस में रक्षाबंधन भाई और बहन के स्नेह का त्यौहार है। वहीं प्रतिवर्ष बहन अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर उसके सुखी और संपन्न बनने की मंगल कामनाएं करती हैं ।

भारतवर्ष पर्व प्रधान देश है ।इस देश में प्रतिदिन कोई न कोई पर्व आता ही है ।कुछ ऐसे पर है जो किसी धर्म या जाति से संबंध नहीं रखते, धर्म या जाति से बंधे नहीं होते ।उनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। ऐसे पर्व में रक्षाबंधन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। रक्षा का अर्थ है प्रेम,दया सहयोग और स्वानुभूति ।रक्षा जीवन में मधुरता का संचार करती है ।भाईचारे की भावना को उजागर करती है ।रक्षा की भावना से उत्प्रेरित होकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने धनुष उठाया था और कर्मयोगी श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र धरा था। बड़े-बड़े वीरो ने रक्षा की भावना से तलवार ग्रहण की थी। रक्षा के लिए ही यह सभी साधन निर्मित हुए हैं ।रक्षा शब्द में जीवन की शक्ति है, प्राण है ,आत्मा का निर्गुण है ।मानव हृदय की अद्भुत कोमलता है ।मानव के अंतर मानस से प्रभावित होने वाला एक ऐसा निर्मल निश्चित है जो पाप, ताप और संताप से मुक्त करता है। रक्षा के भीतर मानवीय सुख दुख की सहानुभूति संवेदना और उपसर्ग की भावना छिपी है। दूसरों के दुखों से द्रवित होकर उनकी रक्षा के लिए अपने सुखों का बलिदान करना और कष्टों को स्वीकार करना यह रक्षा के साथ जुड़ा है ।विराट विश्व में जितना भी दुख और दैन्य है ,उसको नष्ट करने की क्षमता रक्षा शब्द में रही हुई है।रक्षा मानव मन की पवित्रता का पावन प्रतीक है। लगता है कि एक ही जैसे नक्षत्र मंडल और और चंद्र के चारो और परिक्रमा करते हैं वैसे ही जितने भी धर्म और दर्शन है रक्षा को केंद्र बिंदु बनकर ही आगे बढ़ते रहे हैं । बड़ा अद्भुत शब्द है रक्षा ।

दोस्तों को सन्मार्ग पर लाता है ।अन्याय अत्याचार करना कितना पाप है ।अन्याय अत्याचार के सामने घुटने टेकना और उसे बर्दाश्त करना भी कम पाप नहीं है ।इसलिए अहिंसा अन्याय का प्रतिकार करती है। अन्याय के सामने झुकती नहीं है। अन्याय का जवाब देने के लिए युद्ध करते हैं और ऐसा और घोर युद्ध करते हैं जिसमें लाखों सैनिकों का रक्त बहता है। फर्क सिर्फ यह है कि हिंसक वह दुराचारी जहां अपने स्वार्थ अहंकार पूर्ति के लिए युद्ध करते थे। दास बनकर भी दर्शन करते हैं ,वही अहिंसक केवल अन्याय का प्रतिकार करने व न्याय तथा धर्म रक्षा के लिए ही शस्त्र उठाता है ।जैन धर्म के सभी तीर्थंकर क्षत्रिय हुए इसका मतलब क्या है? यही काम में जो कर्मवीर होता है वही धर्मवीर हो सकता है ।इसके रक्त में वीरता के संस्कार है वह क्षेत्र में वीरता दिखाएगा। कायर बनकर हर क्षेत्र में पीछे रहेगा तो धर्म क्षेत्र में भी पीछे रहेगा। मुनि विष्णु कुमार द्वारा संघ रक्षा कार्य ,धर्म रक्षा के लिए वीरता और पराक्रम दिखाने की प्रेरणा देता है धर्म हिंसा के नाम पर बुजदिली दिखाना धर्म का मजाक हआ। समय में अहिंसा वीरता के लिए एक प्रेरणा है कि अन्याय के सामने झुको मत बल्कि अपने शक्ति से अन्य को झुका लो ।रक्षाबंधन का दिन दोनों के सम्मान की रक्षा का दिन है इसलिए आज विज्ञापन करने से पारिवारिक सामाजिक को राष्ट्रीय जीवन में जो संगत से उन संघर्ष को समाप्त करने के लिए तथा सुख और शांति के से राष्ट्र को आगे बढ़ाने के लिए हमें पर्व के अंतर ह्रदय को समझना होगा।

जो पर्व की आत्मा है। हम उसे समझ कर आगे बढ़ेंगे तो शांति का साम्राज्य स्थापित कर सकेंगे। धागा तो धागा ही होता है ,उस सामान्य धागे का कोई महत्व नहीं है। राखी के रूप में जब वह धागा बंधता है तो वह धागा नहीं परन्तु अभी रक्षासूत्र बन जाता है। जिसने आपके हाथों में राखी बांध दी,उसके जीवन का दायित्व आप हम पर है ।केवल चंद्र चांदी के टुकड़े देखकर आप चाहे कि मैं उत्तर उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाऊंगा, नहीं हो सकते ।जो उच्च दायित्व आपने ग्रहण किया है उसे ईमानदारी के साथ निभाएंगे तभी रक्षा सूत्र की सार्थकता है ।यही है कि इस पर आत्मा हम दुखियों से दुख दर्द में सहयोगी सुख शांति का अनुभव करने लगेगी। प्राणी मात्र की रक्षा के लिए संकल्प करें रक्षा के लिए बंध जाए। भारतीय जनमानस में रक्षाबंधन भाई और बहन का त्यौहार है वहीं प्रतिवर्ष अपने भाई की कलाई में राखी बांधकर उसकी सुखी और संपन्न बनने की मंगल कामना करती है। उसके बदले भाई अपनी तरफ से कुछ भेंट देकर बहन का सम्मान करना है ।आज इसका रूप विकसित हो गया हैं। आज राखी बांधकर कहीं कोई किसी का भी अपना भाई बहन बन सकता है। समाज में कितने ही स्त्री पुरुष राखी के पवित्र धागो धर्म भाई और धर्म बहन बनकर राखी के पवित्र पर्व की माता का निर्वहन करते हैं ।भारत के इतिहास में ऐसी कई घटना है जिन्होंने राखी के पर्व की महता को बढ़ाया है।बहनों के सम्मान की रक्षा कीजिए। रक्षाबंधन से संबंधित अन्य अनेक प्रसंग है पर आज राष्ट्र में हजारों बहने है जिसका जीवन असुरक्षित है। उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ।रक्षाबंधन का पर्व यह पावन प्रेरणा दे रहा है कि हम उनकी रक्षा करे।

 

                                                                             *कांतिलाल मांडोत*

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